India-Russia Relation: रूस का भारत प्रेम: ऊर्जा के बाद अब समुद्री क्षेत्र में बड़ा ऑफर, अमेरिका को झटका?
India-Russia Relation - रूस का भारत प्रेम: ऊर्जा के बाद अब समुद्री क्षेत्र में बड़ा ऑफर, अमेरिका को झटका?
भारत और रूस के बीच रणनीतिक साझेदारी लगातार मजबूत हो रही है, जो अब पारंपरिक ऊर्जा सौदों से आगे बढ़कर समुद्री क्षेत्र में भी विस्तार कर रही है। पहले सस्ता कच्चा तेल और फिर तरलीकृत प्राकृतिक गैस (एलएनजी) की आपूर्ति बढ़ाने के प्रस्तावों के बाद, रूस ने भारत को जहाज निर्माण और पोर्ट इंफ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण सहयोग की पेशकश की है और यह कदम अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक गलियारों में हलचल पैदा कर रहा है, खासकर तब जब अमेरिका भारत और रूस के बीच बढ़ती नजदीकियों को लेकर पहले से ही सतर्क है। मॉस्को का यह नवीनतम प्रस्ताव नई दिल्ली को अपने रणनीतिक दायरे में और अधिक मजबूती से शामिल करने की उसकी इच्छा को दर्शाता है।
रूस का नया मेगा ऑफर
हाल ही में, रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के एक प्रमुख सलाहकार और। पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) निकोलाई पैट्रुशेव ने भारत का दौरा किया। इस दौरे का मुख्य उद्देश्य दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय संबंधों को और गहरा करना था और अपनी यात्रा के दौरान, पैट्रुशेव ने केंद्रीय पोर्ट, शिपिंग और जलमार्ग मंत्री सर्बानंद सोनोवाल से मुलाकात की। इस उच्च-स्तरीय बैठक में, रूस ने भारत के समुद्री क्षेत्र के लिए एक व्यापक सहयोग पैकेज का प्रस्ताव रखा,। जो दोनों देशों के बीच तकनीकी और औद्योगिक साझेदारी को नई ऊंचाइयों पर ले जाने की क्षमता रखता है।जहाज निर्माण और पोर्ट इंफ्रास्ट्रक्चर में सहयोग
रूस द्वारा प्रस्तावित सहयोग में जहाज निर्माण और पोर्ट इंफ्रास्ट्रक्चर के कई महत्वपूर्ण पहलू शामिल हैं और रूस ने भारत को मछली पकड़ने वाले जहाज, यात्री जहाज और सहायक जहाजों के मौजूदा डिजाइन उपलब्ध कराने की पेशकश की है। इसके अतिरिक्त, रूस ने भारत की विशिष्ट आवश्यकताओं और प्राथमिकताओं के अनुरूप नए डिजाइन विकसित करने में भी सहायता प्रदान करने का प्रस्ताव रखा है। यह पहल भारत के 'मेक इन इंडिया' अभियान और आत्मनिर्भरता के लक्ष्यों के साथ पूरी तरह से मेल। खाती है, जिससे भारत अपने समुद्री बेड़े को आधुनिक बनाने और अपनी क्षमताओं को बढ़ाने में सक्षम होगा।ऊर्जा क्षेत्र में पहले से जारी सहयोग
प्रस्तावित सहयोग केवल सामान्य जहाजों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इसमें विशेष जहाजों का निर्माण भी शामिल है। रूस ने भारत को बर्फ में चलने वाले आइसब्रेकर और गहरे समुद्र में अनुसंधान करने वाले जहाजों जैसे विशेष जहाजों के निर्माण में तकनीकी सहायता प्रदान करने की इच्छा व्यक्त की है। ये जहाज भारत की समुद्री सुरक्षा, वैज्ञानिक अनुसंधान और आर्कटिक। जैसे क्षेत्रों में उपस्थिति के लिए महत्वपूर्ण हो सकते हैं। इसके अलावा, रूस ने ग्रीन शिपबिल्डिंग और समुद्री लॉजिस्टिक्स में व्यापक सहयोग की भी बात की है, जो आज के समय में भारत के समुद्री क्षेत्र की सबसे बड़ी प्राथमिकताओं में से एक है। ग्रीन शिपबिल्डिंग पर्यावरण के अनुकूल जहाजों के निर्माण पर केंद्रित है, जबकि समुद्री लॉजिस्टिक्स समुद्री व्यापार और आपूर्ति श्रृंखला को अधिक कुशल बनाने के लिए महत्वपूर्ण है।
यह नई पेशकश रूस की ओर से भारत के साथ संबंधों को मजबूत करने की पहली कोशिश नहीं है। इससे पहले भी रूस भारत को ऊर्जा सुरक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण प्रस्ताव दे चुका है। रूस के ऊर्जा मंत्री सर्गेई त्सिविलेव ने पहले कहा था कि भारत अपनी ऊर्जा जरूरतों में गैस का हिस्सा 15% तक बढ़ाना चाहता है, और रूस अपनी मौजूदा व आने वाली परियोजनाओं से भारत को अधिक गैस देने के लिए तैयार है। इसके अतिरिक्त, रूस भारत को लगातार सस्ता क्रूड ऑयल भी उपलब्ध करा रहा है, जिससे दोनों देशों के बीच ऊर्जा व्यापार लगातार मजबूत हुआ है। यह ऊर्जा साझेदारी भारत की बढ़ती ऊर्जा मांगों को पूरा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है।अमेरिका की संभावित प्रतिक्रिया
भारत और रूस के बीच बढ़ती नजदीकियों पर अमेरिका की पैनी नजर है। रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच अमेरिका खुलकर रूस पर आर्थिक दबाव बढ़ाने की कोशिश कर रहा है और वह नहीं चाहता कि कोई भी देश रूस के साथ अपने व्यापारिक संबंधों को मजबूत करे। पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने तो यहां तक कहा था कि जो देश रूस की आर्थिक मदद करेंगे, उन पर अतिरिक्त टैरिफ लगाया जा सकता है और ऐसे में, रूस की यह नई पेशकश अमेरिका के लिए असहज करने वाली हो सकती है। हालांकि, भारत की विदेश नीति हमेशा से संतुलित रही है। नई दिल्ली अपने रणनीतिक हितों को प्राथमिकता देते हुए दोनों महाशक्तियों, अमेरिका और रूस, के साथ संबंध बनाए रखने की कोशिश करता रहा है। यह देखना दिलचस्प होगा कि भारत इस नई पेशकश को कैसे आगे बढ़ाता है और अंतरराष्ट्रीय भू-राजनीति में इसका क्या प्रभाव पड़ता है।