CBI Investigation: बांच भाई बांच, जांच से पहली सांच : सांवराद में हुए प्रदर्शन से पहले रात की बात

CBI Investigation - बांच भाई बांच, जांच से पहली सांच : सांवराद में हुए प्रदर्शन से पहले रात की बात
| Updated on: 27-Jun-2020 11:26 PM IST
Jaipur | आनंदपाल सिंह के एनकाउंटर की मांग करते हुए प्रदर्शन के तीन साल पुराने मामले में केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो ने राजपूत और रावणा राजपूत समाज के 24 लोगों पर विशेष अदालत में चालान पेश कर दिया है। अब इन नेताओं की गिरफ्तारी संभव है। इसमें करणी सेना के सुप्रीमो और पूर्व केन्द्रीय मंत्री कल्याणसिंह कालवी के पुत्र लोकेन्द्रसिंह कालवी, राष्ट्रीय राजपूत करणी सेना के अध्यक्ष सुखदेवसिंह गोगामेड़ी, मारवाड़ राजपूत सभा के अध्यक्ष हनुमानसिंह खांगटा, राजपूत सभा के अध्यक्ष गिरीराजसिंह लोटवाड़ा, रावणा राजपूत समाज के अध्यक्ष रणजीतसिंह सोडाला, आनंदपाल की बेटी और उनके वकील एपीसिंह भी शामिल हैं। सीबीआई ने सांवराद गांव में हंगामा, बलवा करके दंगा भड़काने, राजकीय सम्पत्ति को नुकसान पहुंचाने, महिला आईपीएस समेत अफसरों पर हमला समेत अन्य आरोपों में चालान पेश किया है। अब गिरफ्तारी से पहले इन नेताओं की हालत खस्ता है।

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2017 के इन घटनाक्रम को जरा नजदीक से देखें और मामले को करीबी से पड़ताल करने वालों से बात करें तो पता चलेगा कि हालात गिरफ्तारी तक पहुंचने में इन नेताओं की राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं भी कम नहीं रही है।

जूम न्यूज ने इस मामले में राजस्थान के एक वरिष्ठ पत्रकार से बात की और जाना कि यह मामला यहां तक कैसे पहुंचा। मामले में बेवजह लम्बे और नासमझ आक्रोश का सामना कर चुके ये पत्रकार बताते हैं कि 2 जुलाई मध्यरात्रि के बाद जयपुर में पुलिस के एक बड़े अधिकारी की मौजूदगी में हुई एक बैठक में तमाम नेता इस बात पर राजी हो गए थे कि सांवराद में भीड़ नहीं जुटाई जाएगी और मामले का कानूनी व शांतिपूर्ण हल निकालने में मददगार रहेंगे। इन नेताओं को भी पता था कि वहां पर हंगामा होगा और कई लोगों पर मुकदमे बनेंगे, लेकिन उन मुकदमों की पकड़ खुद के गिरेबान तक भी पहुंचेगी। यह गंभीरता से नहीं सोचा। राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं और भीड़ में बुलंद शोहरत पाने की चाह ही थी कि अगले ही दिन वे नेता पलट गए और तथाकथित सांवराद सभा का बिगुल फूंक दिया। वे बताते हैं कि प्रदेश में कानून व्यवस्था और आपसी सद्भाव को बनाए रखने की गरज से एक पत्रकार के तौर पर हमने कोशिश की हालात ठीक रहे, लेकिन नेता ही अपनी बात से पलट गए और प्रयास व्यर्थ हो गए।

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उस बैठक में राजपूत सभा के अध्यक्ष गिरिराजसिंह लोटवाड़ा थे, रावणा राजपूत समाज के अध्यक्ष रणजीतसिंह सोडाला व मोहनसिंह हाथोज थे। आनंदपाल को न्याय दिलाने के लिए बनी संघर्ष समिति के सदस्य यशवर्धनसिंह शेखावत भी थे। पुलिस के एक बड़े अधिकारी को सरकार से बात करने के लिए पांच बिंदुओं पर सहमत किया गया। 

संघर्ष समिति की पांच मांगे थीं

  • दुबई में पढ़ रही आनंदपाल की बेटी पर दर्ज मुकदमे खत्म किए जाएं और उसकी गरिमामयी स्वदेश वापसी हो सके ताकि वह अपने पिता के अंतिम संस्कार में शामिल हो सके।
  • जेल में बंद आनंदपाल के भाई को पैरोल पर आने की अनुमति दी जाए और वह अंतिम संस्कार में शामिल हो सके।
  • आनंदपाल के परिजनों और रिश्तेदारों के मानवाधिकारों का उल्लंघन करने वालों पर कार्रवाई और सीआईडी जांच। उसके बहनोई व अन्य परिजनों को जिन मुकदमों में फंसाया गया है, उनकी निष्पक्ष जांच हो और संलिप्त  पुलिस अधिकारियों की भूमिका जांची जाए।
  • तुरंत न्यायिक जांच हो और केन्द्रीय मानवाधिकार आयोग में इसकी रिपोर्ट जांच भेजी जाए।
  • आनंदपाल एनकाउंटर की सीबीआई जांच हो।
एक निजी आवास पर करीब तीन घंटे तक बैठक चली। दोनों ही पक्ष निम्नानुसार सहमत हो गए थे।

  1. आनंदपाल की बेटी की वापसी होगी, उस पर मुकदमे नहीं रहेंगे। यह भी उपाय किए जाएंगे कि वह और आनंदपाल के परिजन अपना जीवन गरिमामय ढंग से जी सके।
  2. आनंदपाल का भाई पैरोल पर अंतिम संस्कार में शामिल हो सकेगा, लेकिन अर्जी परिजनों की ओर से देनी होगी।
  3. परिजनों और रिश्तेदारों के खिलाफ दर्ज सभी मामलों को गंभीरता से दिखवाया जाएगा और उनके मानवाधिकार हनन व पुलिस अधिकारियों के खिलाफ आरोपों की जांच की सीआईडी द्वारा जाएगी।
  4. मामले में न्यायिक जांच और मानवाधिकार आयोग को पूरी जानकारी के संबंध में सरकार पहले ही कार्रवाई नियमानुसार प्रारंभ कर चुकी है।
  5. पुलिस के मनोबल और अपने ही एनकाउंटर को फर्जी बताते सीबीआई जांच का आवेदन सरकार नहीं करेगी। सोहराबुद्दीन और दारा सिंह एनकाउंटर की तर्ज पर परिजन न्यायालय के माध्यम से जांच के लिए आवेदन कर सकेंगे।
वे वरिष्ठ पत्रकार बताते हैं कि बैठक में शामिल नेता अपने संबंधित सभी नेताओं को इस संबंध में जानकारी देते रहे और सूर्योदय पूर्व करीब साढ़े तीन पौने चार बजे इस बात पर सहमति बनी कि सांवराद में कोई आन्दोलन नहीं होगा। पर्दे के पीछे रहे आंदोलन के बड़े नेता भी सहमत हो गए। इस बात पर सभी संगठनों के नेताओं से फोन पर बात करके उनकी सहमति ले ली गई, तो यह माना गया कि अब सांवराद में भीड़ नहीं जुटानी है। परन्तु जैसे ही सूर्योदय हुआ और दिन चढ़ा पता नहीं इन नेताओं को क्या हुआ कि वे अपनी बात से मुकर गए और सांवराद में एकत्र होने का बिगुल बजा दिया। बातचीत में शामिल ये लोग तो बात पर अडिग रहे। लेकिन पर्दे के पीछे रहे लोग गाडियों और लाव लश्कर के साथ निकल लिए। यशवर्धन सिंह शेखावत के अलावा ये लोग भी बाद में पीछे—पीछे सांवराद का रुख कर गए।

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कई मुकदमों से नवाजे जा चुके और मुकदमे खाने वाले लोग मैदान में उतर गए, सीधे—सीधे व्यवस्था के खिलाफ। बाद की कहानी सभी को मालूम है। सरकार ने हजारों लोगों पर मुकदमे दर्ज किए। राजपूत और रावणा राजपूत समाज के कई नेता अब सीबीआई द्वारा आरोपी बनाए गए हैं। इनको लम्बी सीबीआई जांच और फिर मुकदमे का सामना करना पड़ेगा। यदि उस रात को हुई सहमति के आधार पर काम होता तो कई सारे पहलु सुलझ जाते न सैकड़ों लोगों का भविष्य खत्म होता और न हजारों लोगों को आर्थिक व व्यक्तिगत नुकसान झेलना पड़ता। 

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