Tulsi Vivah 2025: तुलसी विवाह 2025: शुभ मुहूर्त में ऐसे करें पूजा, जानें विधि-विधान और महत्व

Tulsi Vivah 2025 - तुलसी विवाह 2025: शुभ मुहूर्त में ऐसे करें पूजा, जानें विधि-विधान और महत्व
| Updated on: 02-Nov-2025 08:44 AM IST
तुलसी विवाह का पावन पर्व आज, 2 नवंबर को पूरे विधि-विधान और श्रद्धा के साथ मनाया जा रहा है. यह दिन तुलसी माता और भगवान शालिग्राम के पवित्र विवाह का प्रतीक है, जिसे सृष्टि में शुभता और समृद्धि के पुनः आगमन का सूचक माना जाता है. इस दिव्य मिलन को संपन्न कराने से घरों में मंगल कार्यों का. आरंभ होता है और दांपत्य जीवन में सुख-शांति का संचार होता है. यह पर्व न केवल धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह आध्यात्मिक रूप से भी गहरा अर्थ रखता है, क्योंकि यह लक्ष्मी और नारायण के शाश्वत प्रेम और समर्पण को दर्शाता है.

तुलसी विवाह का शुभ मुहूर्त

तुलसी विवाह का यह महत्वपूर्ण पर्व देवउठनी एकादशी के अगले दिन द्वादशी तिथि को मनाया जाता है. इस वर्ष, द्वादशी तिथि की शुरुआत 2 नवंबर की सुबह 07:31 बजे से हो रही है, और यह अगले दिन, 3 नवंबर को सुबह 05:07 बजे समाप्त होगी. इस शुभ अवधि में भक्तजन तुलसी माता और भगवान शालिग्राम का विवाह संपन्न कराकर उनका आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं. यह मुहूर्त पूजा-अर्चना और धार्मिक अनुष्ठानों के लिए अत्यंत फलदायी माना. गया है, जिसमें की गई पूजा से विशेष लाभ प्राप्त होते हैं.

धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व

तुलसी विवाह का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व अत्यंत गहरा है, जैसा कि स्कंद और पद्म पुराण में वर्णित है और इन पवित्र ग्रंथों के अनुसार, तुलसी माता भगवान विष्णु की सर्वप्रिय हैं और उनके बिना कोई भी पूजा पूर्ण नहीं मानी जाती. तुलसी विवाह को लक्ष्मी-नारायण के दिव्य मिलन का प्रतीक माना जाता है, जो सृष्टि में पुनः शुभता और समृद्धि का संचार करता है. इस व्रत से विवाहित जीवन में प्रेम, सौहार्द और स्थिरता आती है, जिससे पति-पत्नी के संबंध मजबूत होते हैं और घर में सुख-शांति बनी रहती है. वहीं, अविवाहितों को योग्य जीवनसाथी का आशीर्वाद प्राप्त होता है, जिससे उनके विवाह में आने वाली बाधाएं दूर होती हैं. यह विवाह संसार में धर्म, समर्पण और सौभाग्य की पुनर्स्थापना का प्रतीक है, जो भक्तों को आध्यात्मिक उन्नति की ओर अग्रसर करता है. तुलसी विवाह की पूजा की शुरुआत सुबह स्नान और शुद्धि से की जाती है.

भक्तजन स्वच्छ वस्त्र धारण कर पूजा स्थल को पवित्र करते हैं. इसके बाद, तुलसी के पौधे को एक चौकी या मंडप पर स्थापित किया जाता है, जिसे फूलों और रंगोली से सजाया जाता है और इस पवित्र अनुष्ठान के लिए कुछ आवश्यक सामग्री की आवश्यकता होती है, जिनमें भगवान विष्णु का चित्र या शालिग्राम शिला, तुलसी का पौधा, पीले और लाल वस्त्र (क्रमशः शालिग्राम जी और तुलसी माता के लिए), गन्ना, नारियल, विभिन्न प्रकार के फूल, सुहाग की वस्तुएं जैसे सिंदूर, चूड़ी, बिंदी और बिछिया शामिल हैं. इसके अतिरिक्त, धूप, दीपक, पान-सुपारी, पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद और गंगाजल का मिश्रण), अक्षत (साबुत चावल), हल्दी-कुमकुम, एक कलश और रेशमी डोरा भी पूजा सामग्री का महत्वपूर्ण हिस्सा होते हैं. इन सभी सामग्रियों को एकत्रित करने से पूजा विधि को सुचारु रूप से संपन्न किया जा सकता है.

तुलसी विवाह की मुख्य पूजा विधि

तुलसी विवाह की पूजा विधि अत्यंत सरल और श्रद्धापूर्ण होती है और सबसे पहले, तुलसी माता को जल से स्नान कराया जाता है और उन्हें लाल वस्त्र पहनाए जाते हैं, जो दुल्हन के रूप में उनके श्रृंगार का प्रतीक है. इसके बाद, उन्हें सुहाग की सामग्री जैसे सिंदूर, चूड़ी, बिंदी और बिछिया से सजाया जाता है, जिससे वे पूर्ण रूप से एक नवविवाहिता की तरह दिखें. दूसरी ओर, भगवान शालिग्राम को गंगाजल से स्नान कराकर शुद्ध किया जाता है और उन्हें पीताम्बर (पीले वस्त्र) पहनाए जाते हैं, जो भगवान विष्णु का प्रिय वस्त्र है और इसके पश्चात, तुलसी माता और शालिग्राम जी को आमने-सामने बैठाया जाता है, जिससे उनके दिव्य मिलन का दृश्य साकार हो सके. विवाह मंत्रों 'ॐ तुलस्यै नमः' और 'ॐ शालिग्रामाय नमः' का उच्चारण किया जाता है, जिससे वातावरण में पवित्रता और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और रेशमी डोरे से दोनों का प्रतीकात्मक मिलन कराया जाता है, जो उनके बंधन को दर्शाता है. तुलसी माता को नारियल और पान-सुपारी अर्पित कर कन्यादान की क्रिया की जाती है, जो इस विवाह का एक महत्वपूर्ण चरण है. अंत में, आरती उतारकर भगवान और तुलसी माता का आशीर्वाद लिया जाता है और प्रसाद वितरित किया जाता है, जिसे सभी भक्तजन ग्रहण करते हैं. यह संपूर्ण विधि-विधान भक्तों के जीवन में सुख, शांति और समृद्धि लाता है.

तुलसी विवाह के लाभ और महत्व

तुलसी विवाह का अनुष्ठान करने से अनेक प्रकार के लाभ प्राप्त होते हैं और यह पर्व घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है, जिससे नकारात्मकता दूर होती है. दांपत्य जीवन में मधुरता और सामंजस्य बढ़ता है, और पति-पत्नी के बीच प्रेम गहरा होता है और जो लोग संतान सुख से वंचित हैं, उन्हें इस पूजा से संतान प्राप्ति का आशीर्वाद मिल सकता है. इसके अलावा, यह पूजा धन-धान्य और समृद्धि को आकर्षित करती है, जिससे घर में कभी किसी चीज की कमी नहीं होती. तुलसी माता को लक्ष्मी का स्वरूप और भगवान शालिग्राम को विष्णु का स्वरूप मानने के कारण, उनके विवाह से दोनों देवताओं का आशीर्वाद एक साथ प्राप्त होता है. यह पर्व भक्तों को धर्म के मार्ग पर चलने और समर्पण का महत्व समझने की प्रेरणा देता है, जिससे उनका आध्यात्मिक जीवन भी उन्नत होता है. इस प्रकार, तुलसी विवाह केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि जीवन में सुख, शांति और समृद्धि लाने वाला एक महत्वपूर्ण पर्व है.

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