S. Jaishankar News: विदेश मंत्री एस जयशंकर ने बताया, क्यों भारत को परिवार के मुखिया की तरह व्यवहार करना चाहिए

S. Jaishankar News - विदेश मंत्री एस जयशंकर ने बताया, क्यों भारत को परिवार के मुखिया की तरह व्यवहार करना चाहिए
| Updated on: 21-Dec-2025 08:44 AM IST
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने हाल ही में पुणे में आयोजित विभिन्न कार्यक्रमों में भारत की विदेश नीति, वैश्विक कूटनीति और देश के भविष्य को लेकर महत्वपूर्ण विचार साझा किए। उन्होंने सिम्बायोसिस इंटरनेशनल (डीम्ड विश्वविद्यालय) के 22वें दीक्षांत समारोह और पुणे साहित्य महोत्सव में अपनी बात रखी, जहां उन्होंने कई ज्वलंत मुद्दों पर प्रकाश डाला और उनके संबोधन में भारत की बढ़ती वैश्विक भूमिका, पड़ोसी देशों के साथ संबंध और भारतीय प्रतिभा के महत्व पर जोर दिया गया।

नेतृत्व और कूटनीति का महत्व

सिम्बायोसिस इंटरनेशनल के दीक्षांत समारोह में, जब उनसे पूछा गया कि क्या देश के लिए एक जयशंकर ही काफी हैं, तो उन्होंने इस प्रश्न को ही गलत बताते हुए कहा कि यह सवाल मोदी के बारे में पूछा जाना चाहिए था कि क्या एक मोदी ही काफी हैं। विदेश मंत्री ने अपनी तुलना हनुमान जी से करते हुए कहा कि अंततः, सेवा हनुमान जी ही करते हैं, और इसी तरह वह भी प्रधानमंत्री मोदी के लिए सेवा कर रहे हैं। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि देशों की पहचान उनके नेताओं और उनकी दूरदृष्टि से होती है, जिसे लोग बाद में अमल में लाते हैं और जयशंकर के अनुसार, आज के समय में दूरदृष्टि, सशक्त नेतृत्व और आत्मविश्वास ही वास्तविक बदलाव लाते हैं। यह दर्शाता है कि भारत की विदेश नीति में नेतृत्व की भूमिका कितनी केंद्रीय है।

वैश्विक राजनीतिक परिदृश्य: गठबंधन की राजनीति

पुणे साहित्य महोत्सव में, विदेश मंत्री जयशंकर ने वैश्विक राजनीतिक परिदृश्य की तुलना ‘गठबंधन की राजनीति’ से की, जहां निष्ठाएं लगातार बदलती रहती हैं। उन्होंने कहा कि भारत को ऐसे अस्थिर माहौल में लचीला रुख अपनाते हुए अपने राष्ट्रीय हितों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। जयशंकर ने समझाया कि आज की दुनिया एक बहुध्रुवीय दुनिया है, जहां किसी एक शक्ति के पास स्पष्ट बहुमत नहीं है। विभिन्न देशों के बीच लगातार समीकरण बदलते रहते हैं, सौदे होते रहते हैं, और कोई भी देश स्थायी रूप से ऊपर या नीचे नहीं रहता और इस जटिल परिदृश्य में, भारत के लिए यह आवश्यक है कि वह अपनी रणनीतियों में लचीलापन बनाए रखे और अपने दीर्घकालिक हितों को सर्वोपरि रखे।

भारत का लचीला कूटनीतिक रुख

इस अस्थिर वैश्विक स्थिति से निपटने के लिए, जयशंकर ने भारत के हितों को ध्यान में रखते हुए निर्णय लेने के अपने मंत्र पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि भारत को बहुत लचीला रुख अपनाना होगा। इसका अर्थ यह है कि कभी-कभार भारत किसी एक मुद्दे पर एक देश के साथ खड़ा हो सकता है, और किसी दूसरे मुद्दे पर किसी अन्य देश के साथ। इस कूटनीतिक लचीलेपन के बावजूद, उनका एक ही सिद्धांत है – जो भी उनके देश के हित में हो, वही उनका अंतिम निर्णय होगा। यह सिद्धांत भारत को वैश्विक मंच पर अपनी स्वायत्तता बनाए रखने और विभिन्न भू-राजनीतिक चुनौतियों का सामना करने में मदद करता है।

जटिल होती विदेश नीति का प्रबंधन

अपनी एक पुस्तक के अंश के बारे में पूछे जाने पर, जिसमें उन्होंने प्रमुख शक्तियों के साथ भारत के संबंधों पर चर्चा की है, जयशंकर ने स्वीकार किया कि पिछले पांच वर्षों में देश की विदेश नीति का प्रबंधन कहीं अधिक जटिल हो गया है। उन्होंने बताया कि वर्तमान परिवेश में अमेरिका से संबंध बनाना, चीन का प्रबंधन करना और रूस को आश्वस्त करना, ये सभी कार्य पहले से कहीं अधिक चुनौतीपूर्ण हो गए हैं। विशेष रूप से, यूक्रेन युद्ध और भारत पर मॉस्को से दूरी बनाए रखने के दबाव के कारण रूस को आश्वस्त करना एक जटिल कार्य बन गया है और इसके अतिरिक्त, जापान को अपनी गति से चलने के कारण शामिल करना भी अधिक जटिल हो गया है, हालांकि भारत उन्हें तेज गति से चलने के लिए प्रेरित करने का प्रयास कर रहा है। उन्होंने यह भी रेखांकित किया कि यूरोप भारत के लिए एक महत्वपूर्ण साझेदार। के रूप में उभरा है और उसके साथ अधिक जुड़ाव की आवश्यकता है।

पड़ोसी देशों के साथ संबंध: परिवार के मुखिया की तरह

भारत के पड़ोस के बारे में बात करते हुए, जयशंकर ने कहा कि नई दिल्ली के अपने पड़ोसी देशों के साथ संबंध उन देशों की विषमता और अस्थिर घरेलू राजनीति से प्रभावित होते हैं। उन्होंने बताया कि हमारे पड़ोसी देश हमसे छोटे हैं और भारत से घनिष्ठ रूप से जुड़े हुए हैं और उनकी आंतरिक राजनीति में उतार-चढ़ाव आते रहते हैं, जिसके कारण कभी वे भारत की प्रशंसा करते हैं, तो कभी आलोचना। ऐसे में चुनौती यह है कि इन संबंधों को यथासंभव स्थिर कैसे रखा जाए। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि हाल ही में श्रीलंका में आए चक्रवात पर भारत ने तुरंत प्रतिक्रिया दी और सबसे पहले मदद के लिए पहुंचा और उन्होंने यह भी बताया कि कोविड के दौरान पड़ोसी देशों को टीके भारत से मिले, और यूक्रेन युद्ध के दौरान जब पेट्रोल और उर्वरकों की आपूर्ति बाधित हुई, तो भारत ने उनकी मदद की। विदेश मंत्री ने जोर देकर कहा कि भारत को परिवार के मुखिया की तरह व्यवहार करना चाहिए। उन्होंने कहा कि भले ही एक-दो सदस्य नाराज हो जाएं, लेकिन पड़ोस की देखभाल करना हमारी जिम्मेदारी है।

वैश्विक मंच पर भारत की आवाज

प्रश्न-उत्तर सत्र के दौरान, जब उनसे पूछा गया कि वैश्विक स्तर पर विभिन्न स्थितियों में भारत कैसे प्रतिक्रिया देता है, तो जयशंकर ने मजाकिया अंदाज में कहा कि वे इस प्रश्न को इस तरह से पूछेंगे कि, आप कब चुप रहते हैं और कब बोलते हैं। उन्होंने कहा कि यह वास्तव में परिस्थिति पर निर्भर करता है। आज के बहुध्रुवीय विश्व में यदि आप चुप रहेंगे, तो दुनिया आपको दबा देगी। उनका मानना है कि अगर आप चुप रहेंगे तो लोग आपको रक्षात्मक मानकर हाशिए पर धकेल देंगे, इसलिए अपनी आवाज उठाना जरूरी है। यह भारत की मुखर और आत्मविश्वासी विदेश नीति का प्रतिबिंब है।

भारतीय प्रतिभा का वैश्विक महत्व

शिक्षा पूरी करने के बाद युवा भारतीय पेशेवरों के काम के लिए विदेश जाने के कारण कथित प्रतिभा पलायन के बारे में पूछे जाने पर, जयशंकर ने एक अलग दृष्टिकोण प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि उन्होंने ऐसे लोगों को भी देखा है जो दो साल, तीन साल या पांच साल के लिए विदेश जाते हैं, लेकिन वापस आकर यहां व्यवसाय स्थापित कर लेते हैं और उन्होंने यह भी बताया कि विश्व की सबसे बड़ी जहाजरानी कंपनी में अधिकांश कर्मचारी भारत से हैं, जो भारतीय प्रतिभा की वैश्विक मांग को दर्शाता है। उन्होंने उल्लेख किया कि रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की भारत यात्रा के दौरान समझौते के समय, वे भारतीयों को रूस में आकर काम करने के लिए प्रोत्साहित करने के प्रति इच्छुक थे और जयशंकर ने कहा कि भले ही यूरोप में प्रवासन को लेकर बहस चल रही हो, लेकिन भारतीयों को अच्छी नजर से देखा जाता है। भारतीयों को पारिवारिक और मेहनती माना जाता है, और वे तकनीकी क्षेत्र में काम करने वाले पेशेवर के रूप में जाने जाते हैं। आज भारत का एक वैश्विक ब्रांड है, और युवाओं को दुनिया को एक वैश्विक कार्यस्थल के रूप में देखना चाहिए।

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