वेलेंटाइन डे स्पेशल: 300 सालों में ऐसे बदला प्यार, तब परिवार की अनुमति से होती थी डेटिंग
वेलेंटाइन डे स्पेशल - 300 सालों में ऐसे बदला प्यार, तब परिवार की अनुमति से होती थी डेटिंग
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Updated on: 14-Feb-2020 03:04 PM IST
वेलेंटाइन डे स्पेशल: क्या आपको मालूम है कि पिछली तीन सदियों में प्यार, रोमांस और डेटिंग का ताना-बाना कैसे बदला है। और इसी के साथ बदले हैं हम सभी और प्यार के प्रति हमारा नजरिया। तमाम तरह के आंदोलनों का असर भी प्यार पर पड़ा।।।बेशक भारत की अपनी संस्कृति रही है, जो यूरोप से एकदम अलग थी, लेकिन यूरोप के बदलाव और नई तकनीक युग की बयारों ने हमारे यहां भी गुलाबी हवाओं को पंख लगा दिए। बदलाव का तेज असर अब हमारे यहां भी देखा जा रहा है।हम यहां जो बात कर रहे हैं, आमतौर पर उसकी बयार यूरोप से चली। फिर धीरे धीरे पूरी दुनिया को अपनी बाहों में समेटती चली गई। हमारा देश भी इन बदलावों से अछूता नहीं रहा। उदारीकरण के दौर में जब भारत ने वैश्विक बाजार के लिए दरवाजे खोले तो प्यार का त्योहार वैलेंटाइन गाजे बाजे के साथ हमारे यहां भी आ धमका। 1700 - कोलोनियल दौर इस दौर में शादी और सगाई से पहले डेटिंग को मंजूरी मिलने लगी थी। वैसे लड़का और लड़की अब भी परिवार की अनुमति से ही डेटिंंग करते थे, जिसे एक खास शब्द कोर्टशिप के नाम से जानते थे। इसके तहत दोनों एक-दूसरे को जानने की कोशिश करते थे। तय करते थे क्या उन्हें आपस में शादी करनी चाहिए। हालांकि लड़का और लड़की किसके साथ कोर्टशिप करें, ये फैसला परिवार के लोग या पेरेंट्स ही करते थे। कोर्टशिप में डिनर, थिएटर, मूवी, डांसिंग पार्टीज, पिकनिक या शापिंग में जाने की अनुमति थी। इस दौरान उनके साथ या तो कोई बड़ा होता था या उन पर नजर रखी जाती थी।1780-कोलोनियल दौर का अंतरोमांस परवान चढ़ने लगा था, लेकिन परिवार की अनुमति से ही। अब भी परिवार की नजर उन पर होतीथी। विवाह पूर्व सेक्स संबंधों पर सख्त पाबंदी थी।1800- सिविल वार का समय यूरोप में युवक और युवती खुद की मर्जी से शादियां करने लगे थे। इसे लव मैरिज कहते थे। परिवार की पसंद की लड़की या लड़के से विवाह की बात कुछ शिथिल पड़ने लगी। हालांकि लड़की की शादी के लिए उसका इनोसेंट और नैतिक मूल्यों से प्रति समर्पित होना जरूरी था। पुरुष की भूमिका अपनी पत्नी और परिवार को घर उपलब्ध कराने के साथ उसकी देखभाल की थी। पुरुष और स्त्री की भूमिका साफ तौर विभाजित हो चुकी थी। लेकिन पुरुष को शादी के लिए स्त्री से मंजूरी लेनी पड़ती थी।1900- स्वर्णिम कालप्यार की असली बयार तो अब चलनी शुरू हुई थी। युवक और युवती प्यार के जरिए पार्टनर चुनने लगे थे। परिवार की रोक-टोक खत्म होने लगी थी। रोमांस का जोर बढ़ने लगा था। अब भी शादी के बाद पुरुष बाहर काम करता था। स्त्री घर में रहकर कामों को संभालती थी।1920 - पहले विश्व युद्ध का समय कोर्टशिप खत्म हो चुकी थी। स्वछंद डेटिंग का दौर आ चुका था। डेटिंग में कमिटमेंट खत्म हो चुका था। नैतिकता और शुचिता के बंधन ढीले पड़ने लगे थे।1950- द्वितीय विश्व युद्ध के बादडेटिंग का प्रचलन और बढ़ चुका था। युवक और युवतियों का डेट करना सामान्य बात लगने लगी थी। डेट पर ले जाने का मतलब था घूमना-घामना, रेस्टोरेंट, मूवी या एंटरटेनमेंट। इसका खर्च उठाने का जिम्मा पुरुषों पर था। वैसे पुरुष अब महिलाओं के प्रति और ज्यादा सम्मान का प्रदर्शन करने लगे थे। शादियां कहीं ज्यादा युवा उम्र होने लगी थीं।1960-70 फ्री लव ये समय यूरोप और अमेरिका में सेक्सुअल क्रांति का था। पुरुष और महिला खुद साथी का चयन करने के लिए पूरी तरह स्वतंत्र थे। कोई रोक-टोक नहीं थी। विवाह पूर्व सेक्स संबंधों पर रोक को मानो नकारा जा चुका था। बल्कि अब पुरुषों की बजाएं महिलाएं डेट पर जाने के लिए पहल करने लगी थीं।।पुरुष बेशक साथ हों लेकिन महिलाओं को डेटिंग का खर्च उठाने में कोई गुरेज नहीं था। विवाह से पहले साथ रहने का चलन यानि लिवइन रिलेशनशिप या केंपेनियनशिप शुरू हो चली थी।।1980- बदल गया सब कुछडेटिंंग बहुत सामान्य हो चुकी थी। युवक युवतियों का साथ मिलना, घुलना, प्रगाढता, रोमांस काफी सामान्य हो चुके थे। विवाह की संस्था कमजोर पड़ने लगी थी। डेटिंग का मतलब ये कतई नहीं था कि शादी करनी ही है। भारत में 70 के दशक तक लोग प्यार की पाती लिखते थे। छतों पर जाकर ताकझांक करते थे। चोरी-छिपे मिलते थे। हालांकि लव मैरिज को लेकर हमारे यहां प्रबल विरोध और बाधाओं का सामना करना पड़ता था। लव मैरिज हमारे समाज के लिए किसी सनसनीखेज खबर की तरह होती थी।1990- और तेज बदलाव रोमांस और प्यार पर नई तकनीक हावी होने लगी थी। इंटरनेट डेटिंग, मोबाइल एसएमएस रोमांस के नए साधन थे। रोमांस में प्रतिबद्धता खत्म हो चुकी थी। भारत में भी नए दौर के युवा नए तरीके से सोच रहे थे। तेजी के साथ भारतीय समाज के प्यार और रोमांस के टैबू को तोड़ रहे थे। आपस में मिलना-जुलना बढने लगा था। लव मैरिज तेजी से बढ़ रही थी। जिसे स्वीकार्यता मिलने लगी थी।2000- नई शताब्दी का प्यार- शादी से पूर्व लिवइन रिलेशनशिप का जोर युवा जोड़ों में काफी बढ चुका है। 40 से 50 फीसदी युवा ऐसा ही करते दिख रहे हैं। संबंध जितनी तेजी से बनते हैं उतनी ही तेजी से टूटने लगे हैं। प्यार और रोमांस फटाफट होता है और उतनी ही तेजी से खत्म भी। स्मार्टफोन, सोशल माइक्रोसाइट्स, वाट्सएप और तमाम तरह के एप्स इस नए दौर में प्यार के नए टूल हैं। भारत में रोमांस, डेटिंग और प्यार की गाड़ी बुलेट ट्रेन की तरह दौड़ने लगी है। हालांकि इसे लेकर वर्जनाएं भी हैं और अपनी तरह के विरोध भी। नई जीवनशैली के साथ आए तनाव ने प्यार और रोमांस की परिभाषाओं को भी।
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