Chaitra Navratri 2025: मां शैलपुत्री की चैत्र नवरात्रि के पहले दिन पूजा में पढ़ें ये व्रत कथा

Chaitra Navratri 2025 - मां शैलपुत्री की चैत्र नवरात्रि के पहले दिन पूजा में पढ़ें ये व्रत कथा
| Updated on: 30-Mar-2025 08:39 AM IST

Chaitra Navratri 2025: नवरात्रि का शुभारंभ मां शैलपुत्री की आराधना से होता है। मां शैलपुत्री का स्वरूप अत्यंत सौम्य और दिव्य होता है। वे अपने भक्तों को आशीर्वाद देने के लिए बैल पर सवार होकर प्रकट होती हैं। उनके दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल का फूल शोभायमान होता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, मां शैलपुत्री पर्वतराज हिमालय की पुत्री हैं और इन्हें सृष्टि की आधारशिला कहा जाता है। भक्तगण श्रद्धा और भक्ति से मां की पूजा कर अपने जीवन को सुख-समृद्धि से भर सकते हैं।

मां शैलपुत्री की पूजा का महत्व

मां शैलपुत्री की पूजा साधक के मूलाधार चक्र को जागृत करने में सहायक मानी जाती है। मूलाधार चक्र को ऊर्जा का केंद्र कहा जाता है, जो हमें मानसिक और शारीरिक स्थिरता प्रदान करता है। कहा जाता है कि जो भी भक्त श्रद्धा और विश्वास से मां की पूजा करता है, उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। मां शैलपुत्री की उपासना से जीवन में सकारात्मकता, आत्मविश्वास और आध्यात्मिक शक्ति का संचार होता है।

मां शैलपुत्री व्रत कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, मां शैलपुत्री का पूर्व जन्म में नाम सती था, और वे राजा दक्ष प्रजापति की पुत्री थीं। उनका विवाह भगवान शिव से हुआ था। लेकिन राजा दक्ष भगवान शिव को अपना दामाद स्वीकार नहीं कर सके और इस कारण वे उनसे नाराज रहते थे।

एक बार दक्ष प्रजापति ने एक भव्य यज्ञ का आयोजन किया, जिसमें उन्होंने सभी देवी-देवताओं को आमंत्रित किया, परंतु अपनी पुत्री सती और भगवान शिव को निमंत्रण नहीं भेजा। देवी सती इस अपमान को सहन नहीं कर सकीं और बिना निमंत्रण के ही यज्ञ में पहुंच गईं। वहां पहुंचकर उन्होंने देखा कि उनके पति भगवान शिव का घोर अपमान किया जा रहा है। इस अत्याचार को देखकर सती अत्यंत क्रोधित हो गईं और उन्होंने स्वयं को यज्ञ कुंड में समर्पित कर दिया।

जब भगवान शिव को इस घटना का पता चला, तो वे अत्यंत क्रोधित हुए और उन्होंने वीरभद्र को यज्ञ विध्वंस करने का आदेश दिया। यज्ञ विध्वंस के पश्चात भगवान शिव ने सती के पार्थिव शरीर को उठाकर ब्रह्मांड में भ्रमण किया। उनके इस शोक को देखकर भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर के टुकड़े कर दिए, जिससे विभिन्न स्थानों पर शक्तिपीठों की स्थापना हुई।

पुनर्जन्म में सती ने पर्वतराज हिमालय के घर जन्म लिया और पार्वती के रूप में विख्यात हुईं। हिमालय की पुत्री होने के कारण वे शैलपुत्री कहलाईं।

मां शैलपुत्री की पूजा विधि

  1. प्रातःकाल स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें और व्रत का संकल्प लें।

  2. मां शैलपुत्री की प्रतिमा या चित्र को साफ स्थान पर स्थापित करें।

  3. गंगाजल, अक्षत, फूल, धूप, दीप और नैवेद्य अर्पित करें।

  4. मां के मंत्रों का जाप करें और दुर्गा सप्तशती का पाठ करें।

  5. मां शैलपुत्री की कथा का श्रवण करें और आरती करें।

  6. ब्राह्मणों और कन्याओं को भोजन कराएं और उन्हें दान-दक्षिणा दें।

मां शैलपुत्री के मंत्र

"ॐ देवी शैलपुत्र्यै नमः।"

इस मंत्र का जाप करने से साधक को आध्यात्मिक शक्ति प्राप्त होती है और उसके जीवन में शांति एवं समृद्धि आती है।

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