Indian Rupee: भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने आज अपनी मौद्रिक नीति समीक्षा के दौरान भारतीय रुपये को अंतरराष्ट्रीय व्यापार में मजबूत बनाने के लिए कई महत्वपूर्ण कदमों की घोषणा की। RBI गवर्नर संजय मल्होत्रा ने बताया कि इन उपायों से न केवल दक्षिण एशिया के पड़ोसी देशों के साथ व्यापार आसान होगा, बल्कि रुपये की वैश्विक स्वीकार्यता भी बढ़ेगी। विशेष रूप से, नेपाल, भूटान और श्रीलंका जैसे देशों के गैर-निवासियों को अब भारतीय बैंकों से रुपये में ऋण मिल सकेगा, जो मुख्य रूप से सीमा-पार व्यापार की जरूरतों को पूरा करेगा।
यह घोषणा तब आई है जब भारत के निर्यात का एक बड़ा हिस्सा दक्षिण एशियाई क्षेत्र की ओर निर्देशित है। आंकड़ों के मुताबिक, भारत के कुल निर्यात में से लगभग 90 प्रतिशत पड़ोसी देशों को जाता है, जो सालाना करीब 25 अरब डॉलर का कारोबार दर्शाता है। इन नई सुविधाओं से न केवल व्यापारिक लागत कम होगी, बल्कि डॉलर पर निर्भरता घटाकर रुपये को क्षेत्रीय मुद्रा के रूप में स्थापित करने में मदद मिलेगी। विशेषज्ञों का मानना है कि यह कदम भारत को आर्थिक रूप से मजबूत क्षेत्रीय नेता के रूप में उभारेगा।
RBI ने मुद्रा बाजार की पारदर्शिता बढ़ाने के लिए एक और सकारात्मक कदम उठाया है। अब भारत के प्रमुख व्यापारिक साझेदार देशों की मुद्राओं के लिए स्पष्ट संदर्भ दरें (रेफरेंस रेट्स) निर्धारित की जाएंगी। इससे व्यापारियों और व्यवसायों को रुपये के मुकाबले अन्य मुद्राओं की वास्तविक दरों का सटीक आकलन करने में आसानी होगी। पहले, विनिमय दरों में उतार-चढ़ाव के कारण व्यापारिक लेन-देन में अनिश्चितता बनी रहती थी, लेकिन अब यह प्रक्रिया अधिक भरोसेमंद और कुशल हो जाएगी।
इससे रुपये में बिलिंग और भुगतान की प्रथा को बढ़ावा मिलेगा, जो अंततः विदेशी मुद्रा भंडार पर दबाव कम करेगी। RBI के अनुसार, ये दरें बाजार-आधारित होंगी और नियमित रूप से अपडेट की जाएंगी, जिससे वैश्विक व्यापार में भारतीय व्यवसायों की प्रतिस्पर्धात्मक क्षमता मजबूत होगी।
RBI ने विशेष रुपये वोस्ट्रो खातों (SRVAs) के उपयोग को और विस्तार दिया है। अब इन खातों में जमा राशि का इस्तेमाल केवल व्यापार तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि विदेशी निवेशक इससे भारतीय कंपनियों के कॉरपोरेट बॉन्ड्स और वाणिज्यिक पत्रों (कमर्शियल पेपर्स) की खरीदारी भी कर सकेंगे। पहले, यह सुविधा सरकारी प्रतिभूतियों तक ही सीमित थी, लेकिन अब निजी क्षेत्र के वित्तीय साधनों को शामिल करने से निवेश विकल्पों की संख्या बढ़ गई है।
इस बदलाव से विदेशी पूंजी का प्रवाह बढ़ेगा और रुपये की मांग में इजाफा होगा। गवर्नर मल्होत्रा ने कहा, "ये उपाय रुपये की अंतरराष्ट्रीयकरण प्रक्रिया को गति देंगे, जिससे भारत वैश्विक वित्तीय प्रणाली में अधिक एकीकृत हो सकेगा।" आर्थिक विश्लेषकों का अनुमान है कि इससे भारतीय बाजार में विदेशी निवेश 10-15 प्रतिशत तक बढ़ सकता है।
RBI का यह प्रयास रुपये को वैश्विक मुद्रा बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है। पिछले कुछ वर्षों में, बैंक ने मुद्रा स्वैप समझौतों, UPI जैसे डिजिटल भुगतान तंत्रों को सीमा-पार विस्तार देने और रुपये की स्थिरता सुनिश्चित करने जैसे कदम उठाए हैं। इन नई पहलों से पड़ोसी देशों में रुपये का उपयोग न केवल व्यापार में, बल्कि दैनिक लेन-देन में भी बढ़ेगा।
परिणामस्वरूप, भारत की आर्थिक कूटनीति मजबूत होगी और क्षेत्रीय एकीकरण को बल मिलेगा। हालांकि, चुनौतियां बनी रहेंगी, जैसे वैश्विक आर्थिक अस्थिरता और भू-राजनीतिक जोखिम, लेकिन RBI की ये पहल रुपये को 'पड़ोसी देशों का पसंदीदा माध्यम' बनाने की दिशा में सकारात्मक संकेत दे रही हैं। भविष्य में, यह भारत को एक स्थिर और विश्वसनीय वैश्विक आर्थिक शक्ति के रूप में स्थापित कर सकता है।