घाटी में तनाव: कश्मीरी पंडितों सहित हिंदू समुदाय को लश्कर-ए-इस्लाम की धमकी, सुरक्षा बल सतर्क
घाटी में तनाव - कश्मीरी पंडितों सहित हिंदू समुदाय को लश्कर-ए-इस्लाम की धमकी, सुरक्षा बल सतर्क
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Updated on: 16-Apr-2022 04:16 PM IST
कश्मीरी पंडितों व हिंदुओं को धमकी भरे पत्र और इन समुदायों के लोगों पर हो रहे हमलों ने घाटी में दहशत और असुरक्षा का माहौल बना दिया है। हाल में वीरवन बारामुला की पंडित कॉलोनी में कश्मीरी पंडितों को एक नया धमकी भरा पत्र सामने आया। कॉलोनी में रह रहे एक शख्स ने बताया कि यह पत्र उन्हें डाक से मिला।कश्मीरी पंडितों और अन्य गैर मुसलमानों को इस्लाम कबूल करने को कहा आतंकी संगठन लश्कर-ए-इस्लाम का जो पत्र बारामुला में सामने आया है, उसमें कश्मीरी पंडितों और अन्य गैर मुसलमानों को इस्लाम कबूल करने या आतंकवादी संगठन के हमलों का सामना करने की धमकी दी गई है। कॉलोनी में रहने वाले एक पंडित ने बताया कि धमकी भरा पत्र डाक से पहुंचा, जो कॉलोनी के सुरक्षाकर्मियों को मिला।पुलिस ने कहा शिविर की सुरक्षा बढ़ाएंगेकालोनी के एक निवासी ने बताया कि वह पत्र के साथ डिप्टी कमिश्नर और एसएसपी बारामुला के पास गए और उन्हें सूचित किया। उन्होंने एसएचओ से मिलने के लिए कहा। उन्होंने कहा कि पुलिस ने कहा कि वे शिविर की सुरक्षा बढ़ाएंगे, लेकिन सभी के लिए व्यक्तिगत सुरक्षा संभव नहीं है।350 लोग इस पंडित कॉलोनी में रह रहेकहा कि लगभग 350 लोग इस पंडित कॉलोनी में रह रहे हैं और उनमें से 150 ऐसे हैं, जो रोजाना काम के लिए बाहर जाते हैं। पुलिस के अनुसार वे धमकी पत्र की जांच कर रही है। सामाजिक कार्यकर्ता विजय रैना और देवसर कुलगाम के सरपंच ने एलजी से धमकी वाले पत्र को गंभीरता से लेने की अपील की है।2015 में लश्कर-ए-इस्लाम का सफाया कर दिया गया थापुलिस के अनुसार 2015 में लश्कर-ए-इस्लाम का सफाया कर दिया गया था। तब से उनकी गतिविधि कश्मीर में कहीं नहीं देखी गई थी। धमकी वाले पत्र की जांच कर रहे हैं। इस बीच कश्मीर में रहने वाले सभी कश्मीरी पंडितों और गैर-मुस्लिमों की सुरक्षा की लगातार समीक्षा की जा रही है। सुरक्षाबलों ने आतंकवाद विरोधी अभियानों को किया तेज हाल में हुई हत्याओं के बाद से कश्मीरी पंडितों व हिंदुओं के बीच भय का माहौल है। वह सहमे हैं। उनका कहना है कि इन हत्याओं के बाद घरों से निकलने में डर लगता है। हालांकि सुरक्षाबलों ने आतंकवाद विरोधी अभियानों को तेज कर दिया है और आतंकवादियों के साथ-साथ उनके समर्थकों पर भी बड़ी कार्रवाई शुरू कर दी है, लेकिन यह सॉफ्ट टारगेट किलिंग सुरक्षाबलों के लिए बड़ी चुनौती बनी हुई है।तौर-तरीके बदले, मानसिकता आज भी वही कश्मीरी पंडित संघर्ष समिति (केपीएसएस) के अध्यक्ष संजय तिक्कू ने कहा कि कश्मीर घाटी में हालात एक बार फिर से 90 के दशक की ओर बढ़ रहे हैं। तिक्कू ने कहा कि केपीएसएस ने पहले ही कहा था कि कश्मीर घाटी के हालात 1990 के दशक की ओर लौट रहे हैं। 1990 में मस्जिदों में हत्याओं की सूचियां प्रसारित की गईं, जबकि 2022 में इन सूचियों को इंटरनेट और सोशल मीडिया डाला गया। तौर-तरीके बदले हैं, लेकिन मानसिकता वही है। स्थानीय आबादी के समर्थन के बिना संभव नहीं बर्बर कृत्यसंजय तिक्कू ने कहा कि जघन्य और बर्बर कृत्य स्थानीय आबादी के समर्थन के बिना संभव नहीं हैं। कश्मीरी समाज की भूमिकाएं हालांकि संख्या में छोटी है, कश्मीरी पंडितों, कश्मीरी घाटी में रहने वाले कश्मीरी हिंदुओं के खिलाफ लक्षित अपराधों के लिए पूरी तरह से दोषमुक्त नहीं हो सकती है। कहा कि प्रत्येक ज्ञात या अज्ञात बंदूकधारी एक स्थानीय व्यक्ति है और उनकी मदद करने वाले ओजीडब्ल्यू भी हमारे अपने कश्मीरी समाज से हैं।अल्पसंख्यकों की सुरक्षा दांव पर तिक्कू ने कहा कि सामूहिक चुप्पी कभी न खत्म होने वाली रिक्तियों के साथ विश्वास की कमी पैदा करती है। उन्होंने कहा कि अल्पसंख्यकों की सुरक्षा दांव पर है और सरकार को इस स्थिति से कोई सरोकार नहीं है। यह स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि या तो प्रशासन की अल्पसंख्यकों को बचाने में कोई दिलचस्पी नहीं है या वे स्थिति को संभालने में अक्षम हैं। दोनों ही मामलों में कश्मीर को उस अंधेरे में धकेल दिया जाता है, जिसने 1990 के दशक की शुरुआत में इस जगह को घेर लिया था।सुरक्षित करने में सरकार फिर विफल तिक्कू ने कहा कि 1990 में गठबंधन सरकार कश्मीर घाटी में अल्पसंख्यकों को सुरक्षित करने में विफल रही, जिसकारण बड़े पैमाने पर पलायन हुआ और पिछले तीन वर्षों में वही सरकार कश्मीर में रहने वाले अल्पसंख्यकों को सुरक्षित करने में फिर से विफल रही। यह दर्शाता है कि कश्मीरी समाज और प्रशासन की विफलता के कारण कश्मीरी अल्पसंख्यकों को फिर से कश्मीर घाटी छोड़ना होगा।
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