अंगदान: एक युवक के अंगों से रोशन होगी आठ लोगों की जिंदगी, 13 मिनट में तय की 19 किलोमीटर की दूरी

अंगदान - एक युवक के अंगों से रोशन होगी आठ लोगों की जिंदगी, 13 मिनट में तय की 19 किलोमीटर की दूरी
| Updated on: 30-Mar-2022 09:48 AM IST
गुरुग्राम यातायात पुलिस ने मंगलवार सुबह करीब सवा सात बजे हृदय जयपुर और फेफड़ा व आंख हैदराबाद तक पहुंचाने के लिए सिरहौल टोल तक 19 किलोमीटर का सफर 13 मिनट में तय किया। जहां से दिल्ली पुलिस की टीम इसे एयरपोर्ट तक ले गई। ग्रीन कॉरिडोर बनाकर इस काम को अंजाम दिया गया। 

इसके लिए एक एसीपी, चार ट्रैफिक इंस्पेक्टर और करीब 55 जवानों को तैनात किया गया था। इस दौरान ट्रैफिक रोका गया और कट व यूटर्न बंद कर दिए गए। सड़क हादसे में घायल होने के बाद ब्रेन डेड घोषित किए गए युवक के विभिन्न अंगों से आठ लोगों की जिंदगी रोशन होगी।

अस्पताल से मिली जानकारी के मुताबिक, गुरुग्राम निवासी एक 25 वर्षीय युवक सड़क हादसे में घायल हो गया था। उसे आर्टेमिस अस्पताल में ब्रेन डेड घोषित कर दिया गया था। इसके बाद डॉक्टरों ने परिजनों को अंगदान करने के लिए चर्चा की। इसको लेकर परिजन तैयार हो गए। डॉ. सौरभ आनंद और डॉ. वरुण मित्तल ने प्रक्रिया पूरी कराई। 

मंगलवार सुबह एक किडनी आर्टेमिस अस्पताल में मरीज को लगाई गई। एक किडनी और लीवर मेदांता अस्पताल में मरीज को भेजा गया, जबकि हृदय जयपुर के एक अस्पताल और फेफड़े, आंख को हैदराबाद के एक अस्पताल में भेजा जाना था। कुल मिलाकर आठ लोगों को युवक के दान किए अंग लगाए जाने हैं। जयपुर और हैदराबाद से डॉक्टरों की टीम आर्टेमिस अस्पताल पहुंची थी। 

इसके लिए एक ग्रीन कॉरिडोर की व्यवस्था यातायात पुलिस से की गई थी। डीसीपी ट्रैफिक आरएस तोमर ने बताया कि यातायात पुलिस को अस्पताल से जानकारी मिली कि कम समय में एयरपोर्ट से एक हृदय जयपुर और फेफड़े व आंख हैदराबाद भेजने हैं। 

इसके लिए यातायात पुलिस ने मंगलवार सुबह करीब सवा सात बजे आर्टेमिस अस्पताल से दिल्ली बॉर्डर तक के लिए ग्रीन कॉरिडोर बना दिया। दो एंबुलेंस में यह अंग रखे गए थे। 13 मिनट में सिरहौल टोल पार कराया दिया गया। वहां से दिल्ली पुलिस की टीम इसे एयरपोर्ट तक लेकर गई। 

बेटा हमेशा जिंदा रहेगा: पिता

अस्पताल प्रबंधन की ओर से जारी बयान के मुताबिक, मृतक के पिता हरीश सिंह का कहना है कि इस दुनिया में अंत में सब कुछ खाक हो जाएगा। हम यह सोचकर अपने दिल को तसल्ली देंगे कि हमारे बेटे का अंग अभी भी इस दुनिया में कहीं, किसी में जीवित है। मृतक के भाई का कहना था कि मैं एक व्यक्ति के रूप में अब तक कुछ भी नहीं हूं, लेकिन आज से मुझे मेरे को भूपेंद्र के भाई के रूप में जानेंगे। 

जिन्होंने उनकी मृत्यु के बाद भी कई लोगों की जान बचाई। वहीं,  किडनी ट्रांसप्लांट एंड यूरो-ऑन्कोलॉजी एंड रोबोटिक सर्जरी, आर्टेमिस अस्पताल के डॉ. वरुण मित्तल का कहना है कि हर साल, भारत में सैकड़ों लोग अंग प्रत्यारोपण की प्रतीक्षा में जान गंवा देते हैं। हमें समाज में एक स्पष्ट बदलाव देखना है तो अंगदान के बारे में लोगों में जागरूकता बढ़ानी होगी। इसके बारे में गलत धारणाओं से लड़ना होगा।


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