Rajasthan Politics: सुरेंद्र पाल बन गए वोटिंग से 7 दिन पहले मंत्री, कांग्रेस ने उठाए सवाल

Rajasthan Politics - सुरेंद्र पाल बन गए वोटिंग से 7 दिन पहले मंत्री, कांग्रेस ने उठाए सवाल
| Updated on: 31-Dec-2023 08:00 AM IST
Rajasthan Politics: राजस्थान में 3 दिसंबर को चुनाव परिणाम आने के बाद नई सरकार के पूर्ण अस्तित्व में आने में करीब महीने भर का वक्त लग गया है. लेकिन कांग्रेस को हराकर फिर से सत्ता पर लौटी भारतीय जनता पार्टी ने एक बार फिर सबको चौंका दिया है. बीजेपी ने लंबे मंथन के बाद पहली बार विधायक बने भजनलाल शर्मा को प्रदेश का मुख्यमंत्री बना दिया तो अब फिर से सभी को चौंकाते हुए वोटिंग से पहले ही एक उम्मीदवार को मंत्री बना दिया. कांग्रेस ने सुरेंद्रपाल सिंह को मंत्री बनाए जाने पर आपत्ति जताई है.

जयपुर में राजभवन में राज्यपाल कलराज मिश्रा ने जब पूर्व मंत्री सुरेंद्रपाल सिंह टीटी को मंत्री पद की शपथ दिलाई तो सभी को यह नाम चौंक गया क्योंकि ये अभी विधायक भी नहीं हैं, और करणपुर विधानसभा सीट से चुनाव लड़ रहे हैं. इस सीट पर 5 जनवरी को वोटिंग कराई जानी है. वोटों की गिनती 8 जनवरी को होगी. इस सीट पर कांग्रेस के उम्मीदवार गुरमीत सिंह कूनर के निधन की वजह से चुनाव टाल दिया गया था. खास बात यह है कि 2018 के चुनाव में सुरेंद्रपाल सिंह को हार मिली थी.

राजस्थानः 25 में से 20 पहली बार बने मंत्री

आज 12 विधायकों को कैबिनेट मंत्री पद की शपथ दिलाई गई तो 5 नेता राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) और 5 राज्य मंत्री बने. मध्य प्रदेश की तर्ज पर यहां भी कई नए चेहरों को मंत्री बनाया गया. मध्य प्रदेश में 25 दिसंबर को जहां 28 विधायकों को मंत्री बनाया गया तो उसमें 7 विधायक ऐसे रहे जो पहली बार विधायक बने और मंत्री पद तक पहुंच गए. जबकि राजस्थान में आज शनिवार को 22 लोगों को मंत्री बनाया गया जिसमें 16 तो पहली बार विधायक बने हैं. अगर राजस्थान की सियासत में भजनलाल शर्मा की कैबिनेट पर नजर डालें तो आज के शपथ ग्रहण के बाद कैबिनेट की संख्या 25 तक पहुंच गई है जिसमें मुख्यमंत्री समेत 20 लोग पहली बार मंत्री बने हैं.

चुनाव से पहले ही उनको मंत्री बनाए जाने के पीछे बीजेपी की खास रणनीति मानी जा रही है. 5 साल पहले करणपुर सीट पर हुए चुनाव में सुरेंद्रपाल सिंह का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा था और चुनाव में तीसरे स्थान पर खिसक गए थे. कांग्रेस के गुरमीत सिंह कूनर ने जीत हासिल की थी. गुरमीत सिंह (73,896) ने निर्दलीय प्रत्याशी पृथीपाल सिंह (45,520) को 28,376 मतों के अंतर से हराया था. जबकि बीजेपी के सुरेंद्र सिंह को 44,099 वोट मिले और वह तीसरे स्थान पर रहे.

कांग्रेस ने गुरमीत के बेटे को बनाया उम्मीदवार

लेकिन इस बार चुनाव से पहले नवंबर में कांग्रेस के प्रत्याशी गुरमीत सिंह का निधन हो गया जिस वजह से चुनाव टाल दिया गया. वह करणपुर सीट से 3 बार विधायक रहे. जबकि सुरेंद्रपाल सिंह टीटी प्रदेश की सियासत में बीजेपी के दिग्गज नेताओं में शुमार किए जाते हैं. वह यहां से 2 बार चुनाव जीतने में कामयाब रहे थे. इस बार भी यहां पर चुनाव कांटेदार रहने के आसार हैं, क्योंकि कांग्रेस ने गुरमीत सिंह के बेटे रुपिंदर सिंह को अपना उम्मीदवार बनाया है.

सुरेंद्र सिंह, वसुंधरा राजे सिंधिया के दोनों कार्यकाल में मंत्री रहे हैं. वसुंधरा के पहले कार्यकाल में वह 2003 से 2008 तक कृषि मंत्री रहे. जबकि 2013 में फिर से सत्ता में लौटने पर वसुंधरा सरकार में खान और पेट्रोलियम मंत्री बनाए गए.

कांग्रेस ने भी जताई आपत्ति

पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भी सुरेंद्रपाल सिंह को मंत्री बनाए जाने पर आपत्ति जताई है. उन्होंने X पर पोस्ट कर कहा कि करणपुर में आचार संहिता के प्रभावी होने के बावजूद बीजेपी प्रत्याशी को मंत्री बनाना आचार संहिता का खुला-खुला उल्लंघन है. साथ ही मतदाताओं को प्रभावित करने का प्रयास है. चुनाव आयोग इस मसले पर संज्ञान ले और अविलंब कार्रवाई करे.

बीजेपी की ओर से चुनाव से पहले ही सुरेंद्रपाल को मंत्री बनाए जाने की कांग्रेस की ओर से आलोचना की जा रही है. कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने इस पर नाराजगी दिखाते हुए कहा कि पार्टी इस मामले को चुनाव आयोग में ले जाएगी और कार्रवाई की मांग करेगी. उनका कहना है कि देश में यह शायद अपनी तरह का पहला मामला है जब चुनाव से पहले ही बीजेपी ने अपने उम्मीदवार को मंत्री बना दिया है.

बीजेपी की ओर से राजस्थान में 20 नेताओं को पहली बार मंत्री बनाया गया है, लेकिन कुछ ऐसे भी चेहरे हैं जो अपार अनुभव रखने के बाद भी मंत्री नहीं बनाए गए हैं. राजधानी जयपुर जिले की मालवीय नगर विधानसभा सीट से कालीचरण सर्राफ आठवीं बार विधायक बने हैं लेकिन मंत्री नहीं बन सके. इसी तरह बारां जिले की छबड़ा सीट से बीजेपी के प्रताप सिंह सिंघवी सातवीं बार विधायक बनने में कामयाब रहे लेकिन मंत्री पद से वह भी दूर रह गए.

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