Bangladesh Politics: बांग्लादेश में भारत की नई रणनीति: खालिदा जिया के अंतिम संस्कार में जयशंकर की उपस्थिति और तारिक रहमान का बढ़ता महत्व

Bangladesh Politics - बांग्लादेश में भारत की नई रणनीति: खालिदा जिया के अंतिम संस्कार में जयशंकर की उपस्थिति और तारिक रहमान का बढ़ता महत्व
| Updated on: 31-Dec-2025 01:15 PM IST
बांग्लादेश की राजनीतिक स्थिति इस समय अत्यधिक संवेदनशील और जटिल है, जिसे समझना भारत के लिए रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है। मौजूदा आकलन के अनुसार, प्रधानमंत्री शेख हसीना की सत्ता में वापसी की संभावना लगभग नगण्य है और दूसरी ओर, चीन और पाकिस्तान जमात-ए-इस्लामी जैसे संगठनों के माध्यम से बांग्लादेश में अपना प्रभाव बढ़ाने का प्रयास कर रहे हैं। ऐसे में, भारत के लिए तारिक रहमान और उनकी पार्टी बीएनपी (बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी) एकमात्र व्यवहार्य विकल्प के रूप में उभरे हैं। बीएनपी की भी यही इच्छा है कि वह भारत के साथ बेहतर संबंध स्थापित करे।

जयशंकर की ढाका यात्रा का महत्व

भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर का खालिदा जिया के अंतिम संस्कार में शामिल होने के लिए बांग्लादेश पहुंचना एक औपचारिक सांत्वना यात्रा से कहीं अधिक है। यह यात्रा ऐसे समय में हो रही है जब बांग्लादेश में चुनाव का माहौल गर्म है और भारत-बांग्लादेश संबंधों में पिछले एक महीने से कड़वाहट चरम पर है और दोनों देशों ने एक-दूसरे के राजदूतों को दो-दो बार तलब किया है, जो राजनयिक तनाव को दर्शाता है। इस पृष्ठभूमि में, जयशंकर का ढाका जाना कई मायनों में अहम माना जा रहा है। यह विशेष रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि भारत ने खालिदा जिया की कट्टर राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी शेख हसीना को नई दिल्ली में शरण दी थी और उन्हें भारत का करीबी माना जाता है। ऐसे में यह सवाल उठ रहा है कि भारत अब बांग्लादेश की राजनीति में खालिदा जिया की पार्टी को भी साधने की कोशिश क्यों कर रहा है। यह कदम भारत की विदेश नीति में एक महत्वपूर्ण बदलाव का संकेत देता है, जो क्षेत्रीय। स्थिरता और अपने रणनीतिक हितों को सुरक्षित रखने के लिए नए समीकरणों की तलाश कर रहा है।

शेख हसीना की वापसी की गुंजाइश नहीं

तख्तापलट के बाद भी शेख हसीना को बांग्लादेश में सत्ता में वापसी की उम्मीद थी और उन्होंने और उनके समर्थकों ने बार-बार जनमत पर जोर दिया, यह मानते हुए कि जनता अभी भी उनके साथ है। हालांकि, बदले हुए हालात ने उनकी चिंताओं को बढ़ा दिया है। बांग्लादेश में शेख हसीना की पार्टी, आवामी लीग, पर प्रतिबंध लगा दिया गया है, जिसका अर्थ है कि वह आगामी चुनावों में भाग नहीं ले सकती और यह स्थिति अगले पांच वर्षों के लिए शेख हसीना की वापसी की संभावनाओं को प्रभावी ढंग से समाप्त कर देती है। बांग्लादेश में मौजूदा राजनीतिक माहौल बीएनपी के पक्ष में दिख रहा है। अब तक के सभी सर्वेक्षणों में बीएनपी को बड़ी बढ़त मिलने का अनुमान लगाया गया है, जो उसकी संभावित जीत की ओर इशारा करता है। बांग्लादेश की राजनीतिक गतिशीलता को देखते हुए, पिछले 35 वर्षों से या तो आवामी लीग या बीएनपी की सरकार रही है। इस ऐतिहासिक प्रवृत्ति के आधार पर भी यह कहा जा रहा है कि अगले चुनाव में तारिक रहमान के नेतृत्व में बीएनपी की सरकार बन सकती है। यह भारत के लिए एक नई राजनीतिक वास्तविकता प्रस्तुत करता। है, जिसके लिए उसे अपनी रणनीतियों को अनुकूलित करना होगा।

बीएनपी का भारत और हिंदुओं के प्रति बदला हुआ रुख

2006 से पहले, जब बांग्लादेश में बीएनपी की सरकार थी, तब भारत के साथ उसके संबंध तनावपूर्ण थे। खालिदा जिया और उनकी सरकार ने भारत के खिलाफ खुला मोर्चा खोल रखा था, जिसके परिणामस्वरूप उन्हें राजनीतिक नुकसान भी हुआ। जब बांग्लादेश में सेना के अधिकारियों ने खालिदा के खिलाफ मोर्चा संभाला, तो भारत ने कोई सहायता नहीं दी, जिसके कारण तारिक रहमान को जेल जाना पड़ा और खालिदा को सत्ता छोड़नी पड़ी और बीएनपी ने इस पिछली गलती से सबक लिया है। भारत को लेकर अब बीएनपी ने अपना रुख बदल लिया है और हाल ही में लंदन से लौटने के बाद तारिक रहमान ने एक भाषण दिया, जिसमें उन्होंने कहा कि यह देश हिंदू, मुसलमान, सिख और ईसाई सबका है। तारिक ने नफरत को हराने और समाज को आगे ले। जाने का आह्वान किया, जो एक समावेशी दृष्टिकोण को दर्शाता है। जानकारों का मानना है कि शेख हसीना के सत्ता से हटने के बाद बीएनपी ने विदेश। नीति पर, खासकर भारत के मामले में, बयानबाजी से बचने पर सबसे ज्यादा ध्यान दिया है। यही वजह है कि पिछले डेढ़ साल में बीएनपी के किसी भी नेता ने भारत के खिलाफ कोई बयान नहीं दिया है। इसके विपरीत, तारिक रहमान ने पाकिस्तान समर्थित जमात को निशाना बनाया और 1971 के मुक्ति संग्राम। की चर्चा की, जो भारत के साथ ऐतिहासिक संबंधों को मजबूत करने की इच्छा को दर्शाता है।

भारत के लिए तारिक रहमान को साधना क्यों जरूरी है?

भारत के लिए तारिक रहमान और बीएनपी के साथ संबंध स्थापित करना कई रणनीतिक कारणों से महत्वपूर्ण है। पहला और सबसे महत्वपूर्ण कारण बांग्लादेश में चीन और पाकिस्तान का बढ़ता दखल है। पेंटागन की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, चीन बांग्लादेश में एक सैन्य अड्डा स्थापित करने की कोशिश कर रहा है, जिसकी नजर लालमोनिरहाट पर है और यह क्षेत्र भारत के 'चिकन नेक' कॉरिडोर के बेहद करीब है, जो भारत की सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा पैदा कर सकता है। वहीं, पाकिस्तान जमात-ए-इस्लामी जैसे संगठनों के माध्यम से बांग्लादेश में अपनी पैठ बढ़ा रहा है, जो भारत के लिए एक और चिंता का विषय है। भारत और बांग्लादेश के बीच 4096 किलोमीटर की खुली सीमा है, जिसे हाल ही में तार से घेरने का प्रयास किया जा रहा है। यदि बांग्लादेश में चीन और पाकिस्तान का दबदबा बढ़ता है, तो इस लंबी और संवेदनशील सीमा को सुरक्षित रख पाना भारत के लिए बेहद मुश्किल हो जाएगा।

दक्षिण एशिया की भू-राजनीति में बांग्लादेश का स्थान

दक्षिण एशिया की भू-राजनीति में बांग्लादेश का स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण है। भारत के पड़ोसी देशों में चीन, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, म्यांमार, नेपाल और श्रीलंका शामिल हैं। भारत के पाकिस्तान और चीन के साथ शत्रुतापूर्ण संबंध हैं, जबकि म्यांमार की जुंटा सेना के साथ भी भारत के रिश्ते ठीक नहीं हैं। ऐसे में, बांग्लादेश जैसे मित्रवत पड़ोसी को साधना भारत के लिए अनिवार्य हो जाता है। बांग्लादेश की आजादी में भारत ने अहम भूमिका निभाई थी, जो दोनों देशों के बीच एक मजबूत ऐतिहासिक बंधन का आधार है। इसके अलावा, बांग्लादेश दक्षिण एशिया का पहला ऐसा मुस्लिम बहुल देश है जहां 9 प्रतिशत हिंदू आबादी रहती है। भारत इस अल्पसंख्यक समुदाय के हितों को लेकर आंखें नहीं मूंद सकता। एक स्थिर और भारत-अनुकूल बांग्लादेश न केवल क्षेत्रीय सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि। भारत की 'एक्ट ईस्ट' नीति और आर्थिक एकीकरण के लक्ष्यों के लिए भी आवश्यक है। तारिक रहमान के नेतृत्व में बीएनपी सरकार के साथ सकारात्मक संबंध स्थापित करना भारत को इस जटिल भू-राजनीतिक परिदृश्य में एक महत्वपूर्ण सहयोगी प्रदान कर सकता है, जिससे वह अपने क्षेत्रीय प्रभाव को बनाए रख सके और चीन-पाकिस्तान अक्ष के बढ़ते प्रभाव का मुकाबला कर सके। यह भारत के लिए एक अवसर है कि वह अपने पड़ोसी संबंधों। को मजबूत करे और क्षेत्रीय स्थिरता में अपनी भूमिका को सुदृढ़ करे।

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