Reserve Bank Of India: ब्याज दरों पर RBI का बड़ा फैसला: क्या रेपो रेट में होगी कटौती या स्थिरता?

Reserve Bank Of India - ब्याज दरों पर RBI का बड़ा फैसला: क्या रेपो रेट में होगी कटौती या स्थिरता?
| Updated on: 30-Nov-2025 07:16 PM IST
भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की मौद्रिक नीति समिति (MPC) की अगली बैठक 3 से 5 दिसंबर 2025 तक निर्धारित है, जिस पर पूरे देश की निगाहें टिकी हुई हैं और इस बैठक में केंद्रीय बैंक द्वारा ब्याज दरों को लेकर लिए जाने वाले निर्णय का अर्थव्यवस्था पर व्यापक प्रभाव पड़ेगा। आरबीआई गवर्नर संजय मल्होत्रा 5 दिसंबर को समिति के महत्वपूर्ण फैसलों की घोषणा करेंगे, जिससे यह स्पष्ट हो जाएगा कि क्या रेपो रेट में कटौती होगी या इसे मौजूदा स्तर पर बनाए रखा जाएगा। यह निर्णय महंगाई के दबाव में कमी और दूसरी तिमाही में उम्मीद से बेहतर सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) वृद्धि जैसे प्रमुख आर्थिक संकेतकों के बीच लिया जाएगा।

महंगाई का बदलता परिदृश्य

हाल के महीनों में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) पर आधारित खुदरा महंगाई सरकार। द्वारा निर्धारित 2 प्रतिशत की निचली सीमा से भी नीचे आ गई है। यह स्थिति आरबीआई को ब्याज दरों में कटौती करने के लिए एक अनुकूल माहौल प्रदान करती है, क्योंकि महंगाई पर नियंत्रण केंद्रीय बैंक की प्राथमिकताओं में से एक है। महंगाई में कमी का मतलब है कि उपभोक्ताओं की क्रय शक्ति बढ़ सकती है और अर्थव्यवस्था में निवेश को बढ़ावा मिल सकता है। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि इस घटती महंगाई के कारण आरबीआई रेपो रेट में 0 और 25 प्रतिशत की कटौती कर सकता है, जिससे कर्ज सस्ता होगा और आर्थिक गतिविधियों को और गति मिलेगी।

जीडीपी वृद्धि और आर्थिक तेजी

हालांकि, दूसरी तिमाही में भारतीय अर्थव्यवस्था ने उम्मीद से बेहतर प्रदर्शन करते हुए 8. 2 प्रतिशत की मजबूत जीडीपी वृद्धि दर्ज की है। यह वृद्धि राजकोषीय समेकन, लक्षित सार्वजनिक निवेश और जीएसटी दर कटौती जैसे विभिन्न सुधारों से समर्थित है। अर्थव्यवस्था में यह तेजी कुछ विशेषज्ञों को यह मानने पर मजबूर करती है कि आरबीआई ब्याज दरों को यथावत रख सकता है। उनका तर्क है कि जब अर्थव्यवस्था पहले से ही मजबूत गति से बढ़ रही है, तो ब्याज दरों में कटौती की तत्काल आवश्यकता नहीं हो सकती है, और ऐसा करने से भविष्य में महंगाई का दबाव फिर से बढ़ सकता है और भारतीय स्टेट बैंक के आर्थिक अनुसंधान विभाग की एक शोध रिपोर्ट ने भी मजबूत जीडीपी वृद्धि और न्यूनतम मुद्रास्फीति के साथ आरबीआई को इस हफ्ते होने वाली एमपीसी बैठक में व्यापक बाजारों को दर की दिशा बताने की बात कही है।

रेपो रेट में कटौती का इतिहास और वर्तमान स्थिति

आरबीआई ने इस साल फरवरी से रेपो रेट में कटौती की शुरुआत की थी और तब से इसमें कुल 1. 00 प्रतिशत की कटौती की जा चुकी है और वर्तमान में, आरबीआई का रेपो रेट 5. 5 प्रतिशत है। अगस्त में ब्याज दरों में कटौती को रोक दिया गया था, जिससे बाजार में यह अटकलें तेज हो गई थीं कि केंद्रीय बैंक आगे क्या कदम उठाएगा। अब, महंगाई के कम होने के संकेतों के साथ, कुछ विशेषज्ञों को उम्मीद है कि आरबीआई आने वाली मौद्रिक नीति बैठक में रेपो रेट में 0. 25 प्रतिशत की और कटौती कर सकता है। यह कटौती व्यवसायों और व्यक्तियों के लिए ऋण लागत को कम कर सकती है, जिससे निवेश और उपभोग को प्रोत्साहन मिलेगा।

एचडीएफसी बैंक की रिपोर्ट का विश्लेषण

एचडीएफसी बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार, इस साल वृद्धि अनुमान से ज्यादा और महंगाई अनुमान से कम है। रिपोर्ट में कहा गया है कि आरबीआई के आगामी फैसले में 'कांटे की टक्कर' रहेगी। हालांकि, रिपोर्ट का अनुमान है कि दूसरी छमाही में वृद्धि पर बने जोखिम और वित्त वर्ष 2026-27 की तीसरी तिमाही तक महंगाई के 4 प्रतिशत से काफी नीचे रहने की उम्मीद को देखते हुए, आने वाली बैठक में रेपो रेट में फिर 0 और 25 प्रतिशत की कटौती हो सकती है। यह विश्लेषण इस बात पर जोर देता है कि भले ही वर्तमान में वृद्धि मजबूत दिख रही हो, लेकिन भविष्य की महंगाई और वृद्धि के जोखिमों को ध्यान में रखते हुए कटौती एक विवेकपूर्ण कदम हो सकता है।

अन्य अर्थशास्त्रियों के विचार

बैंक ऑफ बड़ौदा के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस ने भी कहा कि आने वाली नीति में रेपो दर पर 'कांटे का मुकाबला' होगा और उनका मानना है कि चूंकि मौद्रिक नीति आगे की सोच वाली होती है और उस हिसाब से इस समय नीतिगत दर उचित स्तर पर दिख रही है, इसलिए रेपो रेट में कोई बदलाव नहीं होना चाहिए। यह दृष्टिकोण इस बात पर बल देता है कि वर्तमान आर्थिक स्थिति को देखते हुए, यथास्थिति बनाए रखना ही सबसे सुरक्षित विकल्प हो सकता है और इसके विपरीत, क्रिसिल के मुख्य अर्थशास्त्री धर्मकीर्ति जोशी ने दिसंबर में रेपो रेट में 0. 25 प्रतिशत की कटौती की संभावना जताई है और उनका तर्क है कि वृद्धि मजबूत बनी हुई है, लेकिन अक्टूबर में खुदरा मुद्रास्फीति में भारी गिरावट ने कटौती के लिए अतिरिक्त जगह बना दी है। यह दर्शाता है कि महंगाई के आंकड़ों में हालिया गिरावट ने कटौती के पक्ष में तर्क को मजबूत किया है।

आगे की राह

इन विभिन्न विचारों और आर्थिक आंकड़ों के बीच, आरबीआई के लिए एक संतुलित निर्णय लेना चुनौतीपूर्ण होगा और केंद्रीय बैंक को न केवल वर्तमान आर्थिक स्थिति बल्कि भविष्य की संभावनाओं और वैश्विक आर्थिक रुझानों को भी ध्यान में रखना होगा। 5 दिसंबर को आरबीआई गवर्नर संजय मल्होत्रा की घोषणा का इंतजार रहेगा, जो भारतीय अर्थव्यवस्था की आगामी दिशा को निर्धारित करेगी। यह निर्णय यह भी संकेत देगा कि आरबीआई विकास को बढ़ावा देने और मूल्य स्थिरता बनाए रखने के बीच किस तरह संतुलन स्थापित करता है।

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