UPI Payment: सिर्फ कैश... इस शहर में UPI से दुकानदार अब नहीं ले रहे पेमेंट!

UPI Payment - सिर्फ कैश... इस शहर में UPI से दुकानदार अब नहीं ले रहे पेमेंट!
| Updated on: 15-Jul-2025 08:40 AM IST

UPI Payment: बेंगलुरु, जिसे भारत की सिलिकॉन वैली और डिजिटल पेमेंट का गढ़ माना जाता है, अब एक अजीबोगरीब बदलाव के दौर से गुजर रहा है। शहर की गलियों में कभी हर दुकान पर नजर आने वाले QR कोड स्टिकर अब धीरे-धीरे गायब हो रहे हैं। उनकी जगह दुकानों पर प्रिंटआउट या हाथ से लिखे नोट टंगे हैं, जिन पर साफ लिखा है- “UPI नहीं, सिर्फ कैश!” छोटे दुकानदार, जो कभी डिजिटल इंडिया के झंडाबरदार थे, अब यूपीआई पेमेंट लेने से कतरा रहे हैं। कई ने तो पेमेंट ऐप्स का इस्तेमाल पूरी तरह बंद कर दिया है। आखिर ऐसा क्या हो गया कि डिजिटल पेमेंट का चैंपियन कहलाने वाला बेंगलुरु अब कैश की ओर लौट रहा है?

दुकानदारों की परेशानी: यूपीआई क्यों बन रहा है सिरदर्द?

इकोनॉमिक टाइम्स की एक हालिया रिपोर्ट के मुताबिक, बेंगलुरु के कई छोटे दुकानदारों ने यूपीआई का इस्तेमाल कम कर दिया है, और कुछ ने तो इसे पूरी तरह छोड़ दिया है। होरमावु के एक किराना दुकानदार शंकर (पूरा नाम नहीं बताया) ने बताया, “मैं दिन में करीब 3,000 रुपये का बिजनेस करता हूं, जिसमें से मुझे बहुत कम मुनाफा होता है। यूपीआई से पेमेंट लेना अब मेरे लिए मुश्किल हो गया है।” शंकर जैसे कई दुकानदारों का कहना है कि यूपीआई ट्रांजेक्शन उनके लिए अब परेशानी का सबब बन रहे हैं।

इस बदलाव की सबसे बड़ी वजह है जीएसटी नोटिस। बेंगलुरु में सड़क किनारे खाने-पीने की रेहड़ियां, चाय-बिस्किट की दुकानें और छोटे-मोटे व्यापार करने वाले हजारों दुकानदारों को जीएसटी विभाग की ओर से नोटिस मिले हैं। कुछ मामलों में ये नोटिस लाखों रुपये के हैं। बेंगलुरु स्ट्रीट वेंडर्स एसोसिएशन के संयुक्त सचिव और वकील विनय के. श्रीनिवास ने बताया, “जीएसटी अधिकारियों की सख्ती और भारी-भरकम टैक्स नोटिस के डर से दुकानदार डरे हुए हैं। कईयों को लगता है कि इन नोटिसों के चलते उन्हें अपनी दुकानें तक बंद करनी पड़ सकती हैं।” यही डर दुकानदारों को यूपीआई छोड़कर कैश की ओर धकेल रहा है।

जीएसटी कानून का दबाव

जीएसटी कानून के अनुसार, अगर कोई व्यापारी सामान बेचता है और उसकी सालाना कमाई 40 लाख रुपये से ज्यादा है, तो उसे जीएसटी रजिस्ट्रेशन कराना अनिवार्य है। सर्विस देने वाले बिजनेस के लिए यह सीमा 20 लाख रुपये है। कमर्शियल टैक्स डिपार्टमेंट का कहना है कि उन्होंने 2021-22 से अब तक के यूपीआई ट्रांजेक्शन डेटा का विश्लेषण कर ऐसे व्यापारियों को नोटिस भेजे हैं, जिन्होंने 40 लाख रुपये से ज्यादा की कमाई की, लेकिन न तो जीएसटी रजिस्ट्रेशन कराया और न ही टैक्स जमा किया।

विभाग के एक अधिकारी ने बताया, “हमने डेटा के आधार पर उन व्यापारियों को चिह्नित किया है, जिनके यूपीआई ट्रांजेक्शन से उनकी आय निर्धारित सीमा से ज्यादा दिख रही है। ऐसे में उन्हें रजिस्ट्रेशन कराना होगा और टैक्स जमा करना होगा।” लेकिन छोटे दुकानदारों के लिए यह प्रक्रिया जटिल और डरावनी है। कई दुकानदारों को जीएसटी नियमों की पूरी जानकारी नहीं है, और वे नोटिस के डर से यूपीआई का इस्तेमाल बंद कर रहे हैं।

कैश की वापसी: क्या है इसका असर?

बेंगलुरु जैसे शहर में, जहां डिजिटल पेमेंट ने लोगों की जिंदगी को आसान बनाया था, कैश की वापसी कई सवाल खड़े करती है। छोटे दुकानदारों का कहना है कि कैश से लेनदेन में उन्हें जीएसटी नोटिस का डर नहीं रहता, क्योंकि इसमें ट्रांजेक्शन का कोई डिजिटल रिकॉर्ड नहीं बनता। लेकिन इसका दूसरा पहलू यह है कि ग्राहकों को अब पहले की तरह कैश निकालकर रखना पड़ रहा है, जो डिजिटल इंडिया के मिशन के खिलाफ है।

इसके अलावा, यूपीआई का कम इस्तेमाल होने से छोटे व्यापारियों का बिजनेस भी प्रभावित हो सकता है। कई ग्राहक, खासकर युवा और टेक-सेवी लोग, अब कैशलेस पेमेंट को प्राथमिकता देते हैं। अगर दुकानदार यूपीआई स्वीकार नहीं करेंगे, तो वे ऐसे ग्राहकों को खो सकते हैं।

क्या है समाधान?

इस समस्या का हल निकालने के लिए विशेषज्ञों का कहना है कि जीएसटी नियमों को छोटे व्यापारियों के लिए और सरल करना होगा। विनय के. श्रीनिवास ने सुझाव दिया, “छोटे दुकानदारों के लिए जीएसटी रजिस्ट्रेशन और टैक्स फाइलिंग की प्रक्रिया को आसान करने की जरूरत है। साथ ही, उन्हें जागरूक करने के लिए जमीनी स्तर पर अभियान चलाए जाने चाहिए।”

इसके अलावा, सरकार और जीएसटी विभाग को छोटे व्यापारियों के लिए विशेष छूट या सरल टैक्स स्लैब की व्यवस्था करनी होगी, ताकि वे डिजिटल पेमेंट को अपनाने से न डरें। बेंगलुरु जैसे शहर, जो डिजिटल इंडिया का नेतृत्व करता है, वहां यूपीआई का चलन बनाए रखना जरूरी है।

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