देश: समलैंगिक विवाह मामले पर सुप्रीम कोर्ट में 5 जजों की संविधान पीठ करेगी सुनवाई, होगी लाइव स्ट्रीमिंग

देश - समलैंगिक विवाह मामले पर सुप्रीम कोर्ट में 5 जजों की संविधान पीठ करेगी सुनवाई, होगी लाइव स्ट्रीमिंग
| Updated on: 13-Mar-2023 05:55 PM IST
नई दिल्‍ली. सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने समलैंगिक विवाह (Same Sex Marriage)  को कानूनी मान्यता दिए जाने के अनुरोध वाली याचिकाओं को 5 जजों की संविधान पीठ के पास भेज दिया. कोर्ट ने सोमवार को कहा कि यह मुद्दा ‘बुनियादी महत्व’ का है और अब 18 अप्रैल को इस मामले की अगली सुनवाई की लाइव स्ट्रीमिंग होगी.

चीफ जस्टिस की अगुआई वाली तीन जजों की पीठ ने इस मामले को संविधान पीठ के पास भेजे जाने की सिफारिश की है. केंद्र सरकार के हलफनामे पर जवाब दाखिल करने के लिए याचिकाकर्ताओं को तीन हफ्ते दिए गए.

चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस जेबी पारदीवाला की बेंच ने कहा कि यह मुद्दा एक ओर संवैधानिक अधिकारों और दूसरी ओर विशेष विवाह अधिनियम सहित विशेष विधायी अधिनियमों का एक-दूसरे पर प्रभाव है. बेंच ने कहा, ‘हमारी राय है कि यदि उठाए गए मुद्दों को संविधान के अनुच्छेद 145 (3) के संबंध में पांच न्यायाधीशों की पीठ द्वारा हल किया जाता है तो यह उचित होगा.इस प्रकार, हम मामले को पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ के समक्ष भेजने का निर्देश देते हैं.’

वहीं आज कोर्ट में सुनवाई के दौरान याचिकाओं का विरोध करते हुए केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि यह ‘सामाजिक नैतिकता और भारतीय लोकाचार के अनुरूप नहीं है.’ सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि हमारे हलफनामे में कहा गया है कि ‘भारतीय वैधानिक और व्यक्तिगत कानून शासन में विवाह की विधायी समझ’ केवल एक जैविक पुरुष और जैविक महिला के बीच विवाह को संदर्भित करती है. इसमें कोई भी हस्तक्षेप व्यक्तिगत कानूनों और स्वीकृत सामाजिक मूल्यों के के नाजुक संतुलन का पूर्व विनाश होगा.

केंद्र सरकार ने की आपत्ति, कहा-  जिस क्षण समलैंगिक विवाह को मान्यता दी जाएगी…

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि प्यार, अभिव्यक्ति और पसंद की स्वतंत्रता का अधिकार पहले से ही बरकरार है. उस अधिकार में कोई भी हस्तक्षेप नहीं कर रहा है. यह भी साफ है कि इसका मतलब शादी के अधिकार को मान्‍यता प्रदान करना नहीं है. उन्‍होंने कहा कि जिस क्षण समलैंगिक विवाह को मान्यता दी जाएगी, इससे कई सवाल पैदा हो सकते हैं. इससे किसी बच्‍चे को गोद लेने पर सवाल उठेगा और इसलिए संसद को बच्चे के मनोविज्ञान के मुद्दे को देखना होगा. उसे जांचना होगा कि क्या इसे इस तरह से उठाया जा सकता है या नहीं.  इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि समलैंगिक जोड़े के गोद लिए हुए बच्चे का समलैंगिक होना जरूरी नहीं है.

Disclaimer

अपनी वेबसाइट पर हम डाटा संग्रह टूल्स, जैसे की कुकीज के माध्यम से आपकी जानकारी एकत्र करते हैं ताकि आपको बेहतर अनुभव प्रदान कर सकें, वेबसाइट के ट्रैफिक का विश्लेषण कर सकें, कॉन्टेंट व्यक्तिगत तरीके से पेश कर सकें और हमारे पार्टनर्स, जैसे की Google, और सोशल मीडिया साइट्स, जैसे की Facebook, के साथ लक्षित विज्ञापन पेश करने के लिए उपयोग कर सकें। साथ ही, अगर आप साइन-अप करते हैं, तो हम आपका ईमेल पता, फोन नंबर और अन्य विवरण पूरी तरह सुरक्षित तरीके से स्टोर करते हैं। आप कुकीज नीति पृष्ठ से अपनी कुकीज हटा सकते है और रजिस्टर्ड यूजर अपने प्रोफाइल पेज से अपना व्यक्तिगत डाटा हटा या एक्सपोर्ट कर सकते हैं। हमारी Cookies Policy, Privacy Policy और Terms & Conditions के बारे में पढ़ें और अपनी सहमति देने के लिए Agree पर क्लिक करें।