India-Russia Relation: भारत और रूस ने 100 अरब डॉलर का बनाया प्लान, चीन-अमेरिका परेशान!

India-Russia Relation - भारत और रूस ने 100 अरब डॉलर का बनाया प्लान, चीन-अमेरिका परेशान!
| Updated on: 10-Jul-2024 08:25 AM IST
India-Russia Relation: ‘सिर पर लाल टोपी रूसी…’ राजकपूर की फिल्म के गाने की इस लाइन ने पूरे रूस में तहलका मचा दिया था. आज फिर यही लाइनें रूसी धरती पर भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जुबां पर थी. अब आप समझ सकते हैं कि भारत और रूस की दोस्ती कितनी गहरी और दूसरे देशों की समझ से कितनी परे है. यही वजह है कि अमेरिकी सरकार पूरी तरह से सकते हैं. वहीं रूस से पींगे बढ़ा रहा चीन भी इस दोस्ती को देखकर खौफजदा हो चुका होगा.

खैर यहां बात सिर्फ राजनीति और दोनों देशों के कूटनीतिक संबंधों की नहीं होगी. यहां तो चर्चा इस बात की होगी कि अगले 5 से 6 बरस में भारत और रूस के बीच किस तरह के आर्थिक संबंध देखने को मिल सकते हैं. वास्तव में दोनों देशों ने 100 अरब डॉलर का प्लान बना लिया है. इस पर हस्ताक्षर भी हो गए हैं. दोनों देशों के राष्ट्राध्यक्षों के इस प्लान को देखकर अमेरिका, चीन और यूरोप के देश परेशान हो गए हैं. आइए आपको भी बताते हैं कि आखिर भारत-रूस ने किस तरह का प्लान बना लिया है.

क्या है 100 अरब डॉलर का प्लान?

भारत और रूस ने जो 100 अरब डॉलर का प्लान बना लिया है वो वास्तव में बाइलेटरल ट्रेड का है. जानकारी के अनुसार दोनों देशों ने साल 2030 तक बाइलेटरल ट्रेड को 100 अरब डॉलर तक बढ़ाने का प्लान बना लिया है. साथ ही दोनों देशों ने व्यापार में संतुलन लाने, गैर-शुल्क व्यापार बाधाओं को दूर करने और यूरेशियन आर्थिक संघ (ईएईयू)-भारत मुक्त व्यापार क्षेत्र की संभावनाएं तलाशने का टारगेट रखा है.

पीएम मोदी और रूसी प्रेसीडेंट व्लादीमिर पुतिन के बीच कई दौर की वार्ता हुई. उसके बाद मंगलवार को दोनों राष्ट्राध्यक्षों ने संयुक्त बयान जारी करते अपने प्लान के बारे में पूरी दुनिया की जानकारी दी. इसमें कहा गया कि दोनों देश, नेशनल करेंसी का इस्तेमाल कर एक बाइलेटरल सेटलमेंट सिस्टम स्थापित करने और म्यूचुअल सेटलमेंट सिस्टम में डिजिटल फाइनेंशियल इंस्ट्रूमेंट्स को लाने की प्लानिंग कर रहे हैं.

इन बातों पर भी हुई चर्चा

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रूस की दो दिनों की यात्रा के दौरान एनर्जी, बिजनेस, मैन्युफैक्चरिंग और फर्टीलाइजर सेक्टर में आर्थिक सहयोग को बढ़ाने पर जोर दिया गया. इसके साथ ही दोनों देशों ने बाइलेटरल बैलेंस ट्रेड के लिए भारत से सामान की सप्लाई बढ़ाने और और स्पेशल इंवेस्टमेंट सिस्टम के तहत निवेश को फिर से मजबूत करने पर जोर दिया.

वहीं दूसरी ओर पीएम नरेंद्र मोदी ने एनर्जी सेक्टर में रूस द्वारा भारत की मदद का भी जिक्र किया. उन्होंने कहा कि जब दुनिया फूड प्रोडक्ट्स, फ्यूल और फर्टीलाइजर की शॉर्टेज का सामना कर रही थी, तब भारत ने किसानों के सामने समस्या नहीं आने दी और रूस ने इसमें अहम भूमिका निभाई. मोदी ने यह भी कहा कि रूस की मदद से देश में पेट्रोल और डीजल की कमी नहीं हुई.

US और चीन के मुकाबले आधा है रूस से बाइलेटरल ट्रेड

मौजूदा समय में भारत और रूस के बीच बाइलेटरल ट्रेड 60 बिलियन डॉलर का है. जोकि अमेरिका और चीन के मुकाबले करीब आधा है. आंकड़ों के अनुसार वित्त वर्ष 2023-24 में अमेरिका के साथ भारत का बाइलेटरल ट्रेड 118.28 अरब डॉलर का है. जबकि चीन के साथ सबसे ज्यादा 118.40 अरब डॉलर है. ​चीन से रिश्ते खराब होने के बाद भी भारत का कारोबार सबसे ज्यादा यहीं से होता है. अगर ट्रेड डेफिसिट की बात करें तो ये 85 अरब डॉलर तक पहुंच गया था. वहीं रूस के साथ भी 57 अरब डॉलर को पार कर गया था.

दूसरी ओर वित्त वर्ष 2023-24 में भारत का अमेरिका के साथ 36.74 बिलियन डॉलर का ट्रेड सरप्लस था. अमेरिका उन कुछ देशों में से एक है जिनके साथ भारत का ट्रेड सरप्लस है. यूके, बेल्जियम, इटली, फ्रांस और बांग्लादेश भी इसी फेहरिस्त में शामिल है. पिछले वित्त वर्ष में भारत का कुल व्यापार घाटा उससे पिछले वित्त वर्ष के 264.9 बिलियन डॉलर के मुकाबले कम होकर 238.3 बिलियन डॉलर हो गया था.

चीन और अमेरिका क्यों परेशान?

रूसी जमीन पर जब से भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पहुंचे हैं. तब से चीन और अमेरिका में बैचेनी बढ़ी हुई है. अगर बात पहले चीन की करें तो चीन रूस से अपनी नजदीकी बढ़ाने में जुटा हुआ है. वहीं दूसरी ओर भारत के साथ रूस की दोस्ती पसंद नहीं है. ऐसे में भारत के पास रूस को चीन से दूर रखने का बढ़िया मौका है. ताकि किसी भी वक्त चीन को धमकाने के लिए रूस की मदद ली जा सके.

ऐसे में चीन की बेचैनी ज्यादा बढ़ी हुई हैं. वहीं दूसरी ओर अमेरिका और चीन के बीच खटास कितनी बढ़ी हुई है, ये बात किसी से छिपी नहीं है. दूसरी ओर रूस से भी अमेरिका नहीं बन रही है. ऐसे में अमेरिका भारत को अपना साउथ एशिया में सबसे बड़ा रणनीतिक और आर्थिक भागीदार मानकर चलता है. ऐसे में भारत और रूस की बढ़ती नजदीकी अमेरिका को हजम नहीं हो रही है.

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