India-US Tariff War: पीएम मोदी का रूस से तेल खरीदने पर मास्टर स्ट्रोक, ट्रंप के उड़ गए होश!

India-US Tariff War - पीएम मोदी का रूस से तेल खरीदने पर मास्टर स्ट्रोक, ट्रंप के उड़ गए होश!
| Updated on: 02-Aug-2025 04:40 PM IST

India-US Tariff War: भारत की प्रमुख तेल कंपनियां, जैसे इंडियन ऑयल, मैंगलोर रिफाइनरी एंड पेट्रोकैमिकल्स लिमिटेड, हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड, और भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड, रूस से कच्चा तेल आयात करना जारी रखे हुए हैं। न्यूज एजेंसी एएनआई के अनुसार, इन कंपनियों ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के उस दावे को खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने कहा था कि भारत ने रूस से तेल खरीदना बंद कर दिया है। भारत ने रूसी तेल के आयात को जारी रखकर वैश्विक मंच पर अपनी स्वतंत्र ऊर्जा नीति को स्पष्ट रूप से प्रदर्शित किया है।

रूस से तेल खरीदने का आधार

भारत का रूसी तेल खरीदने का निर्णय कीमत, कच्चे तेल की गुणवत्ता, स्टॉक उपलब्धता, लॉजिस्टिक्स, और अन्य आर्थिक कारकों पर आधारित है। रूस, दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा कच्चा तेल उत्पादक देश है, जो प्रतिदिन लगभग 9.5 मिलियन बैरल तेल का उत्पादन करता है। इसमें से 4.5 मिलियन बैरल कच्चा तेल और 2.3 मिलियन बैरल रिफाइंड प्रोडक्ट्स निर्यात किए जाते हैं। मार्च 2022 में, रूसी तेल के बाजार से बाहर होने के डर से ब्रेंट क्रूड की कीमतें 137 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गई थीं। ऐसे में भारत ने रणनीतिक रूप से अपने स्रोतों को अनुकूलित किया ताकि सस्ती और विश्वसनीय ऊर्जा आपूर्ति सुनिश्चित हो, साथ ही अंतरराष्ट्रीय नियमों का पालन भी किया जाए।

भारत की रणनीति और राष्ट्रीय हित

पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने दावा किया था कि भारत रूसी तेल खरीदना बंद कर सकता है और इसे एक “अच्छा कदम” बताया था। हालांकि, भारत ने अपने राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता देते हुए अपनी ऊर्जा नीति को स्वतंत्र रूप से तय करने का अधिकार बरकरार रखा। भारत ने रूसी तेल के आयात को जारी रखकर न केवल अपनी ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित की, बल्कि वैश्विक तेल बाजार को स्थिर करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

रिपोर्ट्स के अनुसार, रूसी तेल पर कभी पूर्ण प्रतिबंध नहीं लगा। इसके बजाय, G7 और EU ने प्राइस-कैप मैकेनिज्म लागू किया, जिसका उद्देश्य रूस के राजस्व को सीमित करना और साथ ही वैश्विक आपूर्ति को बनाए रखना था। भारत ने इस तंत्र का पालन करते हुए एक जिम्मेदार वैश्विक खिलाड़ी की भूमिका निभाई। यदि भारत ने रियायती रूसी तेल का आयात नहीं किया होता, खासकर तब जब OPEC+ ने प्रतिदिन 5.86 मिलियन बैरल की कटौती की थी, तो तेल की कीमतें मार्च 2022 के 137 डॉलर प्रति बैरल से भी अधिक बढ़ सकती थीं। इससे वैश्विक स्तर पर मुद्रास्फीति का दबाव और बढ़ता, जिसका असर भारत सहित कई देशों पर पड़ता।

प्राइस कैप और भारतीय कंपनियों की नीति

रूसी तेल पर अमेरिका या EU द्वारा कोई पूर्ण प्रतिबंध नहीं लगाया गया है। भारतीय तेल कंपनियां अमेरिका द्वारा सुझाए गए 60 डॉलर प्रति बैरल की प्राइस कैप का पालन करती हैं। हाल ही में, EU ने रूसी कच्चे तेल के लिए 47.6 डॉलर प्रति बैरल की नई प्राइस कैप प्रस्तावित की है, जो सितंबर से लागू होगी। भारतीय कंपनियां ईरान या वेनेजुएला जैसे देशों से तेल आयात नहीं कर रही हैं, जिन पर अमेरिका ने वास्तव में प्रतिबंध लगाए हैं। इसके विपरीत, रूस से आयात पूरी तरह से अंतरराष्ट्रीय नियमों के दायरे में है।

वैश्विक संदर्भ में रूस का तेल और गैस निर्यात

रूसी ऊर्जा संसाधनों का वैश्विक बाजार में महत्वपूर्ण स्थान है। EU, रूस के लिक्विफाइड नेचुरल गैस (LNG) का सबसे बड़ा खरीदार रहा है, जो रूस के 51% LNG निर्यात को खरीदता है। इसके बाद चीन (21%) और जापान (18%) का स्थान है। पाइपलाइन गैस के मामले में भी EU 37% हिस्सेदारी के साथ शीर्ष खरीदार है, जबकि चीन (30%) और तुर्की (27%) अन्य प्रमुख आयातक हैं। यह दर्शाता है कि रूसी ऊर्जा संसाधनों पर वैश्विक निर्भरता बनी हुई है, और भारत का रूसी तेल आयात इस व्यापक संदर्भ का हिस्सा है।

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