Strait of Hormuz: ईरान और इजराइल के बीच जारी युद्ध में अमेरिका की सक्रिय भागीदारी ने हालात को और भी विस्फोटक बना दिया है। दोनों देशों के बीच भारी गोलाबारी जारी है और इस तनाव का दायरा अब वैश्विक ऊर्जा सुरक्षा तक पहुंच गया है। इसी बीच ईरानी संसद ने एक महत्वपूर्ण प्रस्ताव पारित किया है – कच्चे तेल के व्यापार का प्रमुख समुद्री मार्ग स्ट्रेट ऑफ होर्मुज बंद करने का। हालांकि इस पर ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामेनेई की अंतिम मुहर लगनी बाकी है, लेकिन इसके संकेत भर से ही क्रूड ऑयल की कीमतों में उबाल आ गया है।
स्ट्रेट ऑफ होर्मुज दुनिया के सबसे व्यस्त और रणनीतिक रूप से अहम समुद्री मार्गों में से एक है, जिसके जरिये दुनिया का लगभग 20% कच्चा तेल परिवहन होता है। यह मार्ग फारस की खाड़ी को ओमान की खाड़ी और फिर अरब सागर से जोड़ता है। चीन, जापान, भारत, दक्षिण कोरिया समेत कई देशों की ऊर्जा सुरक्षा इस मार्ग पर टिकी हुई है।
भारत अपनी ऊर्जा जरूरतों के लिए मुख्यतः इराक, सऊदी अरब, कुवैत और यूएई जैसे देशों पर निर्भर है और इन देशों से आयात का एक बड़ा हिस्सा स्ट्रेट ऑफ होर्मुज के जरिए होता है। ICRA के अनुसार, भारत अपनी कुल तेल खपत का 45-50% इस रूट से आयात करता है।
विशेषज्ञों का मानना है कि अगर खामेनेई इस प्रस्ताव को मंजूरी दे देते हैं और स्ट्रेट ऑफ होर्मुज बंद हो जाता है, तो कच्चे तेल की कीमतों में 10 डॉलर प्रति बैरल की वृद्धि हो सकती है, जिससे भारत का वार्षिक तेल आयात बिल 13-14 बिलियन डॉलर तक बढ़ सकता है। इससे भारत का चालू खाता घाटा (CAD) जीडीपी के 0.3% तक बढ़ सकता है।
अगर आने वाले महीनों में क्रूड ऑयल की औसत कीमत 80-90 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंचती है, जैसा कि ICRA का अनुमान है, तो भारत का CAD मौजूदा 1.2-1.3% से बढ़कर 1.5-1.6% तक हो सकता है।
इसका असर रुपये पर भी पड़ेगा, जिससे USD/INR की विनिमय दर प्रभावित होगी।
इसके अलावा, हर 10% क्रूड मूल्य वृद्धि से:
थोक महंगाई दर (WPI) 0.8-1% तक बढ़ सकती है
उपभोक्ता महंगाई दर (CPI) में 0.2-0.3% की वृद्धि हो सकती है
कच्चे तेल की कीमतें जब लगातार ऊंची बनी रहती हैं, तो इससे उद्योगों की लागत बढ़ती है और उनकी मुनाफाखोरी पर सीधा असर पड़ता है।
ICRA के अनुसार, अगर हालात ऐसे ही बने रहे, तो 2026 के लिए भारत की जीडीपी ग्रोथ दर 6.2% तक सिमट सकती है।