पुण्यतिथि विशेष: कल्याणसिंह कालवी, एक ऐसे नेता जिन्होंने समाजसेवक और राजनेता का चरित्र एक साथ जीया

पुण्यतिथि विशेष - कल्याणसिंह कालवी, एक ऐसे नेता जिन्होंने समाजसेवक और राजनेता का चरित्र एक साथ जीया
| Updated on: 27-Jul-2020 12:21 PM IST
Jaipur | समाज की सीढ़ी चढ़कर राजनीति में आने वाले आज के नेताओं से जब साधारण और सामान्यजन अपने काम को लेकर आते हैं तो उनका एक रटा हुआ जवाब होता है। हम छत्तीस कौम की वजह से जीतकर आते हैं, किसी एक की वजह से नहीं। वे उन्हीं साधारण लोग जिनके पास पर्याप्त पैसा या रसूख नहीं होता उन्हें नकार देते हैं। राजस्थान के राजपूत समाज में एक ऐसे नेता भी हुए जो अपने समाज की पैरवी में हमेशा खड़े रहे और अपने राजनैतिक जीवन को दूसरे नम्बर पर रखा। उन्हीं की विरासत है कि राजस्थान के किसी भी हिस्से में राजपूतों से जुड़ा कोई भी आन्दोलन हो। कालवी परिवार आज भी सक्रिय भूमिका निभाता है। आज उनकी पुण्यतिथि है और जूम न्यूज उन्हें नमन करता है।

शायद यही वजह है कि अपने चले जाने के तीन दशक बाद भी कल्याणसिंह कालवी को याद करना राजपूत समाज के लोगों को गर्व से भर देता है। साथ ही समाज पर आने वाले किसी तरह के तात्कालिक संकट के चलते उनके पुत्र लोकेन्द्रसिंह की ओर नजरें उठती हैं, भले वे किसी राजनीतिक पद पर नहीं हों।

वे राजनीतिज्ञ होने के बावजूद सामाजिक छवि की वजह से अनूठी पहचन रखते थे। जोगां ने जग पूछै, नाजोगा ने कुण पूछै...। यह नारा था कल्याणसिंह कालवी का। अर्थात योग्य लोगों की पूछ होती है, अयोग्य की नहीं। बाड़मेर से जनता दल के टिकट पर चुनाव जीतकर संसद पहुंचे कल्याण सिंह कालवी चंद्रशेखर सरकार में मंत्री रहे थे और वह चंद्रशेखर के भरोसेमंद साथियों में से एक थे। 

नागौर जिले की जायल तहसील के छोटे से गांव कालवी में ठाकुर जसवंत सिंह के घर 4 दिसंबर 1934 को जन्में कल्याण सिंह ने अपनी प्राथमिक से सैकंडरी तक की शिक्षा जोधपुर के प्रसिद् चैपासनी स्कूल से व बी.ए. तक की शिक्षा महाराज कुमार कालेज जोधपुर से पूर्ण की।

राष्ट्रीय स्तर पर सामाजिक व राजनैतिक परिदृश्य पर उभरे कल्याण सिंह आम आदमी से खासकर किसानों से बेहद लगाव रखते थे और आम आदमी के साथ अपने स्नेहिल व आत्मीय व्यवहार को जीवन की सबसे बड़ी पूंजी मानते थे। 27 जुलाई 1992 को मुंबई में हृदयाघात कालवी साहब का आकस्मिक निधन हुआ जो आम किसान के साथ साथ राजपूत समुदाय के लिए सबसे बड़ी क्षति का दिन साबित हुआ। इसे सबसे बड़ी क्षति इसलिए कहा जाएगा कि इसके बाद राजपूत समाज में ऐसा कोई राजनैतिक व्यक्ति नजर नहीं आता जो सिर्फ समाज के लिए अपने कॅरियर की परवाह नहीं करे।

हालांकि कल्याणसिंह के पुत्र लोकेन्द्रसिंह कालवी जिन्होंने करणी सेना का गठन किया। वे अपने पिता की सामाजिक विरासत को संभाले हैं, लेकिन वे राजनैतिक रूप से सफल नहीं हो पाए हैं। उन्हें एक बार बीजेपी ने बाड़मेर लोकसभा से टिकट भी दिया, लेकिन वे जीत नहीं पाए। हालांकि लोकेन्द्रसिंह की सामाजिक सक्रियता का इस पर फर्क नहीं पड़ता। राजपूत समाज से जुड़े हुए जितने भी राजनैतिक या सामाजिक आन्दोलन हुए हैं। उनमें उनके परिवार की सक्रियता हमेशा रही है। कल्याणसिंह कालवी के जीवित रहते वे सक्रिय रहे और उनके बाद उनके पुत्र और परिवार के अन्य लोगों ने इस विरासत को आगे बढ़ाया। राजस्थान में पहली बार किसी संगठन ने यह नारा दिया उपेक्षितों को आरक्षण और आरक्षितों को संरक्षण। यह सामाजिक न्याय मंच था, जिसने न केवल राजपूत बल्कि अन्य सभी वंचित लोगों की आवाज उठाई। अगुवाई कल्याणसिंह के पुत्र लोकेन्द्रसिंह के नेतृत्व में हुई। करणी सेना के गठन के बाद इतिहास से जुड़े तथ्यों को तोड़मरोड़कर पेश करने के मुद्दों पर लगातार सक्रियता नजर आती है। यही नहीं समाज से जुड़े प्रत्येक आन्दोलन में लोकेन्द्रसिंह मुखर रहे हैं। आनन्दपाल प्रकरण तो नया है, परन्तु इससे पहले सती आन्दोलन में ठाकुर कल्याणसिंह की सक्रियता कौन भूला है।  

ऐसे आगे बढ़े कालवी

मेवाड़ के महाराणा उदयसिंह के पुत्र शक्तिसिंह के वंशज शक्तावत कालवी परिवार की कई पीढ़ियां मेवाड़ के बांसी (चितौड़गढ़) में रहने के बाद इसी परिवार के अनूपसिंह लगभग चार सौ वर्ष पहले मारवाड़ रियासत की फौज में आये। जोधपुर रियासत ने इस परिवार को कालवी ठिकाने की जागीरदारी दी थी जो देश की आजादी तक यथावत रही। कल्याण सिंह कालवी ने अपनी नैसर्गिक नेतृत्व क्षमता का परिचय बचपन में ही उस वक्त दे दिया था जब वे जोधपुर की चैपासनी स्कूल में शिक्षा ग्रहण कर रहे थे, आजादी के बाद चैपासनी स्कूल का सरकार द्वारा अधिग्रहण करने के आदेश देने के बाद आपने सरकार के उक्त निर्णय के खिलाफ बढ़ चढ़ कर आंदोलन में भाग लिया,

इसी आन्दोलन में समाज के महान चिंतक व सामाजिक नेता स्व. आयुवान सिंह शेखावत और स्व. तनसिंह, बाड़मेर ने आपके भीतर भविष्य का नेता देखा व आंदोलन में महत्त्वपूर्ण दायित्व दिया जिसे आपने सशक्त नेतृत्व देकर पूरा किया। जागीरदारी उन्मूलन कानून की आड़ में सरकार द्वारा गरीब व आम राजपूतों की जमीन छीन कर दूसरों को बांट देने के खिलाफ राजपूत समाज द्वारा किये गये भूस्वामी आंदोलन में भी आपने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई और अनेक उच्चस्तरीय वार्ताओं से दूर रहकर जन समर्थन जुटाने के लिए दिन रात एक कर जमीनी स्तर पर कार्य किया। उस वक्त आप आप कालेज के विद्यार्थी थे और जयपुर के हथरोई किले को अपना केंद्र बना भूस्वामी आंदोलन में सक्रिय रहे।

प्रत्येक आन्दोलन में जुटे कालवी

भूस्वामी आंदोलन में भाग लेने के साथ ही आपका राजनीति में भी पदार्पण हो चूका था और आप रामराज्य परिषद पार्टी के गठन के साथ पार्टी से जुड़ गये, उस वक्त ठाकुर मदनसिंह, दांता रामराज्य परिषद के सर्वसम्मति से प्रदेश अध्यक्ष चुने गये थे। लेकिन इस पार्टी का अस्तित्व ज्यादा दिन नहीं रह पाया और जब राजस्थान के राजा महाराजाओं व जागीरदारों ने स्वतंत्र पार्टी बनाई तब आप स्वतंत्र पार्टी में शामिल हो गए। जिसकी अध्यक्ष जयपुर की राजमाता गायत्री देवी थी और आपको पार्टी में प्रदेश महामंत्री की जिम्मेदारी दी गई। यह आपकी सक्रियता व मेहनत का ही परिणाम था कि उस वक्त स्वतंत्र पार्टी लगातार दो बार दूसरी बड़ी पार्टी के रूप में उभरी। 1977 में इंदिरा गाँधी के खिलाफ उभरी जनभावनाओं के बाद जब जनता पार्टी बनी तब आपको जनता पार्टी का प्रदेश महामंत्री मनोनीत किया गया। लेकिन विभिन्न विचारधाराओं के जमावड़ा वाली यह पार्टी ज्यादा दिन नहीं चल पाई और बिखर गई और जनता दल बना जिसमें कालवी ने प्रदेश के प्रमुख

नेता के तौर पर अपनी पहचान कायम रखते हुए अपना दायरा विशाल रखा। आम आदमी व गरीब किसान से सीधे जुड़ाव वाले कालवी ने हालाँकि चुनाव बहुत कम जीते पर जनता के साथ आत्मीय भाव रखने के चलते लोगों का दिल खूब जीता, समाज के लोगों से आत्मीयता भाव प्रधान रिश्तों की बदौलत वे चुनावों में भी राजनैतिक समीकरणों के जोड़तोड़ को छोड़ भावनात्मक निर्णय लेने में पीछे नहीं रहते थे और यही भावनात्मक निर्णयों के चलते चुनावों में उन्हें विपरीत परिणाम मिलते पर उन्होंने उसकी कभी परवाह नहीं की। अपने जीवन में उन्होंने कुल नौ चुनाव लड़े जिनमें से चार चुनावों में वे सफल हो पाये। 1964 में आपने गेगोली पंचायत से सरपंच का चुनाव जीत कर चुनावी सफर की शुरुआत की थी, 1977 में आपने मकराना से विधानसभा चुनाव लड़ा और पराजित हुये लेकिन 1978 का बनेड़ा से आपने उपचुनाव जीता और विधानसभा में पहुंचे, 1980 में आपने दांता रामगढ विधानसभा से, 1982 में उदयपुर लोकसभा से उपचुनाव व 1984 में नागौर से लोकसभा चुनाव लड़ा और पराजित हुये, 1985 से डेगाना विधानसभा सीट से व 1989 में बाड़मेर लोकसभा सीट से आप विजयी रहे और आखिरी चुनाव 1991 में बाड़मेर लोकसभा से नहीं जीत पाये। इस तरह होश सँभालते ही राजनीतिज्ञों के सानिध्य में रहे कालवी ने क्रमशः रामराज्य परिषद, स्वतंत्र पार्टी, जनता पार्टी, जनता दल के शीर्षस्थ नेता रहते हुए पंचायत से संसद तक का सफर किया वे राजस्थान में भैरोंसिंह शेखावत सरकार में मंत्री रहे, वहीं केंद्र में चंद्रशेखर सरकार में ऊर्जामंत्री रहे। प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के साथ आपके आजीवन मधुर राजनैतिक व व्यक्तिगत संबंध रहे। 


कालवी की पुण्यतिथि पर उन्हें शतश: नमन।


Disclaimer

अपनी वेबसाइट पर हम डाटा संग्रह टूल्स, जैसे की कुकीज के माध्यम से आपकी जानकारी एकत्र करते हैं ताकि आपको बेहतर अनुभव प्रदान कर सकें, वेबसाइट के ट्रैफिक का विश्लेषण कर सकें, कॉन्टेंट व्यक्तिगत तरीके से पेश कर सकें और हमारे पार्टनर्स, जैसे की Google, और सोशल मीडिया साइट्स, जैसे की Facebook, के साथ लक्षित विज्ञापन पेश करने के लिए उपयोग कर सकें। साथ ही, अगर आप साइन-अप करते हैं, तो हम आपका ईमेल पता, फोन नंबर और अन्य विवरण पूरी तरह सुरक्षित तरीके से स्टोर करते हैं। आप कुकीज नीति पृष्ठ से अपनी कुकीज हटा सकते है और रजिस्टर्ड यूजर अपने प्रोफाइल पेज से अपना व्यक्तिगत डाटा हटा या एक्सपोर्ट कर सकते हैं। हमारी Cookies Policy, Privacy Policy और Terms & Conditions के बारे में पढ़ें और अपनी सहमति देने के लिए Agree पर क्लिक करें।