Reserve Bank Of India: भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने अक्टूबर 2025 में हुई अपनी हालिया मॉनेटरी पॉलिसी कमेटी (एमपीसी) की बैठक में रेपो रेट को 5.5% पर अपरिवर्तित रखने का फैसला किया। यह लगातार दूसरी बार है जब आरबीआई ने नीतिगत दर में कोई बदलाव नहीं किया। जीएसटी में हालिया कटौती के बाद देशवासियों को ब्याज दरों में राहत की उम्मीद थी, लेकिन आरबीआई के इस कदम ने उन उम्मीदों पर पानी फेर दिया।
अमेरिकी फर्म मॉर्गन स्टेनली ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि आरबीआई दिसंबर 2025 की अगली एमपीसी बैठक में रेपो रेट में 25 आधार अंकों की कटौती कर सकता है। इसके बाद फरवरी 2026 में एक और कटौती की संभावना है, जिससे रेपो रेट 5% तक कम हो सकता है। मॉर्गन स्टेनली के अनुसार, यह कटौती घरेलू विकास और मुद्रास्फीति के रुझानों के अनुरूप होगी।
रिपोर्ट में कहा गया, "हम दिसंबर की नीति में 25 आधार अंकों की कटौती की संभावना देखते हैं, जो मौजूदा आर्थिक परिदृश्य को देखते हुए उपयुक्त है।"
आरबीआई ने वित्त वर्ष 2026 के लिए अपने जीडीपी विकास अनुमान को पहले के 6.5% से बढ़ाकर 6.8% कर दिया है। हालांकि, व्यापार और टैरिफ से जुड़ी वैश्विक चुनौतियों के कारण वित्त वर्ष 2026 की पहली छमाही में आर्थिक विकास में कमी की आशंका जताई गई है।
मुद्रास्फीति के मोर्चे पर, आरबीआई ने वित्त वर्ष 2026 के लिए मुख्य उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) मुद्रास्फीति अनुमान को 3.1% से घटाकर 2.6% कर दिया है। अगले साल मुद्रास्फीति के 4.5% के आसपास रहने की उम्मीद है। दूसरी ओर, मॉर्गन स्टेनली का अनुमान है कि वित्त वर्ष 2026 और 2027 में मुद्रास्फीति औसतन 4% से नीचे रहेगी, जबकि समग्र आर्थिक विकास कमजोर रह सकता है।
मॉर्गन स्टेनली ने सुझाव दिया कि आरबीआई को अक्टूबर की बैठक में ही ब्याज दरों में कटौती कर देनी चाहिए थी, क्योंकि मौद्रिक नीति का असर अर्थव्यवस्था पर दिखने में समय लगता है। रिपोर्ट में तीन प्रमुख कारणों का उल्लेख किया गया है:
मुख्य उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) में कमी: कीमतों में कमी की प्रवृत्ति देखी जा रही है, जो ब्याज दरों में कटौती के लिए अनुकूल माहौल बनाती है।
कमजोर आर्थिक वृद्धि: आर्थिक विकास की गति धीमी होने की आशंका है, जिसे समर्थन देने के लिए नीतिगत राहत की जरूरत है।
वैश्विक आर्थिक माहौल: वैश्विक स्तर पर अनुकूल परिस्थितियां ब्याज दरों में कटौती का समर्थन करती हैं।