Madvi Hidma: एक करोड़ का इनामी नक्सली कमांडर हिडमा और उसकी पत्नी मुठभेड़ में ढेर

Madvi Hidma - एक करोड़ का इनामी नक्सली कमांडर हिडमा और उसकी पत्नी मुठभेड़ में ढेर
| Updated on: 18-Nov-2025 11:54 AM IST
आंध्र प्रदेश और छत्तीसगढ़ की सीमा पर सुरक्षाबलों द्वारा चलाए गए एक बड़े और। सुनियोजित अभियान में, भारत के सबसे कुख्यात माओवादी कमांडरों में से एक, मादवी हिडमा, और उसकी पत्नी को एक भीषण मुठभेड़ में मार गिराया गया है। यह घटना दोनों राज्यों के सीमावर्ती, घने और दुर्गम जंगली इलाकों में हुई, जहां सुरक्षाबलों और नक्सलियों के बीच कई घंटों तक गोलीबारी चली और मादवी हिडमा, जिसकी उम्र लगभग 43 वर्ष थी, पिछले दो दशकों से भारतीय सुरक्षा बलों के लिए एक बड़ी चुनौती बना हुआ था। उस पर विभिन्न हिंसक गतिविधियों और हमलों के लिए एक करोड़ रुपये का भारी-भरकम इनाम घोषित था। इस सफल ऑपरेशन को माओवादी संगठन के लिए एक बहुत बड़ा और संभवतः अपूरणीय झटका माना जा रहा है, क्योंकि हिडमा न केवल एक प्रमुख सैन्य रणनीतिकार था, बल्कि संगठन के भीतर सबसे प्रभावशाली और युवा चेहरों में से एक भी था, जिसकी मौत से उनकी कमर टूट सकती है और

मुठभेड़ का विवरण: सीमावर्ती जंगल में गहन ऑपरेशन

यह महत्वपूर्ण मुठभेड़ आंध्र प्रदेश के अल्लूरी जिले और छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले के सीमावर्ती क्षेत्रों में स्थित विशाल और घने जंगलों में हुई। सुरक्षाबलों को माओवादियों की एक बड़ी टुकड़ी की गतिविधियों के बारे में गुप्त और सटीक खुफिया जानकारी मिली थी, जिसमें हिडमा की उपस्थिति की पुष्टि भी शामिल थी। इसी जानकारी के आधार पर, आंध्र प्रदेश पुलिस और विशेष बलों की एक संयुक्त टीम ने एक गहन सर्च और घेराबंदी अभियान शुरू किया। सुरक्षाबलों ने अत्यंत सावधानी और रणनीति के साथ जंगल में माओवादियों के संभावित ठिकानों को घेर लिया। घेराबंदी के दौरान, नक्सलियों ने अचानक और अप्रत्याशित रूप से जवानों पर फायरिंग शुरू कर दी, जिसके जवाब में सुरक्षाबलों ने भी तुरंत और प्रभावी जवाबी कार्रवाई की और दोनों ओर से हुई इस भीषण गोलीबारी में, मादवी हिडमा और उसकी पत्नी को कई गोलियां लगीं, जिससे उनकी मौके पर ही मौत हो गई। इस ऑपरेशन की सफलता सुरक्षाबलों की उत्कृष्ट खुफिया जानकारी, सुनियोजित रणनीति और अदम्य साहस का परिणाम है।

कौन था मादवी हिडमा और माओवादी संगठन का बढ़ता चेहरा

मादवी हिडमा का जन्म वर्ष 1981 में छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले के पुवर्ती इलाके में हुआ था, जो नक्सल प्रभावित क्षेत्र के केंद्र में स्थित है। वह बेहद कम उम्र में ही माओवादी संगठन से जुड़ गया था और अपनी क्रूरता, रणनीतिक कौशल और गुरिल्ला युद्ध में महारत के कारण संगठन के भीतर तेजी से कमांडर के पद तक पहुंच गया और हिडमा न केवल पीपुल्स लिबरला गुरिल्ला आर्मी (PLGA) की बटालियन नंबर 1 का प्रमुख था, जो माओवादियों की सबसे खतरनाक और प्रशिक्षित इकाइयों में से एक मानी जाती है, बल्कि वह सीपीआई (माओवादी) की केंद्रीय समिति का भी सबसे कम उम्र का सदस्य था। उसकी रणनीतिक सोच, जंगलों में छिपकर हमला करने की क्षमता और सुरक्षाबलों को चकमा देने की विशेषज्ञता ने उसे संगठन का एक अत्यंत प्रभावशाली, खतरनाक और लगभग अजेय चेहरा बना दिया था और वह सुरक्षाबलों के लिए एक अबूझ पहेली बना हुआ था, जिसे पकड़ना या मार गिराना एक बड़ी और लगातार चुनौती थी।

प्रमुख हमलों का मास्टरमाइंड: हिडमा का खूनी इतिहास

हिडमा को कम से कम 26 बड़े और घातक हमलों की योजना बनाने और उन्हें सफलतापूर्वक अंजाम देने का मास्टरमाइंड माना जाता था। उसके द्वारा किए गए सबसे कुख्यात और घातक हमलों में से एक वर्ष 2013 का छत्तीसगढ़ के दरभा घाटी नरसंहार था। इस भीषण नरसंहार में कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं सहित कुल 27 लोग मारे गए थे, जिसने पूरे देश को स्तब्ध कर दिया था और राष्ट्रीय सुरक्षा पर गंभीर सवाल खड़े किए थे। इसके अलावा, वर्ष 2017 में सुकमा में केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (CRPF) पर हुए घातक हमले में भी उसकी मुख्य भूमिका थी, जिसमें 25 बहादुर जवान शहीद हो गए थे। इन हमलों ने हिडमा को सुरक्षाबलों की 'मोस्ट वांटेड' सूची में शीर्ष पर ला दिया था, और उसकी गिरफ्तारी या खात्मे के लिए एक करोड़ रुपये का भारी-भरकम इनाम घोषित किया गया था। उसका नाम आतंक और हिंसा का पर्याय बन चुका था।

पत्नी की भी नक्सल गतिविधियों में सक्रिय संलिप्तता

इस सफल मुठभेड़ में मादवी हिडमा के साथ उसकी पत्नी भी मारी गई, जो स्वयं भी नक्सली संगठन में सक्रिय रूप से शामिल थी। उसकी पत्नी भी हिडमा के साथ मिलकर कई नक्सल गतिविधियों को अंजाम देती थी और संगठन के भीतर उसकी एक महत्वपूर्ण भूमिका थी। वह भी कई ऑपरेशनों में सक्रिय रही थी और माओवादी नेटवर्क का एक अभिन्न अंग थी। सुरक्षा एजेंसियों को लंबे समय से हिडमा और उसकी पत्नी दोनों की गतिविधियों के बारे में लगातार इनपुट मिल रहे थे, और इस। सफल ऑपरेशन से दोनों को एक साथ खत्म करने में कामयाबी मिली है, जिससे माओवादी संगठन को एक गहरा और दोहरा झटका लगा है। यह दर्शाता है कि संगठन के भीतर महिलाओं की भी महत्वपूर्ण भूमिकाएं थीं।

माओवादी संगठन पर गहरा और दूरगामी प्रभाव

सुरक्षा एजेंसियों का मानना है कि मादवी हिडमा की मौत से माओवादी संगठन को एक बहुत बड़ा और संभवतः अपूरणीय झटका लगेगा। वह न केवल एक प्रमुख सैन्य रणनीतिकार और गुरिल्ला युद्ध विशेषज्ञ था, बल्कि दक्षिण बस्तर जैसे महत्वपूर्ण और संवेदनशील क्षेत्रों में संगठन की पकड़ बनाए रखने में उसकी भूमिका सबसे अहम मानी जाती थी। उसकी मौत से माओवादियों का नेटवर्क कमजोर होगा, उनकी कमान और नियंत्रण संरचना बुरी तरह प्रभावित होगी, और नए रंगरूटों को आकर्षित करने की उनकी क्षमता पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। यह घटना नक्सल विरोधी अभियानों में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकती है, जिससे क्षेत्र में शांति, विकास और सुरक्षा स्थापित करने के प्रयासों को अभूतपूर्व बल मिलेगा और माओवादी हिंसा में कमी आने की उम्मीद है।

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