Crude Oil Price: मध्य पूर्व में फिर से युद्ध का बिगुल बज चुका है। ईरान और इजराइल के बीच छिड़े इस नए संघर्ष ने वैश्विक स्तर पर तनाव की लहर दौड़ा दी है। इसका ताजा असर आज भारतीय और अमेरिकी शेयर बाजारों में साफ तौर पर देखने को मिला। साथ ही, सबसे बड़ा झटका क्रूड ऑयल की कीमतों में रिकॉर्ड तेजी के रूप में सामने आया।
इसी बीच जे.पी. मॉर्गन की ताज़ा रिपोर्ट ने चिंता और बढ़ा दी है। रिपोर्ट के अनुसार, अगर यह तनाव ऐसे ही जारी रहा तो 2025 के अंत तक क्रूड ऑयल की कीमतें 100 से 120 डॉलर प्रति बैरल तक जा सकती हैं। वर्तमान हालातों में कच्चे तेल की कीमतों का यह उछाल भारत जैसी ऑयल इम्पोर्टिंग अर्थव्यवस्थाओं के लिए एक बड़ा आर्थिक खतरा बन सकता है।
जे.पी. मॉर्गन का कहना है कि अगर ईरान पर वैश्विक प्रतिबंध और कड़े किए गए या उसकी ऑयल फैसिलिटीज को टारगेट किया गया, तो इससे मिडिल ईस्ट की ऑयल सप्लाई चेन पूरी तरह से बाधित हो सकती है। ईरान, ओपेक का प्रमुख उत्पादक देश है और किसी भी तरह की बाधा से ग्लोबल ऑयल प्रोडक्शन में भारी गिरावट आ सकती है। इसका सीधा असर तेल की कीमतों पर पड़ेगा, जो पहले से ही बढ़ते तनाव के कारण उबाल पर हैं।
भारत, अपनी कुल तेल जरूरतों का 85% से अधिक हिस्सा इम्पोर्ट करता है। ऐसे में क्रूड ऑयल की कीमतों में तेज़ी का सीधा असर देश की इकोनॉमी पर पड़ेगा:
इम्पोर्ट बिल में उछाल: कीमतें बढ़ने से भारत का इम्पोर्ट बिल बढ़ेगा, जिससे ट्रेड डेफिसिट और करंट अकाउंट डेफिसिट पर दबाव बढ़ेगा।
रुपया और महंगाई पर असर: रुपये पर प्रेशर और पेट्रोल-डीजल की कीमतों में बढ़ोतरी से महंगाई भी बेकाबू हो सकती है।
उद्योगों को झटका: ट्रांसपोर्ट और मैन्युफैक्चरिंग की लागत बढ़ेगी, जिससे इंडस्ट्रियल प्रोडक्शन पर सीधा असर पड़ेगा।
भारत सरकार के लिए यह स्थिति एनर्जी सिक्योरिटी और इकोनॉमिक स्टेबिलिटी को बनाए रखने की एक बड़ी परीक्षा है। विशेषज्ञों की मानें तो सरकार को अब वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों पर और तेजी से काम करना होगा। इसके अलावा, ऑयल स्टोरेज कैपेसिटी बढ़ाना और लॉन्ग टर्म कॉन्ट्रैक्ट्स के ज़रिए सप्लाई को सिक्योर करना भी ज़रूरी हो गया है।
तेल कंपनियों को चाहिए कि वे प्राइस हेजिंग और लागत नियंत्रण जैसी रणनीतियों पर काम करें ताकि कीमतों के प्रभाव को कुछ हद तक कम किया जा सके। साथ ही, आम जनता को राहत देने के लिए टैक्स स्ट्रक्चर में लचीलापन दिखाना भी आवश्यक हो सकता है।
यह संकट सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया की इकोनॉमिक रिकवरी की रफ्तार पर भी ब्रेक लगा सकता है। वैश्विक बाजारों में पहले से ही अस्थिरता बनी हुई है, और यदि तेल की कीमतें लगातार बढ़ती रहीं तो महंगाई, मंदी और बेरोजगारी जैसी समस्याएं और गहराती जाएंगी।