Sweden Turkey: कुरान विवाद के बीच अमेरिका और तुर्की स्वीडन को लेकर क्यों आमने-सामने?

Sweden Turkey - कुरान विवाद के बीच अमेरिका और तुर्की स्वीडन को लेकर क्यों आमने-सामने?
| Updated on: 05-Jul-2023 01:47 PM IST
Sweden Turkey: स्वीडन में कुरान जलाने की घटना के खिलाफ हर तरफ हलचल है. कई देश इसके विरोध में बोल रहे हैं. अमेरिकी विदेश मंत्रालय की तरफ से भी घटना को गलत करार दिया गया है. वहीं, तुर्की समेत कई इस्लामिक देश कड़े शब्दों में प्रतिक्रिया दे रहे हैं. इस बीच स्वीडन की NATO मेंबरशिप को लेकर भी चर्चा शुरू हो गई है. तुर्की खुले तौर पर इसका विरोध कर रहा है जबकि अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने इस मुद्दे पर अपना समर्थन जाहिर करने के लिए स्वीडन के प्रधानमंत्री को व्हाइट हाउस में बुलाया है.

स्वीडन के प्रधानमंत्री उल्फ क्रिस्टर्सन बुधवार को व्हाइट हाउस पहुंच रहे हैं, जहां दोनों नेताओं की मुलाकात होनी है. इस मीटिंग से पहले व्हाइट हाउस की तरफ से जारी बयान में कहा गया है कि बाइडेन और प्रधानमंत्री उल्फ क्रिस्टर्सन दोनों देशों के बीच बढ़ते सुरक्षा सहयोग की समीक्षा करेंगे. व्हाइट हाउस के बयान में ये भी कहा गया है कि वो जल्द से जल्द स्वीडन को NATO में शामिल होते देखना चाहते हैं.

फरवरी 2022 में जब रूस ने यूक्रेन पर हमला किया तो उसके बाद पूरी दुनिया में हलचल मच गई. कई देश अपनी सुरक्षा को लेकर चिंतित हो गए. इसी कड़ी में स्वीडन और फिनलैंड अपने सिद्धांतों से आगे बढ़ते हुए नाटो की सदस्यता के लिए कदम आगे बढ़ाए. लेकिन तुर्की इसमें रोड़ा बन रहा है.

तुर्की लगातार ये आरोप लगाता रहा है कि स्वीडन आतंकवादी संगठनों को शरण देता है. तुर्की में 2016 में जिन कुर्दिश ग्रुप्स ने तख्तापलट की कोशिश की थी, उन्हें स्वीडन में शरण मिलने के आरोप एर्दोगन की तरफ से लगाए जाते हैं. तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगन ने हाल ही में खुलेआम कहा है कि तुर्की ऐसे देशों से दोस्ती नहीं रख सकता जो आतंकवाद को बढ़ावा देते हैं या उन्हें जगह देते हैं.

इसके साथ ही हाल ही में बकरीद के मौके पर स्वीडन में कुरान जलाने की जो घटना हुई उससे भी तुर्की काफी नाराज है. तुर्की ने इस घटना को मुसलमानों के खिलाफ हेट क्राइम माना है और स्वीडन को इस पूरे घटनाक्रम के लिए जिम्मेदार ठहराया है. तुर्की का कहना है कि जो लोग एंटी-इस्लामिक प्रदर्शन कर रहे हैं और जो लोग तुर्की की सुरक्षा के लिए चुनौती हैं उन्हें स्वीडन समर्थन दे रहा है.

बता दें कि तुर्की नाटो का एक प्रमुख सदस्य है. किसी देश को नाटो में तभी शामिल किया जाता है जब उसके सभी सदस्य देशों की सहमति मिल जाती है. लिहाजा, स्वीडन को इस ग्रुप में शामिल होने के लिए तुर्की की मंजूरी जरूरी है. लेकिन तुर्की लगातार स्वीडन को लेकर फाइनल अप्रूवल टाल रहा है. फिलहाल, तुर्की और हंगरी ऐसे दो देश हैं जिन्होंने स्वीडन को नाटो में लाने का समर्थन नहीं किया है. नाटो समिट 11-12 जुलाई को होने जा रहा है.

तुर्की भले ही विरोध में हो, लेकिन दूसरी तरफ अमेरिका खुले मन से स्वीडन को स्वीकार कर रहा है. कुरान जलाने की घटना पर अमेरिका ने सख्त प्रतिक्रिया दी थी, लेकिन स्वीडन को नाटो में लाने के लिए वो पूरी तरह तैयार है. ऐसे स्वीडन के मुद्दे पर अमेरिका और तुर्की आमने-सामने नजर आ रहे हैं.

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