India-US Tariff War: ट्रंप दुनिया को झुकाने के चक्कर में अपने ही देश की कब्र खोद रहे हैं!

India-US Tariff War - ट्रंप दुनिया को झुकाने के चक्कर में अपने ही देश की कब्र खोद रहे हैं!
| Updated on: 03-Aug-2025 03:20 PM IST

India-US Tariff War: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की नई टैरिफ नीति ने वैश्विक अर्थव्यवस्था में भूचाल ला दिया है। 7 अगस्त, 2025 से लागू होने वाले इन भारी-भरकम टैरिफों ने भारत, कनाडा, यूके, जापान जैसे विकसित देशों से लेकर लाओस और अल्जीरिया जैसे विकासशील देशों तक, सभी को प्रभावित किया है। यह नीति न केवल वैश्विक व्यापार को झकझोर रही है, बल्कि अमेरिका के अपने बाजारों और उपभोक्ताओं पर भी गहरा असर डाल रही है।

नियमों की जगह धमकी का खेल

दोबारा राष्ट्रपति बनने के बाद ट्रंप ने वैश्विक आर्थिक व्यवस्था को लगभग ध्वस्त कर दिया है। अब अमेरिकी व्यापार नीति नियमों के बजाय राष्ट्रपति की व्यक्तिगत इच्छा पर आधारित हो गई है। ट्रंप उन देशों पर दबाव बना रहे हैं जो उनकी शर्तों को नहीं मानते, और जो मानते हैं, उनसे रियायतें वसूल रहे हैं।

पूर्व अमेरिकी व्यापार अधिकारी और वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गनाइजेशन (WTO) के उप महानिदेशक एलन वोल्फ के अनुसार, “ट्रंप ने धमकी देकर देशों को बातचीत की मेज पर लाने का दांव खेला, और वे इसमें सफल भी हुए हैं।” यह सिलसिला 2 अप्रैल, 2025 को शुरू हुआ, जिसे ट्रंप का ‘लिबरेशन डे’ कहा जा रहा है। इस दिन उन्होंने व्यापार घाटे वाले देशों पर 50% तक रेसिप्रोकल टैरिफ और अन्य देशों पर 10% बेसलाइन टैक्स की घोषणा की।

ट्रंप ने 1977 के एक पुराने अमेरिकी कानून का हवाला देकर व्यापार घाटे को राष्ट्रीय आपातकाल घोषित किया, जिससे उन्हें आयात पर सीधे टैक्स लगाने का अधिकार मिल गया। इस कदम ने अमेरिकी कांग्रेस को हाशिए पर धकेल दिया, और अब यह नीति अमेरिकी अदालतों में चुनौती का सामना कर रही है।

विकासशील और विकसित देशों पर भारी मार

ट्रंप की टैरिफ नीति का सबसे कड़ा प्रहार उन देशों पर हुआ है जिनकी अर्थव्यवस्था पहले से कमजोर है। उदाहरण के लिए, लाओस, जहां प्रति व्यक्ति वार्षिक आय केवल 2100 डॉलर है, पर 40% आयात टैक्स लगाया गया है। अल्जीरिया, जहां प्रति व्यक्ति आय 5600 डॉलर है, पर 30% टैक्स थोपा गया है। दूसरी ओर, अमेरिका की प्रति व्यक्ति आय 75,000 डॉलर के आसपास है।

विकसित देश भी इस नीति से अछूते नहीं हैं। कनाडा पर 35% टैरिफ इसलिए लगाया गया क्योंकि उसने फिलिस्तीन को मान्यता देने का संकेत दिया था। ब्राजील पर 50% टैक्स इसलिए थोपा गया क्योंकि ट्रंप को पूर्व ब्राजीलियाई राष्ट्रपति बोल्सोनारो की नीतियां पसंद नहीं थीं। यह साफ है कि टैरिफ अब केवल व्यापारिक नीति नहीं, बल्कि एक कूटनीतिक हथियार बन चुका है।

सहयोगी देशों को भी राहत नहीं

ट्रंप की शर्तें मानने वाले देशों को भी कोई विशेष राहत नहीं मिली है। उदाहरण के लिए, ब्रिटेन को अब अमेरिका में सामान बेचने के लिए 10% टैक्स देना होगा, जो पहले केवल 1.3% था। यूरोपीय संघ और जापान ने 15% टैक्स की शर्त स्वीकार की है, जो ट्रंप की मूल धमकी से कम है, लेकिन फिर भी काफी अधिक है। पाकिस्तान, दक्षिण कोरिया, वियतनाम, इंडोनेशिया और फिलीपींस जैसे देशों ने भी ट्रंप के साथ समझौता किया है, लेकिन उन्हें पहले से कहीं अधिक टैक्स चुकाना पड़ रहा है।

अमेरिकी उपभोक्ताओं पर बढ़ता बोझ

टैरिफ का असर केवल वैश्विक व्यापार तक सीमित नहीं है; इसका सीधा प्रभाव अमेरिकी उपभोक्ताओं पर भी पड़ रहा है। स्नीकर्स, टीवी, इलेक्ट्रॉनिक्स, बैग और वीडियो गेम जैसे रोजमर्रा के सामान अब पहले से कहीं अधिक महंगे हो गए हैं, क्योंकि इनका निर्माण ज्यादातर अमेरिका के बाहर होता है।

येल यूनिवर्सिटी के विशेषज्ञों का अनुमान है कि इस नीति के कारण एक औसत अमेरिकी परिवार को सालाना लगभग 2400 डॉलर (करीब दो लाख रुपये) का अतिरिक्त खर्च वहन करना पड़ रहा है। 2018 में अमेरिका में औसत आयात टैक्स 2.5% था, जो 2025 तक बढ़कर 18.3% हो गया है—यह 1934 के बाद का सबसे उच्च स्तर है।

एलन वोल्फ का कहना है, “अमेरिकी उपभोक्ता इस नीति के सबसे बड़े शिकार हैं। वे अब हर खरीद पर अतिरिक्त टैक्स चुका रहे हैं।”

विशेषज्ञों की चेतावनी: कोई विजेता नहीं

न्यूयॉर्क लॉ स्कूल में सेंटर फॉर इंटरनेशनल लॉ के सह-निदेशक बैरी एपलटन का मानना है कि “इस नीति में शायद कोई विजेता नहीं होगा। ज्यादातर देशों को नुकसान उठाना पड़ेगा, और अमेरिका भी इससे अछूता नहीं रहेगा।”

यह नीति वैश्विक व्यापार को तो प्रभावित कर ही रही है, साथ ही अमेरिका की अपनी अर्थव्यवस्था पर भी उल्टा असर डाल रही है। बढ़ती कीमतों और आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान के कारण अमेरिकी उपभोक्ताओं और व्यवसायों पर दबाव बढ़ रहा है।

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