Aravalli Hills: अरावली पर भ्रम फैलाने का आरोप: पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने खनन विवाद पर दी सफाई
Aravalli Hills - अरावली पर भ्रम फैलाने का आरोप: पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने खनन विवाद पर दी सफाई
अरावली पर्वतमाला की सुरक्षा को लेकर जारी विवाद के बीच केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने एक महत्वपूर्ण प्रेस कॉन्फ्रेंस की है। इस दौरान उन्होंने अरावली के मुद्दे पर फैलाई जा रही भ्रांतियों और गलत सूचनाओं को स्पष्ट करने का प्रयास किया। मंत्री यादव ने जोर देकर कहा कि सरकार अरावली के संरक्षण के लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध है और इस संबंध में किसी भी प्रकार के भ्रम को दूर करना आवश्यक है। उन्होंने उन आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया, जिनमें कहा गया था कि बड़े पैमाने पर खनन की अनुमति देने के लिए अरावली की परिभाषा में बदलाव किया गया है।
भ्रम फैलाने का आरोप और सरकार का रुख
केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में स्पष्ट रूप से कहा कि अरावली पर्वतमाला के संबंध में कुछ पक्षों द्वारा भ्रम फैलाया जा रहा है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि अरावली हमारे देश की सबसे प्राचीन पर्वत श्रृंखला है, जिसका ऐतिहासिक और पारिस्थितिक महत्व अतुलनीय है। मंत्री ने बताया कि हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने इस विषय पर एक महत्वपूर्ण फैसला दिया था, जिसे कुछ लोगों द्वारा गलत तरीके से प्रस्तुत किया जा रहा है। उन्होंने इस फैसले का अध्ययन करने के बाद यह निष्कर्ष निकाला कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में अरावली की पहाड़ियों का विस्तार और संरक्षण हुआ है और यह बयान उन आरोपों के ठीक उलट है जिनमें अरावली के क्षरण की बात कही जा रही थी।अरावली का महत्व और संरक्षण के प्रयास
अरावली पर्वतमाला भारत की सबसे पुरानी पर्वत श्रृंखलाओं में से एक है, जो लाखों वर्षों से इस क्षेत्र के पर्यावरण और जलवायु को प्रभावित करती रही है। इसका विस्तार हरियाणा, दिल्ली और राजस्थान जैसे राज्यों में है, जहां यह एक महत्वपूर्ण ग्रीन बेल्ट और जल विभाजक के रूप में कार्य करती है और मंत्री यादव ने अपने बयान में विशेष रूप से हरियाणा, दिल्ली और राजस्थान में पहाड़ियों के बढ़ने का उल्लेख किया, जो यह दर्शाता है कि इन क्षेत्रों में संरक्षण और हरियाली बढ़ाने के लिए ठोस प्रयास किए गए हैं। दिल्ली के ग्रीन बेल्ट के लिए किए गए कार्यों का जिक्र करते हुए उन्होंने सरकार की पर्यावरण-अनुकूल नीतियों पर प्रकाश डाला। इन प्रयासों का उद्देश्य न केवल अरावली के प्राकृतिक स्वरूप को बनाए रखना है,। बल्कि शहरीकरण के दबाव के बावजूद इसके पारिस्थितिक संतुलन को भी सुरक्षित रखना है।सर्वोच्च न्यायालय के फैसले की सही व्याख्या
मंत्री भूपेंद्र यादव ने सर्वोच्च न्यायालय के फैसले की गलत व्याख्या पर भी अपनी बात रखी और उन्होंने कहा कि कोर्ट के जजमेंट में स्पष्ट रूप से यह कहा गया था कि अरावली को बचाने और इसे बढ़ाने के लिए कदम उठाए जाने चाहिए। यह निर्देश सरकार की संरक्षण नीतियों के अनुरूप है। उन्होंने उस भ्रम को दूर किया जिसमें यह माना जा रहा था कि कोर्ट ने खनन को बढ़ावा देने का कोई आदेश दिया है। मंत्री ने स्पष्ट किया कि कोर्ट का आदेश अरावली के संरक्षण और संवर्धन पर केंद्रित था, न कि इसके दोहन पर। उन्होंने यह भी बताया कि फैसले में 'टॉप मीटर' का जो विषय है, वह खनन के लिए न्यूनतम स्टेज को संदर्भित करता है, जिसका अर्थ यह नहीं है कि बड़े पैमाने पर खनन की अनुमति दी गई है।एनसीआर और कोर क्षेत्रों में खनन पर प्रतिबंध
पर्यावरण मंत्री ने खनन गतिविधियों पर सरकार के सख्त रुख को दोहराया। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में खनन की इजाजत बिल्कुल नहीं है, जिससे इस संवेदनशील क्षेत्र में किसी भी प्रकार की खनन गतिविधि का सवाल ही पैदा नहीं होता। यह प्रतिबंध एनसीआर की वायु गुणवत्ता और पर्यावरण को बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण है। इसके अतिरिक्त, उन्होंने यह भी बताया कि अरावली के 'कोर एरिया' में भी खनन की अनुमति नहीं है और 'कोर एरिया' वे क्षेत्र होते हैं जो पारिस्थितिक रूप से सबसे संवेदनशील और महत्वपूर्ण होते हैं, और उनका संरक्षण सर्वोच्च प्राथमिकता पर होता है। यह नीतिगत निर्णय अरावली के सबसे महत्वपूर्ण हिस्सों को किसी भी प्रकार के औद्योगिक हस्तक्षेप से बचाने के लिए लिया गया है।नई लीज और सीमित खनन पात्रता
मंत्री भूपेंद्र यादव ने यह भी साफ किया कि अरावली क्षेत्र में कोई नई लीज माइनिंग नहीं दी जाएगी। यह एक महत्वपूर्ण कदम है जो भविष्य में खनन गतिविधियों के विस्तार को रोकेगा और मौजूदा खनन क्षेत्रों को भी नियंत्रित करेगा। उन्होंने अरावली पर्वतमाला के कुल क्षेत्रफल के संबंध में एक महत्वपूर्ण आंकड़ा प्रस्तुत किया और उन्होंने बताया कि अरावली का कुल क्षेत्रफल 1. 44 लाख वर्ग किलोमीटर है, जिसमें से मात्र 0. 19% हिस्से में ही खनन की पात्रता हो सकती है। यह आंकड़ा दर्शाता है कि अरावली का एक बहुत छोटा हिस्सा ही सैद्धांतिक रूप से खनन। के लिए योग्य हो सकता है, जबकि इसका विशाल बहुमत पूरी तरह से संरक्षित और सुरक्षित है। यह जानकारी उन दावों को पूरी तरह से खारिज करती है कि। अरावली में बड़े पैमाने पर खनन की अनुमति दी जा रही है।अरावली का भविष्य और सरकार की प्रतिबद्धता
मंत्री यादव के बयान से यह स्पष्ट होता है कि सरकार अरावली पर्वतमाला के संरक्षण और संवर्धन के प्रति दृढ़ संकल्पित है। उन्होंने उन सभी आरोपों को निराधार बताया जिनमें अरावली की परिभाषा में बदलाव कर खनन को बढ़ावा देने की बात कही जा रही थी और सरकार का मानना है कि अरावली न केवल एक भौगोलिक इकाई है, बल्कि यह क्षेत्र की पारिस्थितिकी, जैव विविधता और जल सुरक्षा के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। भविष्य में भी अरावली के संरक्षण के लिए ऐसे ही कड़े कदम उठाए जाते। रहेंगे ताकि यह प्राचीन पर्वत श्रृंखला आने वाली पीढ़ियों के लिए भी सुरक्षित रहे।