नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने फारूक अब्दुल्ला की रिहाई को लेकर केंद्र व राज्य को भेजा नोटिस

नई दिल्ली - सुप्रीम कोर्ट ने फारूक अब्दुल्ला की रिहाई को लेकर केंद्र व राज्य को भेजा नोटिस
| Updated on: 16-Sep-2019 12:24 PM IST
नई दिल्ली: जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारुक अब्दुल्ला की कथित 'हिरासत' को लेकर सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिका पर केंद्र सरकार से एक हफ्ते में जवाब मांगा गया है. राज्यसभा सांसद वाइको की याचिका पर CJI रंजन गोगोई, जस्टिस एस ए बोबडे और जस्टिस एस अब्दुल नजीर की पीठ ने सुनवाई की. याचिका पर सुनवाई करते हुए सीजेआई रंजन गोगोई ने केंद्र सरकार से पूछा 'क्या वो हिरासत में हैं?' इस पर सॉलिसिटर जनरल ने कहा हम सरकार से निर्देश लेंगे.

वाइको के वकील ने कोर्ट से कहा कि फारुक अब्दुल्ला बाहर नहीं निकल सकते, कश्मीर में अधिकारों का हनन हो रहा है. कोर्ट ने वकील से कहा कि अपनी आवाज तेज ना करें. सुप्रीम कोर्ट ने वाइको की फारुक अब्दुल्ला को रिहा करने की याचिका पर केंद्र को नोटिस जारी किया है. केंद्र सरकार ने इसका विरोध किया और कहा कि नोटिस की जरूरत नहीैं है. इस मामले पर 30 सितंबर को अगली सुनवाई होगी. 

बता दें, संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू कश्मीर के विशेष दर्जे को समाप्त किए जाने के बाद कथित रूप से नजरबंद जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला को पेश करने के लिए केंद्र और जम्मू कश्मीर को निर्देश देने की मांग करते हुए राज्यसभा सदस्य और एमडीएमके के संस्थापक वाइको ने उच्चतम न्यायालय का रूख किया है. वाइको ने अपनी याचिका में कहा है कि अधिकारियों को अब्दुल्ला को 15 सितंबर को चेन्नई में आयोजित होने वाले ‘शांतिपूर्ण और लोकतांत्रिक' वार्षिक सम्मेलन में शामिल होने की अनुमति देनी चाहिए. यह कार्यक्रम तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री सी एन अन्नादुरई के जन्मदिन के अवसर पर आयोजित किया जाएगा.

राज्यसभा सदस्य ने पिछले चार दशकों से खुद को अब्दुल्ला का करीबी दोस्त बताते हुए कहा है कि नेशनल कांफ्रेंस (नेकां) नेता को अवैध तरीके से हिरासत में लेकर उन्हें संवैधानिक अधिकारों से वंचित किया गया है. याचिका में कहा गया है कि उत्तरदाताओं (केंद्र और जम्मू और कश्मीर) की कार्रवाई पूरी तरह से अवैध और मनमानी है . जीवन की सुरक्षा तथा व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकारों तथा गिरफ्तारी और हिरासत से सुरक्षा के अधिकारों का उल्लंघन है . यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार के खिलाफ है जो लोकतांत्रिक देश की आधारशिला है.

इसमें कहा गया है, ‘‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का लोकतंत्र में सर्वोपरि महत्व है क्योंकि यह अपने नागरिकों को प्रभावी ढंग से देश के शासन में भाग लेने की अनुमति देता है.' वाइको ने कहा कि उन्होंने 29 अगस्त को अधिकारियों को इस आशय का पत्र लिखा है कि वह अब्दुल्ला को चेन्नई जा कर सम्मेलन में हिस्सा लेने की अनुमति दें लेकिन इसका उन्होंने कोई उत्तर नहीं दिया. उन्होंने बताया कि उन्होंने चार अगस्त को फोन पर अब्दुल्ला से बातचीत की थी और जम्मू कश्मीर के इस पूर्व मुख्यमंत्री को 15 सितंबर को आयोजित होने वाले कार्यक्रम में शामिल होने का न्यौता दिया था.

संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू कश्मीर को दिये गए विशेष दर्जे को केंद्र सरकार ने पांच अगस्त को वापस ले लिया था और राज्य को दो केंद्र शाषित प्रदेशों - जम्मू कश्मीर एवं लद्दाख में बांट दिया था.

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