Aravalli Controversy: अरावली की परिभाषा पर गहलोत और राठौड़ आमने-सामने, बीजेपी-कांग्रेस में छिड़ी जुबानी जंग

Aravalli Controversy - अरावली की परिभाषा पर गहलोत और राठौड़ आमने-सामने, बीजेपी-कांग्रेस में छिड़ी जुबानी जंग
| Updated on: 21-Dec-2025 07:30 PM IST
राजस्थान में अरावली हिल्स की परिभाषा को लेकर एक नया राजनीतिक विवाद खड़ा हो गया है, जिसमें भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और कांग्रेस पार्टी एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगा रही हैं। यह विवाद अरावली की 100 मीटर की परिभाषा के इर्द-गिर्द घूम रहा है, जिसे लेकर दोनों दल अपने-अपने तर्क प्रस्तुत कर रहे हैं और इस मुद्दे ने राज्य की राजनीति में एक बार फिर पर्यावरण संरक्षण और राजनीतिक दांव-पेंच के बीच की रेखा को धुंधला कर दिया है।

विवाद की जड़: अरावली की 100 मीटर की परिभाषा

अरावली हिल्स की 100 मीटर की परिभाषा ही इस पूरे विवाद का केंद्र बिंदु है। यह परिभाषा अरावली क्षेत्र में निर्माण और खनन गतिविधियों को नियंत्रित करने के लिए महत्वपूर्ण है। पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और भाजपा नेता राजेन्द्र राठौड़ दोनों ही इस परिभाषा के इतिहास और वर्तमान में इसके समर्थन को लेकर एक-दूसरे पर निशाना साध रहे हैं। राठौड़ का दावा है कि गहलोत अरावली को लेकर जनता में भ्रम फैला रहे हैं, जबकि गहलोत का आरोप है कि मौजूदा भाजपा सरकार एक ऐसी परिभाषा का समर्थन कर रही है जिसे सुप्रीम कोर्ट पहले ही खारिज कर चुका है और यह स्थिति राज्य में पर्यावरण नीति और राजनीतिक जवाबदेही पर गंभीर सवाल खड़े करती है। रविवार को प्रदेश बीजेपी कार्यालय में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए भाजपा नेता राजेन्द्र राठौड़ ने पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत पर अरावली को लेकर भ्रम फैलाने का आरोप लगाया और राठौड़ ने स्पष्ट रूप से कहा कि तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने ही साल 2003 में अरावली की 100 मीटर की परिभाषा की सिफारिश की थी। उनके अनुसार, गहलोत अब उस मुद्दे पर राजनीति कर रहे हैं जिसकी नींव उनकी अपनी सरकार ने रखी थी। राठौड़ ने इस बात पर जोर दिया कि गहलोत का वर्तमान अभियान केवल एक राजनीतिक दिखावा है और इसका पर्यावरण संरक्षण से कोई लेना-देना नहीं है। उन्होंने गहलोत के 'Save Aravalli' अभियान पर भी सवाल उठाए, यह कहते हुए कि। उनकी अपनी पार्टी के शीर्ष नेता भी इस अभियान का समर्थन नहीं कर रहे हैं।

राठौड़ का गहलोत पर भ्रम फैलाने का आरोप

गहलोत का पलटवार और बीजेपी सरकार पर सवाल

राजेन्द्र राठौड़ के आरोपों पर पलटवार करते हुए पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भाजपा सरकार पर तीखा हमला बोला। गहलोत ने स्वीकार किया कि 2003 में तत्कालीन राज्य सरकार को विशेषज्ञ समिति (एक्सपर्ट कमेटी) ने आजीविका और रोजगार के दृष्टिकोण से 100 मीटर की परिभाषा की सिफारिश की थी। उन्होंने यह भी बताया कि इस परिभाषा को राज्य सरकार ने एफिडेविट के माध्यम से 16 फरवरी 2010 को सुप्रीम कोर्ट के सामने रखा था। हालांकि, गहलोत ने तुरंत यह भी जोड़ा कि सुप्रीम कोर्ट ने इसे महज तीन दिन बाद, यानी 19 फरवरी 2010 को ही खारिज कर दिया था। उनकी सरकार ने न्यायपालिका के आदेश का पूर्ण सम्मान करते हुए इसे स्वीकार किया और फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया (FSI) से मैपिंग करवाई।

सुप्रीम कोर्ट द्वारा खारिज परिभाषा का समर्थन क्यों? गहलोत ने अपने बयान में सबसे महत्वपूर्ण सवाल उठाया कि जब सुप्रीम कोर्ट 14 साल पहले 2010 में ही इस परिभाषा को खारिज कर? चुका है, तो उसी परिभाषा का 2024 में राजस्थान की मौजूदा भाजपा सरकार ने समर्थन करते हुए केन्द्र सरकार की समिति से सिफारिश क्यों की? उन्होंने इस कदम के पीछे के कारणों पर संदेह व्यक्त किया और पूछा कि क्या यह किसी का दबाव था या इसके पीछे कोई बड़ा खेल है। गहलोत के इन सवालों ने भाजपा सरकार को कटघरे में खड़ा कर दिया है और इस मुद्दे पर और स्पष्टीकरण की मांग की है। यह दर्शाता है कि कांग्रेस इस मुद्दे को केवल ऐतिहासिक संदर्भ तक सीमित। नहीं रखना चाहती, बल्कि वर्तमान सरकार की मंशा पर भी सवाल उठा रही है।

'Save Aravalli' अभियान पर राजनीतिक दिखावे का आरोप

राजेन्द्र राठौड़ ने अशोक गहलोत के 'Save Aravalli' अभियान को केवल राजनीतिक दिखावा करार दिया। उन्होंने कहा कि गहलोत ने 18 दिसंबर को सोशल मीडिया पर इस अभियान को शुरू करके अपनी प्रोफाइल पिक्चर बदली थी, लेकिन उनकी अपनी पार्टी के प्रमुख नेता जैसे कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा, राहुल गांधी, मल्लिकार्जुन खड़गे और सचिन पायलट ने अपनी प्रोफाइल पिक्चर नहीं बदली। राठौड़ के अनुसार, यह दर्शाता है कि जिस अभियान का दावा किया जा। रहा है, उसमें स्वयं उनकी पार्टी का समर्थन भी उनके साथ नहीं है। इससे स्पष्ट है कि यह अभियान पर्यावरण संरक्षण के लिए वास्तविक चिंता से प्रेरित नहीं। है, बल्कि आगामी चुनावों या अन्य राजनीतिक लाभ के लिए एक रणनीति का हिस्सा है।

अरावली संरक्षण की गंभीरता पर सवाल

यह पूरा विवाद अरावली हिल्स के संरक्षण की गंभीरता और राजनीतिक दलों की प्रतिबद्धता पर सवाल उठाता है। एक तरफ, कांग्रेस सरकार द्वारा 2003 में की गई सिफारिश और। फिर 2010 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा उसकी अस्वीकृति का इतिहास है। दूसरी तरफ, वर्तमान भाजपा सरकार द्वारा उसी खारिज की गई परिभाषा का 2024 में समर्थन करने का आरोप है और दोनों ही दल एक-दूसरे पर पर्यावरण के नाम पर राजनीति करने का आरोप लगा रहे हैं, जिससे अरावली के भविष्य को लेकर चिंताएं बढ़ गई हैं। इस मुद्दे पर आगे की बहस और स्पष्टीकरण की आवश्यकता है ताकि अरावली के संरक्षण के लिए एक स्पष्ट और प्रभावी नीति बनाई जा सके, जो राजनीतिक दांव-पेंच से परे हो।

आगे की राह और जनता की अपेक्षाएं

इस राजनीतिक खींचतान के बीच, राजस्थान की जनता और पर्यावरण कार्यकर्ता अरावली के वास्तविक संरक्षण के लिए ठोस कदमों की उम्मीद कर रहे हैं और यह देखना होगा कि क्या दोनों दल इस मुद्दे पर राजनीतिक बयानबाजी से ऊपर उठकर अरावली के दीर्घकालिक संरक्षण के लिए एक साझा दृष्टिकोण अपना पाते हैं या यह विवाद केवल आरोप-प्रत्यारोप तक ही सीमित रहेगा। अरावली हिल्स राजस्थान और पड़ोसी राज्यों के लिए एक महत्वपूर्ण पारिस्थितिक तंत्र है, और इसकी सुरक्षा सुनिश्चित करना सभी हितधारकों की सामूहिक जिम्मेदारी है और इस विवाद का समाधान केवल तभी संभव है जब सभी पक्ष तथ्यों और पर्यावरण संरक्षण के वास्तविक उद्देश्यों पर ध्यान केंद्रित करें।

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