पुण्यतिथि विशेष: लाल बहादुर शास्त्री ने दहेज में लिया खादी और चरखा, दिया 'जय जवान जय किसान' का नारा

पुण्यतिथि विशेष - लाल बहादुर शास्त्री ने दहेज में लिया खादी और चरखा, दिया 'जय जवान जय किसान' का नारा
| Updated on: 11-Jan-2020 12:30 PM IST
वाराणसी | काशी के लाल और देश के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने अपने कार्यकाल में देश को कई संकटों से उबारा। वह अपनी साफ-सुथरी क्षवि के लिए जाने जाते थे। कम ही राजनेता ऐसे होते हैं, जिन्हें हर वर्ग का स्नेह और सम्मान मिलता है। शास्त्री जी अपने सादगीपूर्ण जीवन और नैतिकता के चलते ही वे देश के सर्वाधिक लोकप्रिय नेताओं में शुमार हुए।

11 जनवरी को उनकी पुण्यतिथि मनाई जाती है। उनका जन्म 2 अक्टूबर 1964 यूपी के चंदौली जिले के मुगलसराय में हुआ। परिवार में सबसे छोटा होने के कारण लोग प्यार से 'नन्हे' कहकर ही बुलाया करते थे। जब ये 18 महीने के हुए तब उनके पिता का निधन हो गया। इनकी मां रामदुलारी अपने पिता हजारीलाल के घर मिर्जापुर चली गईं। ननिहाल में रहते हुए उन्होंने प्राथमिक शिक्षा ग्रहण की। वे नदी तैरकर स्कूल जाते थे।

आगे की पढ़ाई के लिए उन्हें वाराणसी में चाचा के साथ रहने के लिए भेज दिया गया। उनके बाद की शिक्षा हरिश्चन्द्र हाई स्कूल और काशी विद्यापीठ में हुई। देश के सर्वाधिक सम्मानित नेताओं में देश के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री का नाम भी बहुत आदर से लिया जाता है। वह 9 जून 1964 से 11 जनवरी 1966 को अपनी मृत्यु तक भारत के प्रधानमंत्री रहे। आइये जानते हैं शास्त्री जी के बारे में कुछ अनोखी बातें...

जब देश ने रखा एक दिन का उपवास

1964 में जब वह प्रधानमंत्री बने थे तब देश खाने की चीजें आयात करता था। उस वक्त देश उत्तरी अमेरिका पर अनाज के लिए निर्भर था। 1965 में पाकिस्तान से जंग के दौरान देश में भयंकर सूखा पड़ा। उन्होंने अपने प्रथम संवाददाता सम्मेलन में कहा था कि उनकी पहली प्राथमिकता खाद्यान्न मूल्यों को बढ़ने से रोकना है। तब के हालात देखते हुए उन्होंने देशवासियों से एक दिन का उपवास रखने की अपील की। इन्हीं हालात से उन्होंने हमें 'जय जवान जय किसान' का नारा दिया।

17 साल की उम्र में जेल गए

भारत की स्वतंत्रता की लड़ाई में देश के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री पहली बार 17 साल की उम्र में जेल गए लेकिन बालिग न होने की वजह से उनको छोड़ दिया गया। इसके बाद वह सविनय अवज्ञा आंदोलन के लिए 1930 में ढाई साल के लिए जेल गए। 1940 और फिर 1941 से लेकर 1946 के बीच भी वह जेल में रहे है। वह कुल नौ साल वह जेल में रहे।

पत्नी के खिलाफ दिया था धरना

बताया जाता है कि स्वतंत्रता की लड़ाई में जब वह जेल में थे तब उनकी पत्नी चुपके से उनके लिए आम छिपाकर ले आई थीं। इस पर वह नाराज हुए और पत्नी के खिलाफ ही धरना दे दिया। शास्त्री जी का तर्क था कि कैदियों को जेल के बाहर की कोई चीज खाना कानून के खिलाफ है।

जात-पात के सख्त खिलाफ थे

लाल बहादुर शास्त्री जी जात-पात के सख्त खिलाफ थे। उन्होंने अपने नाम के पीछे सरनेम नहीं लगाया। काशी विद्यापीठ से शास्त्री की उपाधि मिलते ही शास्त्री जी ने अपने नाम के साथ जन्म से चला आ रहा जातिसूचक शब्द श्रीवास्तव हटा दिया और शास्त्री लगा लिया।

दहेज में ली खादी और चरखा

शास्त्री जी ने अपनी शादी में दहेज लेने से इंकार कर दिया था। उनके ससुर ने बहुत जोर दिया तो उन्होंने कुछ मीटर खादी का कपड़ा और चरखा दहेज लिया।

Disclaimer

अपनी वेबसाइट पर हम डाटा संग्रह टूल्स, जैसे की कुकीज के माध्यम से आपकी जानकारी एकत्र करते हैं ताकि आपको बेहतर अनुभव प्रदान कर सकें, वेबसाइट के ट्रैफिक का विश्लेषण कर सकें, कॉन्टेंट व्यक्तिगत तरीके से पेश कर सकें और हमारे पार्टनर्स, जैसे की Google, और सोशल मीडिया साइट्स, जैसे की Facebook, के साथ लक्षित विज्ञापन पेश करने के लिए उपयोग कर सकें। साथ ही, अगर आप साइन-अप करते हैं, तो हम आपका ईमेल पता, फोन नंबर और अन्य विवरण पूरी तरह सुरक्षित तरीके से स्टोर करते हैं। आप कुकीज नीति पृष्ठ से अपनी कुकीज हटा सकते है और रजिस्टर्ड यूजर अपने प्रोफाइल पेज से अपना व्यक्तिगत डाटा हटा या एक्सपोर्ट कर सकते हैं। हमारी Cookies Policy, Privacy Policy और Terms & Conditions के बारे में पढ़ें और अपनी सहमति देने के लिए Agree पर क्लिक करें।