पुण्यतिथि: देहरादून से लौटे नेहरू रातभर बेचैन रहे, सुबह दिल का दौरा पड़ा फिर सबकुछ खत्म
पुण्यतिथि - देहरादून से लौटे नेहरू रातभर बेचैन रहे, सुबह दिल का दौरा पड़ा फिर सबकुछ खत्म
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Updated on: 27-May-2020 11:34 AM IST
दिल्ली: भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू 26 मई की शाम देहरादून से थके-मांदे लौटे थे। रातभर वो बेचैन रहे। दर्द की शिकायत करते रहे। सुबह 06:30 बजे उन्हें दिल का दौरा पड़ा। जिसके बाद उन्हें बचाा नहीं जा सका। हालांकि नेहरू के निधन की खबर सरकारी तौर पर दोपहर बाद ही रिलीज की गई। 26 मई 1964 को देहरादून के पोलो ग्राउंड पर एक हेलिकॉप्टर खड़ा था। वो नेहरू को दिल्ली ले जाने वाला था। शाम 04:00 से 05:00 बजे के बीच हेलिकॉप्टर ने दिल्ली के लिए उड़ान भरी। देहरादून में एक छोटी सी भीड़ उन्हें विदा करने आई थी।मिड-डे ने कुछ साल पहले देहरादून के एक पुराने पत्रकार राज कंवर के हवाले एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी। जिसमें बताया गया था कि उस शाम नेहरू जब देहरादून से विदा हुए तो कैसे लग रहे थे।स्वास्थ्य लाभ करने देहरादून गए थे नेहरूनेहरू दरअसल देहरादून में चार दिनों के अल्प अवकाश पर आए थे। उनकी सेहत जनवरी में भुवनेश्वर में हुए हार्ट अटैक के बाद सुधर नहीं पाई थी। उनका रूटीन प्रभावित हो चुका था। उनका ज्यादातर काम बिना विभाग के मंत्री लाल बहादुर शास्त्री को दे दिया गया था। नेहरू जब चलते थे तो उनका बायां पैर दिक्कत में लगता था।देहरादून की 26 मई की वो शाम उनके जीवन की आखिरी शाम थी, जिसके बाद नेहरू कभी सार्वजनिक जीवन में नजर नहीं आए। वो बेटी इंदिरा गांधी के साथ थे। 26 मई 1964 की शाम नेहरू जब देहरादून से रवाना हुए तो कमजोर नजर आ रहे थे। उन्होंने अपने चेहरे पर मुस्कुराहट लाने की कोशिश की लेकिन चेहरे पर दर्द को छिपाना मुश्किल हो रहा थानेहरू ने जब हेलिकॉप्टर के दरवाजे पर खड़े होकर हाथ हिलाया। तब राज कंवर ने महसूस किया कि बायां हाथ ऊपर उठाते समय नेहरू के चेहरे पर कुछ दर्द उभर आया था। उनकी बेटी इंदिरा उन्हें सहारा देने के लिए खड़ी थी। नेहरू के बाएं पैर के मूवमेंट में भी दिक्कत महसूस हो रही थी। उन्होंने चेहरे पर भरपूर मुस्कुराहट लाने की कोशिश की लेकिन वो ऐसा कर नहीं पाए। रात में उन्हें अच्छे से नींद नहीं आई, दर्द थानेहरू करीब आठ बजे के आसपास दिल्ली पहुंचे। सीधे प्रधानमंत्री हाउस चले गए। रिपोर्ट्स की मानें तो वो थके हुए थे। पिछले कुछ समय से अस्वस्थ रहने का असर उनके रूटीन पर पड़ा था। वो रातभर करवटें बदलते रहे। पीठ के साथ कंधे में दर्द की शिकायत करते रहे। विश्वस्त सेवक नाथूराम उन्हें दवाएं देकर सुलाने की कोशिश करते रहे।सुबह अटैक पड़ा फिर कोमा में चले गए"द गार्जियन" की 27 मई 1964 की रिपोर्ट (जो 28 मई 1964 के अंक में प्रकाशित हुई) कहती है कि सुबह 06।30 बजे उन्हें पहले पैरालिटिक अटैक हुआ और फिर हार्ट अटैक। इसके बाद वो अचेत हुो गए। इंदिरा गांधी ने उनके डॉक्टरों को फोन किया। तीन डॉक्टर तुरंत पीएम हाउस पहुंच गए। उन्होंने अपनी ओर से भरपूर कोशिश की लेकिन नेहरू का शरीर कोमा में जा चुका था। शरीर से कोई रिस्पांस नहीं मिल रहा था, जिससे पता लगे कि इलाज का कोई असर हो भी रहा है या नहीं। कई घंटे की कोशिश के बाद डॉक्टरों ने जवाब दे दिया।27 मई से लोकसभा का सात दिनों का विशेष सत्र बुलाया गया था, जिसमें प्रधानमंत्री नेहरू खासतौर पर कश्मीर और शेख अब्दुल्ला के बारे में कुछ सवालों का जवाब देने वाले थे। जब वो संसद में नहीं पहुंचे तो बताया गया कि अचानक उनकी तबीयत खराब हो गई है।26 मई की सारी रात नेहरू बिस्तर पर करवटें बदलते रहे। वो पीठ और कंधे में दर्द की शिकायत कर रहे थे
दोपहर दो बजे राज्यसभा में बताया-नेहरू नहीं रहे दोपहर 02:00 बजे स्टील मंत्री कोयम्बटूर सुब्रह्मणयम राज्यसभा में दाखिल हुए। उनके चेहरे की हवाइयां उड़ी हुईं थीं। उन्होंने बुझे हुए स्वर में केवल इतना कहा, "रोशनी खत्म हो गई है।" लोकसभा तुरंत स्थगित कर दी गई। कुछ घंटों बाद गुलजारी लाल नंदा को कार्यवाहक प्रधानमंत्री बनाने की घोषणा की गई। आठ घंटे कोमा में रहेदोपहर 02.05 बजे तक संसद में हर सांसद के पास ये खबर पहुंच चुकी थी। "द न्यूयार्क टाइम्स" ने तुरंत नेहरू के निधन पर एक अतिरिक्त संस्करण प्रकाशित किया, देश में भी समाचार पत्रों में दिन में विशेष संस्करण प्रकाशित हुए। "द न्यूयार्क टाइम्स" ने अपनी रिपोर्ट में लिखा, " नेहरू आठ घंटे तक कोमा में रहे, उन्हें बचाया नहीं जा सका।" "द गार्जियन" ने घर के अंदरूनी सूत्रों का हवाला देते हुए रिपोर्ट दी कि उन्हें आतंरिक हैमरेज हुआ था। इसमें पहले पैरालिटिक स्ट्रोक और फिर हार्ट अटैक हुआ। शाम 04.00 बजे भीड़ तीनमूर्ति भवन पर इकट्ठी होने लगी शाम 04.00 बजे भीड़ तीनमूर्ति भवन स्थित प्रधानमंत्री हाउस के सामने इकट्ठा होने लगी। इसमें नेता, राजनयिक, आम जनता शामिल थी। अगले दिन नेहरू का पार्थिव शरीर जनता के आखिरी दर्शन के लिए रखा गया। 29 मई को उनका अंतिम संस्कार हिंदू रीतिरि्वाजों से हुआ। 'मैं लंबे समय तक जिंदा रहूंगा'हालांकि निधन के मुश्किल से एक सप्ताह पहले नेहरू ने एक प्रेस कांफ्रेंस में कहा था, "चिंता ना करें, मैं अभी लंबे समय तक जिंदा रहूंगा।"उस दिन शादियों का बड़ा साया था27 मई को देशभर में शादियों का बड़ा साया था। जैसे ही नेहरू के निधन की खबर फैली। तुरंत सदमे की शोक की स्थिति हो गई। शादियां तो हुईं लेकिन कहीं कोई बाजा-गाजा नहीं बजा।
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