Starlink Satellite Internet: स्टारलिंक सैटेलाइट इंटरनेट: भारत में शुरुआत में देरी के मुख्य कारण

Starlink Satellite Internet - स्टारलिंक सैटेलाइट इंटरनेट: भारत में शुरुआत में देरी के मुख्य कारण
| Updated on: 28-Dec-2025 08:29 PM IST
केंद्रीय दूरसंचार मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने हाल ही में एक साक्षात्कार में एलन मस्क की स्टारलिंक सहित अन्य प्रमुख कंपनियों द्वारा भारत में उपग्रह संचार सेवाएं शुरू करने में हो रही देरी पर विस्तार से जानकारी दी है और मंत्री ने स्पष्ट किया कि इन सेवाओं की शुरुआत सुरक्षा एजेंसियों द्वारा निर्धारित आवश्यकताओं का पालन करने और दूरसंचार विभाग (DoT) द्वारा स्पेक्ट्रम की कीमत तय होने के बाद ही संभव होगी। यह घोषणा उन लाखों संभावित उपयोगकर्ताओं के लिए महत्वपूर्ण है जो भारत में हाई-स्पीड सैटेलाइट इंटरनेट कनेक्टिविटी का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं।

सुरक्षा अनुपालन: राष्ट्रीय डेटा संप्रभुता का आधार

ज्योतिरादित्य सिंधिया ने इस बात पर विशेष जोर दिया कि सैटेलाइट इंटरनेट प्रदाताओं को दो प्रमुख मुद्दों का समाधान करना होगा और इनमें से पहला और सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा सुरक्षा अनुपालन से संबंधित है। मंत्री के अनुसार, लाइसेंस धारकों जैसे यूटेलसैट वनवेब, रिलायंस जियो और स्टारलिंक को अंतरराष्ट्रीय गेटवे से संबंधित सुरक्षा मंजूरी का पूरी तरह से पालन करना होगा। इसका मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि भारतीय उपयोगकर्ताओं का डेटा भारत की भौगोलिक सीमाओं के भीतर ही रहे। यह राष्ट्रीय सुरक्षा और डेटा संप्रभुता के दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण है, ताकि किसी भी संवेदनशील जानकारी का बाहरी सर्वर पर भंडारण या प्रसंस्करण न हो। सरकार ने इन कंपनियों को पहले ही अस्थायी स्पेक्ट्रम जारी कर दिया है, जिससे उन्हें सुरक्षा एजेंसियों को अपनी अनुपालन क्षमता प्रदर्शित करने का अवसर मिल सके। सिंधिया ने कहा कि यह प्रक्रिया अभी जारी है और कंपनियों को इन सख्त सुरक्षा मानदंडों का पालन करना अनिवार्य है।

स्पेक्ट्रम आवंटन और मूल्य निर्धारण: वित्तीय और नियामक चुनौतियाँ

दूसरा महत्वपूर्ण पहलू स्पेक्ट्रम का मूल्य निर्धारण और उसका आवंटन है और दूरसंचार विभाग (DoT) और भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (TRAI) वर्तमान में सैटकॉम स्पेक्ट्रम के मूल्य निर्धारण को अंतिम रूप देने की प्रक्रिया में हैं। यह एक जटिल वित्तीय और नियामक प्रक्रिया है, क्योंकि स्पेक्ट्रम की कीमत न केवल सरकार के राजस्व को प्रभावित करती है, बल्कि सेवा प्रदाताओं के लिए व्यापार मॉडल और अंततः उपभोक्ताओं के लिए सेवाओं की लागत को भी निर्धारित करती है और मंत्री ने उम्मीद जताई है कि यह मुद्दा भी जल्द ही सुलझ जाएगा। स्पेक्ट्रम के उचित मूल्य निर्धारण के बिना, कंपनियों के लिए भारत में अपनी सेवाओं को। आर्थिक रूप से व्यवहार्य बनाना मुश्किल होगा, जिससे उनकी शुरुआत में और देरी हो सकती है।

नियामक विवाद और आगे की राह

सैटकॉम स्पेक्ट्रम को लेकर TRAI और DoT के बीच कुछ नियामक संबंधी चर्चाएं और विवाद भी चल रहे हैं। इस महीने की शुरुआत में, TRAI ने DoT के कई महत्वपूर्ण सुझावों को खारिज कर दिया था। इनमें वार्षिक स्पेक्ट्रम शुल्क को 4 प्रतिशत से बढ़ाकर 5 प्रतिशत करने का प्रस्ताव और शहरी क्षेत्रों में प्रति कनेक्शन 500 रुपये का शुल्क हटाने का प्रस्ताव शामिल था। ये मतभेद नियामक ढांचे को अंतिम रूप देने में बाधा उत्पन्न कर रहे हैं। अब उम्मीद है कि दूरसंचार विभाग (DoT) इस क्षेत्र की सर्वोच्च निर्णय। लेने वाली संस्था, डिजिटल संचार आयोग (DCC) के समक्ष अपना पक्ष रखेगा। DCC इन मुद्दों पर विचार-विमर्श करेगा और स्पेक्ट्रम मूल्य निर्धारण के लिए आगे के कदम तय करेगा। इस प्रक्रिया में अंततः कैबिनेट की मंजूरी की भी आवश्यकता हो सकती है, जो निर्णय लेने की प्रक्रिया में एक और स्तर जोड़ता है।

भारत में सैटेलाइट इंटरनेट का भविष्य

इन सभी नियामक और सुरक्षा संबंधी बाधाओं के बावजूद, केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने स्पष्ट किया है कि जैसे ही ये मुद्दे सुलझ जाएंगे, सरकार को मंजूरी देने की प्रक्रिया पर आगे बढ़ने में कोई परेशानी नहीं होगी। यह दर्शाता है कि सरकार भारत में सैटेलाइट इंटरनेट सेवाओं की क्षमता को पहचानती है और इसे बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध है, बशर्ते राष्ट्रीय सुरक्षा और नियामक मानदंडों का पूरी तरह से पालन किया जाए। स्टारलिंक, यूटेलसैट वनवेब और जियो एसजीएस जैसी कंपनियों के लिए यह एक स्पष्ट संदेश है कि उन्हें भारत के विशिष्ट नियामक और सुरक्षा वातावरण के अनुरूप अपनी सेवाओं को ढालना होगा। इन सेवाओं की शुरुआत से देश के दूरदराज के इलाकों में भी हाई-स्पीड इंटरनेट कनेक्टिविटी उपलब्ध हो सकेगी, जिससे डिजिटल इंडिया के लक्ष्य को प्राप्त करने में मदद मिलेगी।

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