India vs Bharat: पहले इंडिया या भारत? संविधान सभा में चली थी बहस,डॉ. अंबेडकर हुए थे नाराज

India vs Bharat - पहले इंडिया या भारत? संविधान सभा में चली थी बहस,डॉ. अंबेडकर हुए थे नाराज
| Updated on: 06-Sep-2023 08:22 AM IST
India vs Bharat: देश का नाम ‘इंडिया’ के स्थान पर अब सिर्फ ‘भारत’ किए जाने की अटकलों के बीच संविधान स्वीकृति के समय नामकरण को लेकर संविधान सभा में हुई बहसों का पुनर्पाठ (Reread) किया जा रहा है. तब संविधान सभा के अनेक सदस्यों ने ‘इंडिया’ को ‘भारत’ के पहले रखे जाने पर ऐतराज किया था. उन्होंने इंडिया अर्थात भारत राज्यों का एक संघ होगा पदावली को उपयुक्त नहीं माना था.

वो चाहते थे कि उस स्थान पर संविधान में ‘भारत’ या अंग्रेजी भाषा में ‘इंडिया, राज्यों का एक संघ होगा, को प्रतिस्थापित किया जाए. हालांकि सभा के सदस्य हरि विष्णु कामथ ने लंबी बहस के बाद डॉक्टर अंबेडकर के इस कथन के हवाले से कि अनुसूची में बाद में संशोधन किया जाएगा, अपना संशोधन वापस ले लिया था.

कामथ ने कहा जर्मन शब्द है ‘इंडियन’

संविधान सभा में 18 सितंबर 1949 को बोलते हुए हरि विष्णु कामथ ने कहा था कि ‘अभिव्यक्ति इंडिया यानी भारत, मुझे लगता है कि इसका मतलब है, इंडिया यानी भारत. बेहतर होता कि अगर इस अभिव्यक्ति, इस संरचना को संवैधानिक रूप से अधिक स्वीकार्य रूप में संशोधित किया जाता और मैं कह सकता हूं, अधिक सौंदर्यपूर्ण और निश्चित रूप से अधिक सही रूप में कि, भारत या अंग्रेजी भाषा में इंडिया होगा. मैं विशेष रूप से अंग्रेजी भाषा कहता हूं. माननीय सदस्य पूछ सकते हैं कि आप अंग्रेजी भाषा क्यों कहते हैं? क्या यह सभी यूरोपीय भाषाओं के समान नहीं है? नहीं यह नहीं है.

जर्मन शब्द इंडियन है और यूरोप के कई हिस्सों में इस देश को अभी भी हिंदुस्तान के रूप में जाना जाता है और इस देश के सभी मूल निवासियों को हिंदू कहा जाता है. यह सिंधु नदी से प्राप्त प्राचीन नाम हिंदू से आया होगा. कामथ ने 1937 में पारित आयरिश संविधान का हवाला दिया, जिसने स्वतंत्रता प्राप्त करने पर अपना नाम बदल दिया. उस संविधान का अनुच्छेद चार इस प्रकार है, राज्य का नाम आयर है या अंग्रेजी में आयरलैंड है.

यूनानियों ने सिंधु को इंडस कहा, उसी से बना इंडिया

सेठ गोविंददास ने कहा था, ‘इंडिया अर्थात भारत सुंदर शब्द नहीं है. हमें लिखना चाहिए, “भारत को विदेशों में इंडिया के नाम से भी जाना जाता है.” यह पिछली अभिव्यक्ति से कहीं अधिक उपयुक्त होता. लेकिन हमें कम से कम इस बात का संतोष होना चाहिए कि आज हम अपने देश को “भारत” नाम दे रहे हैं. दास ने कहा कि कुछ लोगों ने एक पुस्तिका प्रकाशित की है, जिसमें इंडिया को भारत से भी प्राचीन बताया गया है. वे सही नहीं हैं. ‘भरत’ का उल्लेख हमे विष्णु पुराण में मिलता है.

ब्रह्म पुराण में इस देश का उल्लेख ‘भारत’ नाम से मिलता है. इंडिया शब्द का प्रयोग तब शुरू हुआ, जब यूनानी भारत आए. उन्होंने हमारी सिंधु नदी का नाम इंडस रखा और इसी से इंडिया बना. यदि हम वेदों, उपनिषदों, ब्राह्मण और महाभारत ग्रंथों को देखें तो उसमें भारत नाम का उल्लेख मिलता है. इन प्राचीन बातों की याद दिलाने से, जैसा कि हमारे प्रधानमंत्री और कुछ सदस्य कहते हैं कि मैं पीछे की ओर देख रहा हूं. असलियत में मैं आगे देखना चाहता हूं और कहना चाहता हूं कि भारत नाम रखकर हम ऐसा कुछ नहीं कर रहे हैं, जो देश को आगे बढ़ने से रोकेगा.

भारत नाम में जादू

इस मौके पर पंडित कमलापति त्रिपाठी ने ‘इंडिया अर्थात भारत’ के स्थान पर ‘भारत अर्थात इंडिया’ के प्रयोग को उपयुक्त बताया था. कमलापति त्रिपाठी ने कहा था, इसे प्रारूप समिति ने स्वीकार कर लिया था, यदि अब भी वह इसे स्वीकार करती है तो यह हमारी भावनाओं और हमारे देश की प्रतिष्ठा के लिए सराहनीय विचार होगा. मैं भारत के ऐतिहासिक नाम से मुग्ध हूं. यहां तक कि इसके उच्चारण मात्र से जादू के झटके से हमारे सामने सदियों के सांस्कृतिक जीवन की तस्वीर उभर कर सामने आ जाती है. दुनिया में ऐसा कोई देश नहीं है, जिसने दमन, अपमान और लंबी गुलामी के बाद भी अपने नाम और प्रतिभा को बचाए रखा.

भारतवर्ष क्यों नहीं?

हर गोविंद पंत ने सभा की प्रारंभिक बैठकों में प्रस्तुत संशोधन की याद दिलाई, जिसमें उन्होंने देश का नाम इंडिया के स्थान पर भारत या भारतवर्ष रखने का प्रस्ताव किया था. पंत ने इस बात पर प्रसन्नता जाहिर की कि नाम में कुछ बदलाव अंततः स्वीकार किया गया है. यद्यपि उन्हें इस बात पर आश्चर्य था कि भारतवर्ष नाम सदन को क्यों स्वीकार नहीं है? उन्होंने याद दिलाया कि भारतवर्ष शब्द का प्रयोग हम अपने दैनिक कर्तव्यों में संकल्प पढ़ते समय करते हैं, “जंबू द्विपय, भारत वर्षे, भरत खंडे, आर्यावर्ते आदि!”

इस बहस में ब्रजेश्वर प्रसाद, डॉक्टर पी. एस.देशमुख, आर.के. सिधवा, मौलाना हसरत मोहानी, महावीर त्यागी, लक्ष्मी नारायण साहू, घनश्याम सिंह गुप्ता, कल्लूर सुब्बा राव, बी.एम.गुप्ते, राम सहाय और एस .नागप्पा आदि ने भी हिस्सा लिया था. डॉक्टर अंबेडकर ने समय सीमा का हवाला देते हुए बहस को समाप्त करने का अनुरोध किया था. अंततः उनके द्वारा प्रस्तुत प्रस्ताव स्वीकृत हुआ और संविधान के अनुच्छेद 1 के खंड (1) और (2) के निम्नलिखित खंड प्रतिस्थापित किए गए.

  • इंडिया अर्थात भारत राज्यों का एक संघ होगा.
  • राज्य और उसके क्षेत्र पहली अनुसूची के भाग I, II और III के निर्दिष्ट समय के लिए राज्य और उनके क्षेत्र होंगे.
नामकरण की इस बहस से साफ पता चलता है कि बहस में हिस्सा लेने वाले सदस्य देश को भारत नाम मिलने से तो खुश थे लेकिन तब साथ में ‘इंडिया’ क्यों जरूरी है, इस पर कोई आपत्ति नहीं हुई थी. इस मौके पर पेश संशोधन प्रस्तावों में भी ऐसा कोई उल्लेख नहीं है. इसकी वजह यह भी मुमकिन है कि लंबी गुलामी के बाद मिली आजादी के उस दौर में देश को ‘भारत’ नाम मिलना ही बड़ी बात मानी गई.

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