NCP Reshuffle: सियासी अखाड़े में पुरानी है चाचा-भतीजे की जंग, क्या होगा अजीत पवार का?

NCP Reshuffle - सियासी अखाड़े में पुरानी है चाचा-भतीजे की जंग, क्या होगा अजीत पवार का?
| Updated on: 12-Jun-2023 06:31 PM IST
NCP Reshuffle: राजनीति के धुरंधर शरद पवार की ताजी चाल का क्या असर होगा? यह समय बताएगा लेकिन इस घटनाक्रम के बाद भारतीय राजनीति में चाचा-भतीजों के किस्से सबकी जुबान पर हैं. सब अपने-अपने हिसाब से आंकलन कर रहे हैं. चर्चाएं कर रहे हैं. आइए, चाचा शरद-भतीजे अजीत के बहाने देश के पांच ऐसे ही किस्सों को फिर से ताजा करने की कोशिश करते हैं.

बाला साहब ठाकरे-राज ठाकरे

शुरुआत महाराष्ट्र से ही. शिवसेना के संस्थापक बाला साहब ठाकरे के साथ साये की तरह एक नौजवान रहा करता था. नाम है राज ठाकरे. राज की सक्रियता और बाला साहब से रिश्ते तो देखते हुए कई बार लोग राज को बाला साहब का पुत्र समझ बैठते थे. राज के राजनीतिक फैसले पर बाला साहब की मुहर मानी जाती थी.

क्योंकि उस जमाने में बाला साहब के सुपुत्र उद्धव ठाकरे राजनीति में न ही सक्रिय थे और न ही वे सार्वजनिक मंचों पर परिवार और शिवसेना का प्रतिनिधित्व करते देखे जाते थे. पर समय के साथ चाचा बाला साहब ठाकरे और भतीजे राज ठाकरे के रिश्तों में कड़वाहट आने लगी.रूठने-मनाने का क्रम भी कई राउंड चला और अंततः दोनों के रास्ते अलग हो गए.

शिवसेना की कमान धीरे-धीरे उद्धव के पास आ गयी. राज ठाकरे ने साल 2006 में महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना नाम से एक पार्टी बना ली. हालांकि, शिवसेना में रहने पर बेहद प्रभावशाली रहे राज ठाकरे राजनीति में कुछ खास नहीं कर पाए. जोड़-तोड़ से सीएम बने उद्धव भी पार्टी को एकजुट नहीं रख सके. इन सबकी राजनीतिक महत्वाकांक्षा में आज शिवसेना खंड-खंड हो चुकी है. देखना रोचक होगा कि आगे के चुनावों मनसे, शिवसेना उद्धव गुट और शिवसेना शिंदे गुट का महाराष्ट्र की आम जनता किस तरह मदद करती है.

शिवपाल सिंह यादव-अखिलेश यादव

उत्तर प्रदेश के सीएम रहे बेहद प्रभावशाली नेता मुलायम सिंह यादव के सगे छोटे भाई शिवपाल सिंह यादव की भूमिका समाजवादी पार्टी को खड़ा करने में बहुत महत्वपूर्ण रही है. इससे शायद ही कोई इनकार कर सके. पर, साल 2012 विधान सभा चुनाव में जब सपा पूर्ण बहुमत से जीत कर आयी तो अचानक मुलायम सिंह यादव ने अपने पुत्र अखिलेश यादव को यूपी के सीएम की कुर्सी सौंप दी.

इसके बाद मुलायम के फैसले पर अनेक सवाल उठे. भतीजे अखिलेश की सरकार में चाचा शिवपाल मंत्री बने,पर देखते ही देखते रिश्तों में खटास आ गयी. कार्यकाल खत्म होने से पहले शिवपाल को मंत्रिमंडल से हटना पड़ा. फिर मुलायम सिंह यादव के सामने ही शिवपाल ने प्रगतिशील समाजवादी पार्टी बना ली. बीच में कई बार शिवपाल के भाजपा में जाने की चर्चा हुई.

साल 2022 में हुए विधान सभा चुनाव के बाद उम्मीद कई जा रही थी कि नेता विपक्ष का पद शिवपाल के पास रहेगा. पर, ऐसा नहीं हुआ. इस बीच अखिलेश-शिवपाल के रिश्ते में फिर खटास देखी गयी. इस बीच मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद उनकी सीट पर हुए उपचुनाव में अखिलेश ने अपनी पत्नी डिम्पल को मैदान में उतारा और चाचा से मिलकर सभी गिलवे शिकवे दूर किए. डिम्पल के जीतने के बाद शिवपाल ने अपनी पार्टी का बिना शर्त सपा में विलय कर दिया. पर, दोनों के रिश्ते अभी भी सामान्य हैं, ऐसा एकदम से नहीं लगता.

अभय चौटाला-दुष्यंत चौटाला

अगली कहानी है भतीजे दुष्यंत चौटाला और चाचा अभय चौटाला की. दिल्ली से सटे राज्य हरियाणा में चौटाला परिवार का राजनीतिक दबदबा हुआ करता था. जमीन तैयार की चौधरी देवीलाल ने. वे सीएम भी रहे. बाद में उनके सुपुत्र ओम प्रकाश चौटाला भी सीएम रहे. उनके दोनों बेटे अजय-अभय भी राजनीति में सक्रिय हुए. समय ने करवट ली तो ओम प्रकाश चौटाला और उनके सुपुत्र अजय चौटाला जेल चले गए. अब अभय चौटाला के लिए राजनीति में रास्ता साफ होते हुए दिखा लेकिन अजय के पुत्र दुष्यंत सक्रिय हो गए. उसी राजनीतिक विरासत के दो दावेदार आमने-सामने चाचा-भतीजे के रूप में आ गए.

चाचा के व्यवहार से आहत दुष्यंत ने नई पार्टी बना ली और 2019 का विधान सभा चुनाव लड़ गए. चाचा गुम हो गए और भतीजा हरियाणा का किंग मेकर बन बैठा. दुष्यंत आज डिप्टी सीएम हैं. उन्होंने अपने समर्थन से भाजपा की सरकार बनाई. चाचा अभय अगले चुनाव के इंतजार में हैं.

प्रकाश सिंह बादल-मनप्रीत बादल

हरियाणा से सटे पंजाब में चाचा प्रकाश सिंह बादल-भतीजे मनप्रीत बादल की कहानी भी कम रोचक नहीं है. मनप्रीत ने चाचा कि गोद में रहकर राजनीति सीखी. शिरोमणि अकाली दल के टिकट पर कम से कम चार बार एमएलए बने. मंत्री भी रहे. खूब फैसले लिए. पर, प्रकाश सिंह बादल के सुपुत्र सुखबीर कि बढ़ती सक्रियता के बीच रिश्तों में दरार आने लगी.

मनप्रीत ने एक नया दल बना लिया. कई दलों से गठजोड़ कर चुनाव लड़े लेकिन कुछ हाथ नहीं लगा. फिर मनप्रीत पार्टी समेत कांग्रेस में चले गए. एमएलए और मंत्री भी बने. हाल ही में वहाँ से निकल कर अब भाजपा में हैं. मतलब, मूल पार्टी छोड़ने के बाद कहीं वह जगह नहीं मिल पाई, जो पहले थी.

शरद पवार-अजीत पवार

अंतिम कहानी चाचा शरद पवार और भतीजे अजीत पवार की. इस रिश्ते में दरार पड़नी शुरू हो गई जब शरद पवार ने बेटी सुप्रिया सुले को आगे किया. धीरे-धीरे दरार बढ़ती गयी. हा,लोगों को दिख नहीं रही थी. एकदिन सुबह-सुबह यह दरार विस्फोटक स्थिति में आ गयी जब अजीत ने भाजपा नेता देवेंद्र फड़नवीस के साथ सुबह-सुबह डिप्टी सीएम की शपथ ले ली. राजनीति के पुराने खिलाड़ी शरद ने खबर मिलते ही कहा कि यह अजीत का निजी फैसला है. पार्टी का इससे कोई लेना-देना नहीं है.

एनसीपी विधायकों का साथ न मिलने की वजह से सरकार धड़ाम हो गयी. भाजपा की किरकिरी भी हुई. फिर सब सामान्य दिखने लगा तो शरद पवार ने एनसीपी अध्यक्ष पद से इस्तीफा देकर सबको चौंका दिया. पर, इस कहानी की स्क्रिप्ट ठीक से लिखी गयी थी. पार्टी मीटिंग में इस्तीफा नामंजूर कर दिया गया. फिर चंद रोज पहले पार्टी में दो कार्यकारी अध्यक्ष बनाने की चिट्ठी सार्वजनिक हुई. सुप्रिया सुले और प्रफुल्ल पटेल. इस फैसले के बाद अजीत पवार अब अपना वजन आंक रहे हैं. देखना रोचक होगा कि उनका अगला कदम क्या होगा? चाचा के साथ अब भी बने रहेंगे या फिर कोई नया रास्ता अख्तियार करेंगे?

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