Karva Chauth Vrat Katha: करवा चौथ पर पढ़ें ये तीन व्रत कथाएं, सुहागिनों को मिलेगा मनचाहा फल

Karva Chauth Vrat Katha - करवा चौथ पर पढ़ें ये तीन व्रत कथाएं, सुहागिनों को मिलेगा मनचाहा फल
| Updated on: 09-Oct-2025 06:12 PM IST
Karwa Chauth 2025: करवा चौथ का पावन व्रत कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया जाता है. इस वर्ष, 10 अक्टूबर को सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु, सुख-समृद्धि और अखंड सौभाग्य की कामना के लिए निर्जला व्रत रखेंगी. द्रिक पंचांग के अनुसार, इस दिन भगवान शिव, माता पार्वती, भगवान गणेश और कार्तिकेय की पूजा की जाती है. महिलाएं चंद्रोदय के बाद चंद्रमा को अर्घ्य देकर ही अपना व्रत खोलती हैं और पूजन के समय व्रत कथाओं का पाठ करना अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है. यहां तीन प्रमुख कथाएं दी गई हैं, जिन्हें पढ़कर आपको मनचाहा फल मिल सकता है.

अंधी बुढ़िया माई की व्रत कथा

एक अंधी बुढ़िया रोज गणेशजी और चौथ का व्रत करती थी. उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर गणेशजी ने उसे वरदान मांगने को कहा. बुढ़िया ने अपने बेटे, बहू और पड़ोसिन से पूछने के बाद अंततः गणेशजी से नेत्रों की रोशनी, धन, निरोगी काया, अमर सुहाग, पोते को सोने के कटोरे में दूध पीता देखने का सौभाग्य और समस्त परिवार के सुख की कामना की. गणेशजी ने उसकी चतुरता पर प्रसन्न होकर सभी मनोकामनाएं पूर्ण कीं. यह कथा बताती है कि सच्ची श्रद्धा से मांगी गई हर इच्छा पूरी होती है.

साहूकार के सात बेटों और सात बेटियों की व्रत कथा

एक साहूकार की बेटी ने करवा चौथ का व्रत रखा था. उसके भाइयों ने उसे भूख से व्याकुल देखकर छल से दीपक जलाकर चंद्रमा का भ्रम पैदा किया, जिससे उसने समय से पहले व्रत तोड़ दिया और इसका परिणाम यह हुआ कि उसके पति की मृत्यु हो गई. अपनी गलती का एहसास होने पर उसने पति के शव का अंतिम संस्कार नहीं किया और पूरे साल चतुर्थी का व्रत करती रही. अगले करवा चौथ पर उसने विधि-विधान से पूजा की और करवा माता से अपने पति के पुनर्जीवन की प्रार्थना की. उसके सतीत्व और निष्ठा से प्रसन्न होकर करवा माता ने उसके पति को जीवनदान दिया.

करवा चौथ की धोबिन की व्रत कथा

करवा नामक एक पतिव्रता धोबिन अपने पति के साथ तुंगभद्रा नदी के किनारे रहती थी. एक बार उसके पति को मगरमच्छ ने पकड़ लिया. करवा ने कच्चे धागे से मगरमच्छ को बांधकर यमराज के द्वार तक खींच लिया. उसने यमराज से मगरमच्छ को दंडित करने और अपने पति को जीवनदान देने की विनती की और करवा के साहस और सतीत्व से प्रभावित होकर यमराज ने मगर को यमपुरी भेज दिया और उसके पति को दीर्घायु का वरदान दिया. तभी से करवा चौथ का व्रत प्रचलित हुआ. यह कथा पति के प्रति अटूट प्रेम और विश्वास का प्रतीक है.

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