बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के लिए वोटों की गिनती जारी है और शुरुआती रुझानों में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) एक बड़ी जीत की ओर बढ़ता दिख रहा है। इन रुझानों ने राज्य की राजनीतिक गलियारों में कई तरह की कयासबाजियों को जन्म दे दिया है, खासकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के भविष्य को लेकर। जहां एक तरफ एनडीए की जीत लगभग तय मानी जा रही है, वहीं दूसरी ओर यह सवाल भी उठ रहा है कि। क्या नीतीश कुमार इस गठबंधन में पहले की तरह ही केंद्रीय भूमिका में रहेंगे या फिर उनके लिए परिस्थितियाँ बदल सकती हैं।
वर्तमान रुझानों के अनुसार, एनडीए बिहार में स्पष्ट बहुमत की ओर बढ़ रहा है। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरती दिख रही है, जिसने सर्वाधिक सीटों पर बढ़त बना रखी है। नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली जनता दल (यूनाइटेड) भी अच्छी संख्या में सीटों पर आगे चल रही है, लेकिन भाजपा से पीछे है। दूसरी ओर, महागठबंधन, जिसमें राष्ट्रीय जनता दल (राजद), कांग्रेस और वामपंथी दल शामिल हैं, रुझानों में काफी पिछड़ता नजर आ रहा है। तेजस्वी यादव अपनी पार्टी राजद की साख बचाने के लिए संघर्ष करते दिख रहे हैं, जबकि जदयू 80 से अधिक सीटों पर बढ़त बनाए हुए है। यह स्थिति बिहार की राजनीति में एक नए अध्याय की शुरुआत का संकेत दे रही है, जहां सत्ता का संतुलन बदल सकता है।
जदयू का रहस्यमय डिलीटेड ट्वीट
इन चुनावी रुझानों के बीच, एक घटना ने राजनीतिक हलकों में हलचल मचा दी। जनता दल (यूनाइटेड) के आधिकारिक 'एक्स' (पूर्व में ट्विटर) हैंडल से नीतीश कुमार की. एक तस्वीर साझा की गई, जिसके कैप्शन में लिखा था, "न भूतो न भविष्यति.. नीतीश कुमार बिहार के मुख्यमंत्री थे, हैं और रहेंगे। " यह पोस्ट कुछ ही देर बाद डिलीट कर दिया गया। इस ट्वीट के डिलीट होने से कई सवाल खड़े हो गए हैं। क्या यह पार्टी के भीतर किसी आंतरिक असहमति का संकेत था? या यह गठबंधन के भीतर किसी संभावित नए समीकरण की आहट थी? इस घटना ने नीतीश कुमार के मुख्यमंत्री पद को लेकर चल रही अटकलों को और हवा दे दी है। इससे पहले, पटना में पार्टी मुख्यालय के सामने एक पोस्टर भी लगाया गया था, जिस पर 'टाइगर अभी जिंदा है' लिखा था, जो नीतीश कुमार के मजबूत नेतृत्व का संदेश देने का प्रयास था, लेकिन डिलीटेड ट्वीट ने एक अलग ही कहानी बयां कर दी।
नया समीकरण: नीतीश के बिना एनडीए?
सबसे बड़ी कयासबाजी यह है कि क्या एनडीए बिहार में नीतीश कुमार के बिना भी सरकार बना सकता है और आंकड़ों के अनुसार, यह एक व्यवहार्य विकल्प प्रतीत होता है। यदि भाजपा, चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास), जीतन राम मांझी की हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) और उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक मोर्चा (आरएलएम) एक साथ आते हैं, तो वे बहुमत का आंकड़ा आसानी से पार कर सकते हैं और वर्तमान रुझानों के मुताबिक, भाजपा 95 सीटों पर, लोजपा (आर) 20 सीटों पर, हम 5 सीटों पर और आरएलएम 4 सीटों पर आगे चल रही है। इन सभी को जोड़ने पर कुल 124 सीटें बनती हैं, जो बहुमत के लिए आवश्यक 122 सीटों से 2 अधिक हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि भाजपा अपनी संख्या को और बढ़ाने के लिए कांग्रेस के 3, लेफ्ट के 2 और बसपा के 1 विधायकों को भी अपने पाले में ला सकती है, जिससे उसकी स्थिति और मजबूत होगी। यह परिदृश्य बिहार में पहली बार भाजपा के मुख्यमंत्री की संभावना को जन्म देता है।
अमित शाह के बदलते बयान
इस पूरे घटनाक्रम में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के जून 2025 में दिए गए बयान भी प्रासंगिक हो गए हैं। एक साक्षात्कार में शाह ने कहा था, "बिहार का मुख्यमंत्री कौन होगा, यह तो वक्त ही तय करेगा, लेकिन ये साफ है कि हम नीतीश कुमार के नेतृत्व में ही ये चुनाव लड़ेंगे। " उन्होंने यह भी जोड़ा था कि "ये तय करने वाला मैं कौन होता हूं कि मुख्यमंत्री कौन बनेगा? चुनाव बाद सभी सहयोगी मिलकर विधायक दल का नेता चुनेंगे। " हालांकि, बाद में उन्होंने अपने बयान पर सफाई देते हुए कहा था, "इसमें कोई कन्फ्यूजन नहीं है। मैं फिर से एक बार स्पष्ट करता हूं कि नीतीश। ही मुख्यमंत्री हैं और चुनाव जीतने के बाद भी वही रहेंगे। " इन बयानों की वर्तमान संदर्भ में व्याख्या की जा रही है, जहां एनडीए के भीतर सत्ता के समीकरण बदलने की संभावना है और शाह के शुरुआती बयान को अब एक संकेत के रूप में देखा जा रहा है कि भाजपा हमेशा से ही नीतीश कुमार के विकल्प पर विचार कर रही थी।
महागठबंधन का संघर्ष और नीतीश के सीमित विकल्प
दूसरे समीकरण पर विचार करें तो, यदि नीतीश कुमार महागठबंधन के साथ जाने का फैसला करते हैं, तो स्थिति उनके लिए चुनौतीपूर्ण हो सकती है। रुझानों के अनुसार, जदयू को 84 सीटें, राजद को 25 सीटें, कांग्रेस को 5 सीटें, लेफ्ट को 3 सीटें और अन्य को 6 सीटें मिल रही हैं। इन सभी को जोड़ने पर कुल 117 सीटें बनती हैं, जो बहुमत के लिए आवश्यक 122 सीटों से 5 कम हैं। इसका मतलब है कि नीतीश कुमार अकेले महागठबंधन के साथ मिलकर सरकार बनाने में सक्षम नहीं होंगे और उन्हें बहुमत के लिए अतिरिक्त समर्थन की आवश्यकता होगी, जो कि एक जटिल कार्य हो सकता है और यह स्थिति नीतीश कुमार के लिए विकल्पों को सीमित करती है और उन्हें एनडीए के भीतर अपनी भूमिका पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर कर सकती है। बिहार की राजनीति में यह एक महत्वपूर्ण मोड़ है, जहां गठबंधन की गतिशीलता और व्यक्तिगत नेतृत्व का भविष्य दांव पर लगा है।