Us Foreign Policy: जापान में डिफेंस बजट की जरूरत क्यों बढ़ रही, क्या अमेरिका से है खतरा?

Us Foreign Policy - जापान में डिफेंस बजट की जरूरत क्यों बढ़ रही, क्या अमेरिका से है खतरा?
| Updated on: 05-Mar-2025 09:00 PM IST

Us Foreign Policy: अंग्रेजी का एक प्रसिद्ध मुहावरा है, "There Are No Free Lunches," जिसका अर्थ है कि दुनिया में कुछ भी मुफ्त नहीं मिलता। यह कहावत अमेरिका की विदेश नीति पर पूरी तरह लागू होती है। विशेष रूप से जब से डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका के राष्ट्रपति बने हैं, तब से अमेरिकी नीतियों में एक स्पष्ट बदलाव देखा गया है। अमेरिका अब अपने हर निवेश और सहयोग की वसूली करने की रणनीति पर आगे बढ़ रहा है। इसका प्रभाव न केवल यूक्रेन पर पड़ रहा है, बल्कि जापान और ताइवान जैसे पारंपरिक सहयोगी भी इस दबाव को महसूस कर रहे हैं।

जापान: आत्मनिर्भर रक्षा नीति की ओर कदम

जापान ने 2022 में निर्णय लिया कि वह अपने रक्षा क्षेत्र को मजबूत करने के लिए अगले पांच वर्षों में 287.09 बिलियन डॉलर खर्च करेगा। यह निर्णय ऐसे समय लिया गया जब रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू हुआ था। जापान की योजना 2027 तक अपनी जीडीपी का 2% रक्षा बजट पर खर्च करने की है।

हाल ही में पेंटागन के नामित अधिकारी एल्ब्रिज कॉल्बी ने सुझाव दिया कि जापान को अपने रक्षा बजट को बढ़ाकर जीडीपी का 3% करना चाहिए। इस पर जापान के प्रधानमंत्री शिगेरू इशिबा ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि उनका देश अपनी रक्षा नीतियां स्वयं तय करेगा, न कि कोई बाहरी शक्ति। जापान का यह रुख अमेरिका की नीतियों से बढ़ते असंतोष को दर्शाता है।

अमेरिका और जापान: क्या बदल रहा है समीकरण?

अमेरिका और जापान के बीच 60 वर्षों से अधिक पुराना रक्षा संधि संबंध है। लेकिन अब जापान अपनी रक्षा नीति को स्वतंत्र रूप से विकसित कर रहा है। इसकी सबसे बड़ी वजह चीन, रूस और उत्तर कोरिया से जुड़ा समुद्री सीमा विवाद है। जापान ने ‘एक्सिस ऑफ डेमोक्रेसी’ को मजबूती देने में अहम भूमिका निभाई, जिसका ही विस्तार QUAD के रूप में हुआ। यह पहल एशिया-प्रशांत क्षेत्र में स्थिरता बनाए रखने के लिए की गई थी।

हालांकि, अमेरिका के पूर्व के रिकॉर्ड देखें, तो वह अपनी रक्षा रणनीति का उपयोग अपने हितों की पूर्ति के लिए करता रहा है। इराक युद्ध के दौरान अमेरिका ने पहले सद्दाम हुसैन को हटाया और फिर वहां के तेल संसाधनों पर नियंत्रण कर लिया। अफगानिस्तान में भी तालिबान और अल-कायदा को खत्म करने के बाद अमेरिका ने अचानक अपनी सेना हटा ली, जिससे वहां पुनः तालिबान का शासन स्थापित हो गया।

यूक्रेन से वसूली का खेल?

डोनाल्ड ट्रंप ने कई बार दावा किया है कि अमेरिका ने यूक्रेन की सहायता के लिए 300 से 350 अरब डॉलर खर्च किए हैं। हालांकि, जर्मनी के थिंक टैंक Kiel Institute के अनुसार, यह राशि जनवरी 2022 से दिसंबर 2024 के बीच लगभग 119.7 अरब डॉलर रही है। इसके बावजूद, अमेरिका अब यूक्रेन से इस निवेश की वसूली करना चाहता है।

बीते दिनों डोनाल्ड ट्रंप और यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलेंस्की के बीच एक बैठक हुई, जो तनावपूर्ण रही। इसके बाद अमेरिका ने यूक्रेन को दी जा रही सैन्य सहायता रोक दी। वर्तमान में, यूक्रेन की रक्षा जरूरतों का लगभग 30% खर्च अमेरिकी सहायता से पूरा होता है।

इसके तुरंत बाद, यूक्रेन ने अमेरिका के साथ मिनरल्स डील पर सहमति जता दी, जिसका अमेरिका लंबे समय से दबाव बना रहा था। अमेरिका को इलेक्ट्रिक व्हीकल इंडस्ट्री के लिए लिथियम और अन्य दुर्लभ खनिजों की आवश्यकता है, जो यूक्रेन के पास प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं। इस सौदे का अनुमानित मूल्य 500 अरब डॉलर तक हो सकता है। यह सौदा इस बात का प्रमाण है कि अमेरिका अपने द्वारा किए गए खर्च की भरपाई करने के लिए नए रास्ते तलाश रहा है।

ताइवान: अगला निशाना?

डोनाल्ड ट्रंप और वोलोदिमिर जेलेंस्की की तल्ख बैठक के बाद ताइवान भी चिंतित हो गया है। ताइवान के रक्षा मंत्री वेलिंगटन कू ने अमेरिका से पूछा कि क्या एशिया-प्रशांत क्षेत्र की स्थिरता अब भी अमेरिका की प्राथमिकता है।

ताइवान सेमीकंडक्टर उत्पादन में विश्व का सबसे बड़ा केंद्र है। अमेरिका चाहता है कि ताइवान अपनी जीडीपी का 10% रक्षा पर खर्च करे, जबकि अभी यह आंकड़ा 2.45% है। दूसरी ओर, चीन ताइवान को अपना हिस्सा मानता है और यदि वह इस पर कब्जा कर लेता है, तो एशिया की सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति बन सकता है। यह अमेरिका के लिए एक बड़ा झटका होगा।

निष्कर्ष: अमेरिका का बदलता वैश्विक दृष्टिकोण

अमेरिका की नई रणनीति स्पष्ट संकेत देती है कि वह अपने सहयोगियों से भी आर्थिक और सामरिक लाभ प्राप्त करना चाहता है। यूक्रेन, जापान और ताइवान इस नई नीति से प्रभावित हो रहे हैं। ‘There Are No Free Lunches’ की अवधारणा अमेरिका की विदेश नीति में स्पष्ट रूप से झलकती है।

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