Nepal New PM: नेपाल की राजनीति, जो हमेशा से गठबंधनों की जटिलताओं और सड़क प्रदर्शनों की आग में झुलसती रही है, ने एक ऐतिहासिक मोड़ लिया है। कई दिनों तक चले हिंसक विरोध प्रदर्शनों के बाद, प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली समेत कई मंत्रियों के इस्तीफे के बाद, पूर्व मुख्य न्यायाधीश सुशीला कार्की को देश का अंतरिम प्रधानमंत्री चुना गया है। 73 वर्षीय कार्की नेपाल की पहली महिला प्रधानमंत्री होंगी, भले ही यह पद अस्थायी हो। यह फैसला जेन-जेड युवाओं के नेतृत्व वाले आंदोलन की मांग पर आधारित है, जिसने भ्रष्टाचार, सोशल मीडिया प्रतिबंध और आर्थिक अस्थिरता के खिलाफ सड़कों पर उतरकर सरकार को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया। लेकिन सवाल अब यह उठता है कि नेपाल के संविधान के अनुसार अंतरिम पीएम की भूमिका क्या है? उनके पास कितनी शक्तियां हैं, और यह व्यवस्था लोकतंत्र की स्थिरता कैसे सुनिश्चित करती है?
पिछले सप्ताह काठमांडू और अन्य शहरों में फैले प्रदर्शनों ने 34 लोगों की जान ले ली और 1,300 से अधिक को घायल कर दिया। संसद भवन, राष्ट्रपति भवन और ओली के निजी आवास तक आग के हवाले हो गए। सोशल मीडिया प्रतिबंध को हटाने के बाद भी आंदोलन थमा नहीं, क्योंकि युवा भ्रष्टाचार और राजनीतिक अस्थिरता के खिलाफ थे। जेन-जेड समूह ने डिस्कॉर्ड पर ऑनलाइन सर्वेक्षण कर कार्की का नाम चुना, उन्हें "ईमानदार, निडर और अटल" बताते हुए। काठमांडू के मेयर बालेन शाह और बिजली प्राधिकरण के पूर्व प्रमुख कुलमान घिसिंग जैसे अन्य नाम भी चर्चा में थे, लेकिन सेना प्रमुख जनरल अशोक राज सिग्देल और राष्ट्रपति रामचंद्र पौडेल की सलाह पर कार्की पर सहमति बनी।
कार्की, जो 2016 में नेपाल की पहली महिला मुख्य न्यायाधीश बनीं, का चयन संवैधानिक विशेषज्ञों की सिफारिश पर हुआ। उन्होंने कहा, "मैंने युवाओं की अपील स्वीकार की है। हम छह महीने में आम चुनाव कराएंगे, ताकि जनता अपना नेता चुन सके।" यह नियुक्ति संविधान की धारा 76(7) के तहत हुई, जो प्रधानमंत्री के पद रिक्त होने पर पुरानी सरकार को अंतरिम रूप से चलाने की अनुमति देती है। लेकिन कार्की का चयन एक अपवाद है, क्योंकि वे संसद सदस्य नहीं हैं, जो बहस का विषय बना हुआ है।
नेपाल का वर्तमान संविधान, 2015 (नेपाल का संविधान-2072), एक संघीय लोकतांत्रिक गणराज्य की रूपरेखा खींचता है। भाग 7 की धारा 76 प्रधानमंत्री की नियुक्ति और बहुमत की प्रक्रिया को विस्तार से परिभाषित करती है। मुख्य प्रावधान इस प्रकार हैं:
| प्रावधान | विवरण |
|---|---|
| धारा 76(1) | राष्ट्रपति प्रतिनिधि सभा में बहुमत वाली संसदीय पार्टी के नेता को प्रधानमंत्री नियुक्त करेंगे। |
| धारा 76(2) | यदि कोई पार्टी बहुमत न पाए, तो सबसे बड़े दल के नेता को पीएम बनाया जाएगा, जो 30 दिनों में विश्वास मत साबित करेंगे। |
| धारा 76(5) | यदि कोई सदस्य विश्वास मत जीतने का आधार दिखाए, तो राष्ट्रपति उसे पीएम नियुक्त कर सकते हैं। |
| धारा 76(7) | पीएम के इस्तीफे या पद रिक्त होने पर, पुरानी मंत्रिपरिषद तब तक चलेगी जब तक नई नियुक्ति न हो। यदि नया पीएम न चुना जाए, तो राष्ट्रपति पूर्व पीएम को अंतरिम रूप से रख सकते हैं। |
| धारा 77(3) | पीएम की मृत्यु पर वरिष्ठतम मंत्री अंतरिम पीएम बनेगा। |
संविधान "केयरटेकर पीएम" शब्द का स्पष्ट उल्लेख नहीं करता, लेकिन व्यवहार में यही स्थिति बनती है। यदि कोई पीएम बहुमत खो दे या संसद भंग हो, तो राष्ट्रपति चुनाव (6 महीने के अंदर) तक अंतरिम व्यवस्था सुनिश्चित करते हैं। कार्की का मामला विशेष है, क्योंकि जेन-जेड की मांग पर संवैधानिक मार्ग से उनकी नियुक्ति की कोशिश हो रही है।
अंतरिम प्रधानमंत्री की भूमिका "लिमिटेड एग्जीक्यूटिव" होती है, जिसका उद्देश्य केवल संक्रमणकालीन स्थिरता बनाए रखना है। संविधान धारा 75 के तहत कार्यपालिका की शक्ति मंत्रिपरिषद में निहित है, लेकिन अंतरिम अवस्था में ये शक्तियां रूटीन कार्यों तक सीमित हो जाती हैं। मुख्य शक्तियां:
हालांकि, वे ये नहीं कर सकते:
यह सीमा न्यायपालिका और परंपरा से तय होती है, ताकि अंतरिम पीएम सत्ता का दुरुपयोग न कर सके। उदाहरणस्वरूप, 2021 में ओली को संसद भंग करने पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगाई थी।
राष्ट्रपति का पद सांकेतिक है (धारा 61), लेकिन संकट में वे संविधान के संरक्षक बन जाते हैं। वे मंत्रिपरिषद की सिफारिश पर कार्य करते हैं, लेकिन अंतरिम अवस्था में शून्य से बचाव करते हैं। संसद चुनाव के बाद नया बहुमत राष्ट्रपति को सिफारिश करेगी। जेन-जेड ने संसद भंग की मांग की है, जो धारा 76(7) के तहत संभव है, लेकिन कार्की के कार्यकाल में चुनाव सुनिश्चित होंगे।
नेपाल ने गणतंत्र बनने के बाद कई अंतरिम सरकारें देखीं। 2013 में बाबुराम भट्टराई के इस्तीफे पर मुख्य न्यायाधीश खिलराज रेग्मी को अंतरिम प्रमुख बनाया गया। 2021 में ओली-देउबा विवाद में अदालत ने फैसला दिया। ये उदाहरण दिखाते हैं कि अंतरिम पीएम "स्टेटस क्वो" बनाए रखते हैं, ताकि लोकतंत्र का संक्रमण सुचारु रहे।
दुनिया भर में भी यही परंपरा है। भारत में चुनाव घोषणा पर केयरटेकर पीएम केवल रूटीन कार्य करते हैं। बांग्लादेश में शेख हसीना के भागने के बाद नोबेल विजेता मुहम्मद यूनुस अंतरिम प्रमुख बने। ब्रिटेन जैसे देशों में भी केयरटेकर सरकार नीतिगत निर्णयों से दूर रहती है।
ओली के इस्तीफे के बाद नेपाल में गठबंधन टूटे हैं, और न्यायपालिका की भूमिका पर बहस तेज है। आलोचक कहते हैं कि अंतरिम पीएम कभी-कभी सीमाओं का उल्लंघन करते हैं, जैसे शीर्ष नियुक्तियां। समर्थक तर्क देते हैं कि आपात स्थिति में लचीलापन जरूरी है। लेकिन लोकतंत्र की मजबूती के लिए ये सीमाएं अपरिहार्य हैं—वरना सत्ता हस्तांतरण चुनावी धांधली या विपक्ष दमन का शिकार हो सकता है।
सुशीला कार्की का कार्यकाल नेपाल के लिए एक परीक्षा है। उनकी निष्पक्षता युवाओं का विश्वास जीत चुकी है, लेकिन छह महीने में चुनाव कराना चुनौतीपूर्ण होगा। नेपाल की अस्थिर राजनीति में यह पद केवल "संक्रमण के प्रहरी" है—एक ऐसी व्यवस्था जो लोकतंत्र को बचाए रखे, न कि नई उथल-पुथल पैदा करे। यदि कार्की सफल रहीं, तो यह न केवल महिलाओं के लिए बल्कि युवा-नेतृत्व वाली राजनीति के लिए भी मिसाल बनेगा।