US Presidential Elections: चुनाव में वोट 24 करोड़, पर चंद हजार से भी कैसे हो जाता है 'खेला'?

US Presidential Elections - चुनाव में वोट 24 करोड़, पर चंद हजार से भी कैसे हो जाता है 'खेला'?
| Updated on: 05-Nov-2024 01:00 AM IST
US Presidential Elections: अमेरिका, दुनिया के सबसे शक्तिशाली देशों में से एक, एक बार फिर राष्ट्रपति चुनाव के निर्णायक दौर में है। इस बार 5 नवंबर को अमेरिकी नागरिक वोटिंग करेंगे, लेकिन कौन जीतेगा इसका अंदाजा लगाना फिलहाल मुश्किल है। ऐसा भी हो सकता है कि यह चुनाव बेहद कम अंतर से तय हो, और डोनाल्ड ट्रंप या कमला हैरिस में से कोई एक कुछ हजार वोटों से राष्ट्रपति बन जाए।

हालांकि, अमेरिकी चुनाव में ऐसा पहली बार नहीं होगा। 2020 में, जो बाइडेन ने मात्र 0.03% वोटों के अंतर से चुनाव जीता था, जबकि उस साल कुल 15 करोड़ वोट डाले गए थे। इससे पहले 2016 में, डोनाल्ड ट्रंप भी इसी तरह से कम अंतर से विजेता बने थे। इस बार, 24 करोड़ मतदाताओं में से लगभग 7 करोड़ लोग अर्ली वोटिंग के जरिए पहले ही वोट दे चुके हैं, और इतना कम अंतर फिर से निर्णायक साबित हो सकता है। इसके पीछे सबसे बड़ी वजह है अमेरिका का अनोखा चुनावी तंत्र, जिसका सबसे अहम हिस्सा है इलेक्टोरल कॉलेज।

अमेरिका का इलेक्टोरल सिस्टम

अमेरिका के चुनावी तंत्र में कुल 538 इलेक्टर्स या प्रतिनिधि होते हैं, जो हर राज्य की जनसंख्या के आधार पर तय होते हैं। जैसे कि, कैलिफोर्निया के पास 55 इलेक्टोरल वोट हैं जबकि वायोमिंग के पास केवल 3। राष्ट्रपति बनने के लिए किसी भी उम्मीदवार को 270 इलेक्टोरल वोट्स की आवश्यकता होती है। इसमें से कई राज्य पहले से ही किसी एक पार्टी के पक्ष में होते हैं, जबकि कुछ राज्य अनिश्चित होते हैं, जिन्हें स्विंग स्टेट्स कहा जाता है। इस बार, ऐसे सात स्विंग स्टेट्स हैं: मिशिगन, पेन्सिलवेनिया, विस्कॉन्सिन, एरिजोना, नेवादा, जॉर्जिया, और नॉर्थ कैरोलिना। इन राज्यों के 93 इलेक्टोरल वोट्स बहुत निर्णायक साबित हो सकते हैं और इन पर उम्मीदवारों का खास ध्यान होता है।

स्विंग स्टेट्स की अहमियत

अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव का विजेता हमेशा सबसे अधिक वोट पाने वाला उम्मीदवार नहीं होता, बल्कि इलेक्टोरल कॉलेज के 538 वोट्स में से 270 का आंकड़ा छूने वाला ही जीतता है। 50 राज्यों में से 48 ऐसे हैं जहां 'विनर टेक्स ऑल' सिस्टम लागू है। उदाहरण के लिए, कैलिफोर्निया के 55 इलेक्टोरल वोट्स में से अगर ट्रंप अधिक वोट हासिल करते हैं, तो पूरे 55 वोट्स उन्हीं के खाते में जाएंगे। इससे स्विंग स्टेट्स का महत्व और भी बढ़ जाता है, क्योंकि यहां दोनों उम्मीदवारों के जीतने की संभावना होती है, और यही राज्य परिणाम को निर्णायक बना सकते हैं।

अमेरिकी चुनाव में कम अंतर से हुई ऐतिहासिक जीतें

2020 के चुनाव में, बाइडेन और ट्रंप के बीच मुकाबला कड़ा था। 15 करोड़ से अधिक वोट डाले गए, लेकिन फैसला सिर्फ 42,918 वोटों से हुआ था, जो कुल वोट का 0.03% ही था। बाइडेन ने जॉर्जिया, ऐरिजोना और विस्कॉन्सिन जैसे स्विंग स्टेट्स में मामूली बढ़त से जीत हासिल की, जिसके चलते वह 306 इलेक्टोरल वोट्स तक पहुंच सके। इसी तरह 2016 के चुनाव में, ट्रंप ने 0.06% के मामूली अंतर से जीत दर्ज की थी, जबकि 13.7 करोड़ वोट डाले गए थे।

साल 2000 का चुनाव भी अमेरिकी इतिहास का सबसे विवादास्पद चुनाव था। जॉर्ज डब्ल्यू बुश और अल गोर के बीच मुकाबला इतना करीबी था कि फ्लोरिडा के 537 वोटों ने चुनाव परिणाम को तय किया। इस मामूली अंतर के कारण चुनाव में धांधली के आरोप लगे और मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा, जहां 5 में से 4 जजों ने बुश के पक्ष में निर्णय दिया। यह चुनाव अमेरिका में सबसे कम अंतर से जीते गए चुनावों में गिना जाता है।

निष्कर्ष

अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव का परिणाम इलेक्टोरल कॉलेज और स्विंग स्टेट्स के कारण हर बार चौंकाने वाला होता है। जहां आम वोटिंग से नहीं बल्कि इलेक्टोरल वोट से राष्ट्रपति चुना जाता है, यह प्रणाली लोकतांत्रिक ढांचे में एक अनोखा और दिलचस्प पहलू जोड़ती है। अब देखना यह है कि इस बार ट्रंप और हैरिस में से कौन 270 के जादुई आंकड़े तक पहुंचता है और व्हाइट हाउस में अपनी जगह बनाता है।

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