Pollution in Rajasthan: राजस्थान में सर्दी के साथ बढ़ा प्रदूषण, भिवाड़ी रेड जोन में; सीकर में लोग बीमार

Pollution in Rajasthan - राजस्थान में सर्दी के साथ बढ़ा प्रदूषण, भिवाड़ी रेड जोन में; सीकर में लोग बीमार
| Updated on: 24-Nov-2025 08:10 AM IST
राजस्थान में सर्दी की शुरुआत के साथ ही वायु प्रदूषण का स्तर चिंताजनक रूप से बढ़ गया है, जिससे राज्य के कई शहरों में हवा की गुणवत्ता खराब हो गई है। राजधानी जयपुर के साथ-साथ उत्तरी राजस्थान के कई शहरों में प्रदूषण का स्तर खतरनाक बना हुआ है। हालांकि, पिछले दिनों की तुलना में कुछ शहरों में एक्यूआई (वायु गुणवत्ता सूचकांक) में मामूली। कमी देखी गई है, लेकिन यह अभी भी स्वास्थ्य के लिए हानिकारक स्तर पर है।

प्रमुख शहरों में वायु गुणवत्ता का बिगड़ता स्तर

राज्य के विभिन्न शहरों में वायु प्रदूषण का स्तर गंभीर बना हुआ है और भिवाड़ी में एक्यूआई 318 दर्ज किया गया है, जो इसे 'रेड जोन' में डालता है, जिसका अर्थ है कि यहां की हवा बहुत खराब है और स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव डाल सकती है। इससे पहले भिवाड़ी का एक्यूआई 359 था, जिसमें थोड़ी कमी आई है लेकिन स्थिति अभी भी गंभीर है। जयपुर में एक्यूआई 263 है, जो 'बहुत खराब' श्रेणी में आता है, जबकि पहले यह 259 था। टोंक में एक्यूआई 296 है, जो रेड जोन के करीब है और श्रीगंगानगर में 234 और बीकानेर में 205 एक्यूआई दर्ज किया गया है, दोनों ही 'बहुत खराब' श्रेणी में हैं। भीलवाड़ा में एक्यूआई 199 है, जो 'खराब' श्रेणी में आता है, जबकि पहले यह 246 था।

कोटा में एक्यूआई 302 से घटकर 264 हो गया है, लेकिन यह अभी भी 'बहुत खराब' श्रेणी में है। भरतपुर में पहले 210 एक्यूआई दर्ज किया गया था। ये आंकड़े दर्शाते हैं कि राज्यव्यापी स्तर पर वायु गुणवत्ता एक गंभीर चिंता का विषय बनी हुई है। भिवाड़ी का एक्यूआई 318 पर पहुंचना एक गंभीर स्वास्थ्य चेतावनी है। 'रेड जोन' का मतलब है कि हवा में प्रदूषकों की मात्रा इतनी अधिक है कि यह संवेदनशील व्यक्तियों के साथ-साथ स्वस्थ लोगों के लिए भी हानिकारक हो सकती है और लंबे समय तक इस तरह की हवा में रहने से श्वसन संबंधी बीमारियां, हृदय रोग और अन्य स्वास्थ्य समस्याएं बढ़ सकती हैं। भिवाड़ी जैसे औद्योगिक क्षेत्रों में प्रदूषण के उच्च स्तर का बने रहना, स्थानीय निवासियों के लिए एक बड़ी चुनौती पेश करता है, जहां हवा की गुणवत्ता में सुधार के लिए तत्काल और प्रभावी उपायों की आवश्यकता है।

गिरते तापमान के बीच प्रदूषण की दोहरी चुनौती

नवंबर के दूसरे सप्ताह से राजस्थान में सर्दी का असर लगातार तेज होता जा रहा है और गिरते तापमान के साथ प्रदूषण का बढ़ना एक दोहरी चुनौती पेश कर रहा है। मौसम विभाग के अनुसार, हवा के पैटर्न में बदलाव के कारण 24 से 26 नवंबर तक जयपुर सहित कई जिलों में तेज ठंडी हवाएं चलने की संभावना है। रात के तापमान में दो से चार डिग्री सेल्सियस की गिरावट होने का अनुमान है। ठंडी और धीमी हवाएं प्रदूषकों को जमीन के करीब फंसा लेती हैं, जिससे वायुमंडल में उनका फैलाव कम हो जाता है और प्रदूषण का स्तर बढ़ जाता है। यह स्थिति न केवल सांस लेने में दिक्कत पैदा करती है, बल्कि दृश्यता। को भी प्रभावित करती है और समग्र सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए खतरा बनती है।

सीकर में स्वास्थ्य संकट: लोगों को सांस लेने में दिक्कत

राजस्थान में वायु प्रदूषण की समस्या इसलिए भी अधिक चिंताजनक हो चली है, क्योंकि सीकर जिले में लोगों के बीमार होने का मामला सामने आया है। सीकर के शांति नगर औद्योगिक क्षेत्र में प्रदूषण बढ़ने के चलते कई लोगों को सांस लेने में दिक्कत महसूस हुई। इस घटना के बाद कई लोग एसके हॉस्पिटल पहुंचे, जहां डॉक्टरों ने उनका इलाज किया। रिपोर्ट के अनुसार, लगभग 100 लोगों ने सांस लेने में परेशानी की शिकायत की है और हालांकि, सीकर में प्रदूषण की वजह का अभी तक पता नहीं चल पाया है, लेकिन यह घटना वायु प्रदूषण के सीधे स्वास्थ्य प्रभावों का एक स्पष्ट उदाहरण है और यह दर्शाती है कि यह समस्या कितनी गंभीर हो सकती है।

सार्वजनिक स्वास्थ्य पर व्यापक प्रभाव

वायु प्रदूषण का उच्च स्तर न केवल श्वसन संबंधी समस्याओं जैसे अस्थमा और ब्रोंकाइटिस को बढ़ाता। है, बल्कि यह हृदय रोगों, स्ट्रोक और फेफड़ों के कैंसर के जोखिम को भी बढ़ा सकता है। बच्चों और बुजुर्गों के साथ-साथ पहले से बीमार लोगों के लिए यह स्थिति विशेष रूप से खतरनाक है। आंखों में जलन, गले में खराश और खांसी जैसे लक्षण आम हो जाते हैं। सीकर की घटना इस बात का प्रमाण है कि प्रदूषण अब केवल एक पर्यावरणीय मुद्दा नहीं रहा, बल्कि यह एक गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट बन गया है, जिसके लिए तत्काल और समन्वित प्रयासों की आवश्यकता है।

तत्काल उपायों की आवश्यकता

राजस्थान में बढ़ते प्रदूषण के स्तर को देखते हुए, राज्य सरकार। और संबंधित अधिकारियों को तत्काल और प्रभावी कदम उठाने की आवश्यकता है। इसमें औद्योगिक उत्सर्जन को नियंत्रित करना, वाहनों से होने वाले प्रदूषण को कम करना, निर्माण गतिविधियों से धूल को नियंत्रित करना और पराली जलाने जैसी प्रथाओं पर रोक लगाना शामिल हो सकता है। सार्वजनिक जागरूकता अभियान चलाकर लोगों को प्रदूषण के खतरों और बचाव के तरीकों के बारे में शिक्षित करना भी महत्वपूर्ण है। इस गंभीर चुनौती का सामना करने के लिए एक बहुआयामी दृष्टिकोण आवश्यक है ताकि राज्य के नागरिकों के स्वास्थ्य और कल्याण को सुनिश्चित किया जा सके।

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