India Oil Economy: भारत की 5 साल में कितनी बदली ऑयल इकोनॉमी, दुनिया देखकर हुई हैरान

India Oil Economy - भारत की 5 साल में कितनी बदली ऑयल इकोनॉमी, दुनिया देखकर हुई हैरान
| Updated on: 30-Jul-2025 07:20 AM IST

India Oil Economy: भारत का गैस और ऑयल सेक्टर एक महत्वपूर्ण रणनीतिक दौर से गुजर रहा है, खासकर ऐसे समय में जब वैश्विक स्तर पर भू-राजनीतिक तनाव और आर्थिक नीतियां ऊर्जा बाजारों को प्रभावित कर रही हैं। रूस-यूक्रेन युद्ध, मध्य पूर्व में अस्थिरता, और अमेरिकी टैरिफ नीतियों ने वैश्विक तेल आपूर्ति को जटिल बना दिया है। फिर भी, पिछले पांच वर्षों में भारत ने अपनी ऊर्जा रणनीति को इस तरह से ढाला है कि वह इन चुनौतियों का सामना करते हुए अपनी अर्थव्यवस्था को स्थिर रख सके। रूसी तेल के आयात में उल्लेखनीय वृद्धि और मध्य पूर्व के आपूर्तिकर्ताओं पर निर्भरता में कमी इसका प्रमुख उदाहरण है।

रूसी तेल की बढ़ती हिस्सेदारी

रूबिक्स इंडस्ट्री इनसाइट्स की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, भारत, जो दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा कच्चा तेल आयातक देश है, ने रूसी तेल के आयात में अभूतपूर्व वृद्धि की है। वित्तीय वर्ष 2020 में रूस से आयात मात्र 2% था, जो 2025 में बढ़कर 35% से अधिक हो गया है। इस दौरान, रूसी तेल का आयात 96% की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (सीएजीआर) से बढ़ा है। दूसरी ओर, खाड़ी देशों की हिस्सेदारी में कमी आई है, जिससे भारत की ऊर्जा रणनीति में भू-राजनीतिक और वाणिज्यिक संतुलन को बढ़ावा मिला है।

रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद से भारत ने रूसी तेल की रियायती कीमतों का लाभ उठाकर अपनी अर्थव्यवस्था को संबल प्रदान किया है। यह रणनीति न केवल लागत प्रभावी रही है, बल्कि भारत को वैश्विक तेल बाजार में एक प्रमुख रिफाइंड पेट्रोलियम निर्यातक के रूप में उभरने में भी मदद मिली है। वित्तीय वर्ष 2025 में भारत के पेट्रोलियम उत्पादों (पीओएल) का निर्यात मूल्य 44.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गया, जिसके प्रमुख बाजार नीदरलैंड, संयुक्त अरब अमीरात और सिंगापुर हैं।

भारत का रिफाइनिंग और निर्यात में उभार

रिपोर्ट के अनुसार, भारत अब दुनिया का सातवां सबसे बड़ा रिफाइंड पेट्रोलियम उत्पाद निर्यातक बन गया है। देश की 23 रिफाइनरियों की कुल रिफाइनिंग क्षमता 257 मिलियन मीट्रिक टन प्रति वर्ष (एमएमटीपीए) है, जिससे भारत दुनिया का चौथा सबसे बड़ा रिफाइनिंग केंद्र बन गया है। सरकार का लक्ष्य 2030 तक इसे बढ़ाकर 309.5 एमएमटीपीए करना है, जिसमें इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन लिमिटेड (आईओसीएल), भारत पेट्रोलियम कॉरपोरेशन लिमिटेड (बीपीसीएल), और हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉरपोरेशन लिमिटेड (एचपीसीएल) जैसी सरकारी कंपनियों से बड़े निवेश का समर्थन मिलेगा।

हालांकि, घरेलू उत्पादन में कमी एक चिंता का विषय है। वित्तीय वर्ष 2020 में 32.2 मिलियन मीट्रिक टन से घटकर 2025 में यह 28.7 मिलियन मीट्रिक टन हो गया है। इसकी वजह से भारत की कच्चे तेल के आयात पर निर्भरता 88.2% तक पहुंच गई है। मांग के मामले में भी भारत की स्थिति मजबूत है, जो 2024 में 5.64 मिलियन बैरल प्रतिदिन से बढ़कर 2030 तक 6.66 मिलियन बैरल प्रतिदिन होने का अनुमान है।

प्राकृतिक गैस और स्वच्छ ऊर्जा की दिशा में कदम

प्राकृतिक गैस भारत के ऊर्जा क्षेत्र का एक अन्य महत्वपूर्ण स्तंभ है। वित्तीय वर्ष 2025 में इसकी मांग 71 अरब क्यूबिक मीटर तक पहुंच गई, जिसमें 50% हिस्सा आयातित तरलीकृत प्राकृतिक गैस (एलएनजी) से पूरा हुआ। अमेरिका, यूएई को पीछे छोड़कर भारत का दूसरा सबसे बड़ा एलएनजी आपूर्तिकर्ता बन गया है। भारत की योजना 2030 तक अपने ऊर्जा मिश्रण में गैस की हिस्सेदारी को 6% से दोगुना करके 15% करने की है, जिसे पाइपलाइन विस्तार और रीगैसीफिकेशन परियोजनाओं के माध्यम से समर्थन मिलेगा।

स्वच्छ ऊर्जा के क्षेत्र में भी भारत ने उल्लेखनीय प्रगति की है। प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना (पीएमयूवाई) ने 10.3 करोड़ से अधिक घरों तक एलपीजी की पहुंच सुनिश्चित की है। इसके अलावा, इथेनॉल मिश्रण 2025 की शुरुआत में 20% तक पहुंच गया, जो निर्धारित लक्ष्य से छह साल पहले हासिल हुआ। शहरी गैस वितरण को भी बढ़ावा दिया जा रहा है, जिसका लक्ष्य 70% आबादी तक पहुंचना है।

चुनौतियां और भविष्य की राह

वैश्विक स्तर पर रूसी तेल पर अमेरिकी प्रतिबंध और मध्य पूर्व में तनाव भारत के लिए जोखिम पैदा कर रहे हैं। कीमतों में उतार-चढ़ाव और घरेलू उत्पादन में कमी भी चुनौतियां हैं। रिफाइनरी क्षमता में वृद्धि का लक्ष्य भी अभी तक उम्मीद के मुताबिक नहीं बढ़ पाया है। मध्य पूर्व में तनाव के कारण आपूर्ति श्रृंखलाओं में व्यवधान का खतरा बना हुआ है।

फिर भी, भारत की रणनीति ने उसे वैश्विक ऊर्जा बाजार में एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी के रूप में स्थापित किया है। रूसी तेल पर बढ़ती निर्भरता, रिफाइनिंग क्षमता में वृद्धि, और स्वच्छ ऊर्जा की दिशा में कदम भारत को एक लचीली और भविष्योन्मुखी ऊर्जा नीति की ओर ले जा रहे हैं। इन प्रयासों के साथ, भारत न केवल अपनी ऊर्जा सुरक्षा को मजबूत कर रहा है, बल्कि वैश्विक ऊर्जा व्यापार में भी अपनी स्थिति को और सुदृढ़ कर रहा है।

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