Global Silver Crisis: भारत की दिवाली खरीदारी ने खड़ा किया 45 साल का सबसे बड़ा वैश्विक चांदी संकट
Global Silver Crisis - भारत की दिवाली खरीदारी ने खड़ा किया 45 साल का सबसे बड़ा वैश्विक चांदी संकट
भारत की दिवाली खरीदारी ने 2025 का 'चांदी संकट' खड़ा कर दिया है, जिसे पिछले 45 सालों का सबसे बड़ा वैश्विक चांदी संकट कहा जा रहा है. परंपरा, निवेश और सोशल मीडिया पर 'FOMO' (Fear Of Missing Out) के चलते भारत में चांदी की अभूतपूर्व मांग देखी गई, जिससे MMTC-Pamp जैसे बड़े रिफाइनर के पास भी स्टॉक खत्म हो गया. इस मांग की लहर ने लंदन के बाजार को भी हिला. दिया, जहां तरलता खत्म होने से ट्रेडिंग पूरी तरह ठप पड़ गई.
भारत में चांदी की अभूतपूर्व मांग
इस दिवाली और धनतेरस पर चांदी खरीदने निकले कई लोगों को. खाली हाथ लौटना पड़ा या सामान्य से कहीं ज़्यादा कीमत चुकानी पड़ी. भारत के सबसे बड़े कीमती धातुओं के रिफाइनर, MMTC-Pamp तक के पास चांदी का स्टॉक खत्म हो गया था और कंपनी के ट्रेडिंग हेड विपिन रैना ने बताया कि 27 साल के करियर में उन्होंने चांदी के लिए ऐसी दीवानगी और खरीद का ऐसा उन्माद कभी नहीं देखा, जबकि वे महीनों से त्योहारी मांग की तैयारी कर रहे थे.'FOMO' और सोशल मीडिया का प्रभाव
विश्लेषकों का मानना है कि इस संकट की जड़ें सीधे तौर पर भारत से जुड़ी हैं. दिवाली पर लक्ष्मी पूजा के लिए चांदी खरीदना हमारी परंपरा का हिस्सा है, लेकिन इस साल इसमें निवेश का नया पहलू जुड़ गया. महीनों से सोशल मीडिया पर यह प्रचार चल रहा था कि सोना अपनी ऊंचाई पर है और अगली बारी चांदी की है. अप्रैल में, कंटेंट क्रिएटर सार्थक आहुजा का एक वायरल वीडियो, जिसमें उन्होंने सोने-चांदी के 100-टू-1 अनुपात को चांदी के लिए एक बड़ा दांव बताया, ने निवेशकों में 'FOMO' पैदा कर दिया. इससे त्योहारी खरीदारों के साथ-साथ आम निवेशक भी चांदी पर टूट पड़े.वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला पर असर
ठीक इसी समय, जब भारत में मांग अपने चरम पर थी, चांदी का सबसे बड़ा सप्लायर चीन एक हफ्ते की लंबी छुट्टी पर चला गया, जिससे आपूर्ति श्रृंखला टूट गई. भारतीय डीलरों को मजबूरी में लंदन का रुख करना पड़ा. लंदन के भंडार पहले से ही खाली हो रहे थे, जिसकी मुख्य वजह सोलर पावर बूम और अमेरिकी शिपिंग के कारण चांदी की औद्योगिक मांग थी. वैश्विक निवेशक भी अमेरिकी डॉलर की कमजोरी पर दांव लगाते हुए चांदी के ETFs में भारी निवेश कर रहे थे और 2025 की शुरुआत से ही ETF निवेशक 1 करोड़ औंस से ज़्यादा चांदी खरीद चुके थे. जब भारत की यह अप्रत्याशित मांग इस तनावपूर्ण बाजार से टकराई, तो सिस्टम चरमरा गया.लंदन बाजार में कारोबार ठप
जेपी मॉर्गन जैसे बैंकों ने अक्टूबर के लिए भारत को चांदी की आपूर्ति असंभव बताई, और नवंबर में ही पहली सप्लाई की बात कही. भारत में चांदी की कमी के कारण स्थानीय बाजार में प्रीमियम $5 प्रति औंस के पार जा रहा था और कोटक, UTI और SBI जैसे बड़े म्यूचुअल फंड हाउस को अपने सिल्वर ETF में नए निवेश पर रोक लगानी पड़ी.
9 अक्टूबर को, लंदन का चांदी बाजार अपने सबसे बड़े संकट में पहुंच गया, जब तरलता पूरी तरह खत्म हो गई. बाजार में कोई बेचने वाला नहीं था, केवल खरीदार ही खरीदार थे. रातों-रात चांदी उधार लेने की लागत 200% तक बढ़ गई और बड़े बैंकों ने कीमतें तय करने से हाथ खींच लिए, जिससे बोली और पूछ की कीमतों में भारी अंतर आ गया और ट्रेडिंग लगभग ठप हो गई. स्विस रिफाइनर Argor-Heraeus के CEO ने कहा कि लंदन में लीज के नजरिए से कोई तरलता नहीं बची थी.
**क्या इतिहास दोहरा रहा है?
यह पहला चांदी संकट नहीं है. 1980 में, हंट ब्रदर्स ने कीमतों को $6 से $50 प्रति औंस तक पहुंचा दिया था, जिसे 'सिल्वर थर्सडे' कहा गया. 1998 में, वॉरेन बफे की कंपनी ने दुनिया की सालाना सप्लाई का 25% हिस्सा खरीदकर बाजार को हिला दिया था. ताजा संकट को 1980 के हंट ब्रदर्स कांड के बाद का सबसे बड़ा संकट माना जा रहा है.