बड़ी खबर: लोन मोरेटोरियम में ब्याज के ऊपर लगने वाले ब्याज से जल्द मिल सकती है राहत
बड़ी खबर - लोन मोरेटोरियम में ब्याज के ऊपर लगने वाले ब्याज से जल्द मिल सकती है राहत
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Updated on: 19-Sep-2020 09:38 AM IST
नई दिल्ली। भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा 6 महीने के लिए दी गई लोन मोरेटोरियम (Loan Moratorium) की मियाद खत्म हो चुकी है। 31 अगस्त को लोन मोरेटोरियम सुविधा की अवधि खत्म होने के बाद अब इस महीने से उधारकर्ताओं को अपनी EMI चुकानी पड़ रही है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, लोन मोरेटोरियम (Loan moratorium) की अवधि में ब्याज के ऊपर ब्याज से लोगों को राहत मिल सकती है। पूर्व कैग (नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक) राजीव महर्षि की अध्यक्षता में एक समिति गठित की गई है। वह इस मसले पर कुछ सुझाव दे सकती है। अंग्रेजी के अखबार इकोनॉमिक टाइम्स में छपी खबर के मुताबिक, राजीव महर्षि की अध्यक्षता में बनी समिति इस बात को भी देखेगी कि किसी तरह की राहत का बोझ बैंकों की बैलेंसशीट या डिपॉजिटर्स पर नहीं पड़े। वजह है कि इन्हें भी कोरोना की महामारी से नुकसान उठाना पड़ा है। समिति चुनिंदा कर्जदारों को चक्रवृद्धि ब्याज पर रोक लगाने संबंधी राहत दे सकती है। इनमें छोटे कर्जदार शामिल हो सकते हैं। इसके अलावा राहत की रकम तय की जा सकती है। इन सभी विकल्पों पर समिति विचार जारी है।इस तीन सदस्यीय समिति का गठन पिछले हफ्ते हुआ है। इसे मोरेटोरियम के दौरान ब्याज माफी के विभिन्न पहलुओं को देखकर सुझाव देने के लिए कहा गया है। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से इस मसले पर अपना रुख साफ करने का निर्देश दिया था। उसके बाद ही सरकार ने इस पैनल को गठित किया था।आरबीआई ब्याज माफी के पक्ष में नहीं है। सेंट्रल बैंक ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि पहले से ही संकट से जूझ रहे फाइनेंशियल सेक्टर को इससे बड़ा नुकसान होगा। बदले में इसका खामियाजा डिपॉजिटर्स को भुगतना होगा। सरकार ने आरबीआई के रुख का समर्थन किया था। लेकिन, सुप्रीम कोर्ट ने वित्त मंत्रालय से अलग से अपना रुख रखने को कहा है। इसी को देखते हुए 10 सितंबर को महर्षि पैनल का गठन हुआ। इससे एक हफ्ते के भीतर अपनी रिपोर्ट सौंपने के लिए कहा गया है।बैंकरों, याचिकाकर्ताओं से बातचीत सुप्रीम कोर्ट 28 सितंबर से मोरेटोरियम से जुड़ी याचिकाओं की दोबारा सुनवाई शुरू करेगा। सरकार को राहत का कुछ या पूरा बोझ अपने ऊपर लेना पड़ सकता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि ज्यादातर सरकारी बैंकों में उसकी मालिकाना हिस्सेदारी है। ऐसी स्थिति में उसे प्राइवेट बैंकों और को-ऑपरेटिव बैंकों की ओर से ग्राहकों को दी गई राहत का भार भी उठाना पड़ेगा। इनके मामले में भी कर्जदारों ने ईएमआई के भुगतान को रोका था। सूत्रों ने बताया कि अपनी आजीविका के लिए ब्याज आय पर निर्भर पेंशनर्स जैसे डिपॉजिटर्स को भी महामारी से उतना ही नुकसान हुआ है। इनके हितों को भी देखना होगा।ब्रोकरेज फर्म मैक्वायरी का अनुमान है कि ब्याज माफी से बैंकिंग सिस्टम पर 2।1 लाख करोड़ रुपये का बोझ पड़ेगा। वहीं, चक्रवृद्धि ब्याज माफ करने से यह करीब 15,000 करोड़ रुपये आएगा। सुप्रीम कोर्ट ने बैंकों को किसी भी लोन को अगले नोटिस तक एनपीए के तौर पर घोषित नहीं करने का आदेश दिया है।
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