Chandigarh Bill: चंडीगढ़ पर सियासी जंग: गृह मंत्रालय ने 131वें संविधान संशोधन बिल की अफवाहों को किया खारिज
Chandigarh Bill - चंडीगढ़ पर सियासी जंग: गृह मंत्रालय ने 131वें संविधान संशोधन बिल की अफवाहों को किया खारिज
चंडीगढ़ के प्रशासनिक नियंत्रण को लेकर चल रही अटकलों और राजनीतिक घमासान के बीच, गृह मंत्रालय ने एक महत्वपूर्ण बयान जारी कर उन सभी अफवाहों को सिरे से खारिज कर दिया है जिनमें कहा जा रहा था कि केंद्र सरकार संसद के आगामी शीतकालीन सत्र में 131वां संविधान संशोधन विधेयक, 2025 लाने की तैयारी में है। यह विधेयक कथित तौर पर चंडीगढ़ को संविधान के आर्टिकल 240 के दायरे में लाने का प्रस्ताव कर रहा था, जिससे राष्ट्रपति को केंद्र शासित प्रदेश के लिए सीधे नियम-कानून बनाने की शक्ति मिल जाती और एक स्वतंत्र प्रशासक की नियुक्ति का मार्ग प्रशस्त होता। गृह मंत्रालय के इस स्पष्टीकरण ने पंजाब की राजनीति में मचे तूफान को कुछ हद तक शांत करने का प्रयास किया है, हालांकि चंडीगढ़ के दर्जे को लेकर बहस अभी भी जारी है।
सोशल मीडिया और राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा जोरों पर थी कि यदि 131वां संविधान संशोधन विधेयक पारित हो जाता है, तो चंडीगढ़ को एक विशेष दर्जा प्राप्त हो जाएगा और इस विधेयक के तहत, राष्ट्रपति को चंडीगढ़ के लिए सीधे नियम-कानून बनाने की शक्ति मिल जाती, जिससे केंद्र शासित प्रदेश पर केंद्र का सीधा नियंत्रण स्थापित हो जाता। इसके साथ ही, चंडीगढ़ में एक स्वतंत्र प्रशासक की नियुक्ति का रास्ता भी खुलता, जो पुराने समय में चंडीगढ़ में स्वतंत्र मुख्य सचिव के समान प्रशासन को संभालता था। यह कदम चंडीगढ़ के प्रशासनिक ढांचे में एक बड़ा बदलाव लाता और हालांकि, गृह मंत्रालय ने इन सभी अटकलों पर विराम लगाते हुए स्पष्ट किया है कि केंद्र सरकार चंडीगढ़ को लेकर ऐसा कोई कदम नहीं उठा रही है और न ही ऐसा कोई विधेयक लाने की योजना है। यह खंडन उन सभी राजनीतिक दलों के लिए एक महत्वपूर्ण जानकारी है। जो इस मुद्दे पर केंद्र सरकार के खिलाफ एकजुट हो गए थे।
आर्टिकल 240 और चंडीगढ़ का महत्व
आर्टिकल 240 भारतीय संविधान का एक महत्वपूर्ण प्रावधान है जो उन केंद्र शासित प्रदेशों (UT) पर लागू होता है जहां अपनी विधानसभा नहीं है। इनमें लक्षद्वीप, दादरा-नगर हवेली, अंडमान-निकोबार द्वीप समूह और दमन-दीव जैसे क्षेत्र शामिल हैं। पुडुचेरी भी तब इसके दायरे में आता है जब उसकी विधानसभा भंग हो जाती है। इस आर्टिकल के तहत, राष्ट्रपति को इन केंद्र शासित प्रदेशों के लिए शांति, प्रगति और सुशासन के लिए नियम बनाने की शक्ति प्राप्त होती है। अफवाहों के अनुसार, केंद्र सरकार चंडीगढ़ को भी इसी सूची में शामिल करना चाहती थी, जिससे चंडीगढ़ का प्रशासनिक नियंत्रण सीधे राष्ट्रपति के अधीन आ जाता। वर्तमान में, पंजाब के राज्यपाल ही चंडीगढ़ के प्रशासक के तौर पर कार्य करते हैं, जिससे पंजाब का इस क्षेत्र पर एक अप्रत्यक्ष प्रभाव बना रहता है। आर्टिकल 240 के तहत चंडीगढ़ को लाने का मतलब होता पंजाब के इस अप्रत्यक्ष प्रभाव को समाप्त करना और केंद्र का सीधा नियंत्रण स्थापित करना।पंजाब में राजनीतिक विरोध की लहर
जैसे ही 131वें संविधान संशोधन विधेयक की सुगबुगाहट शुरू हुई, पंजाब में राजनीतिक विरोध की एक तीव्र लहर दौड़ गई। राज्य की सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी (AAP), विपक्षी कांग्रेस और अकाली दल, तीनों ने केंद्र सरकार के खिलाफ चंडीगढ़ के मुद्दे पर मोर्चा खोल दिया और पंजाब के मुख्यमंत्री और AAP नेता भगवंत मान ने एक्स पर पोस्ट कर इस प्रस्तावित बिल का कड़ा विरोध किया। उन्होंने कहा कि यह संशोधन पंजाब के हितों के विरुद्ध है और केंद्र सरकार द्वारा पंजाब के विरुद्ध रची जा रही साजिश को कामयाब नहीं होने दिया जाएगा। मान ने जोर देकर कहा कि पंजाब के गांवों को उजाड़कर बने चंडीगढ़ पर सिर्फ पंजाब का हक है और वे इसे यूं ही जाने नहीं देंगे, इसके लिए हर संभव कदम उठाएंगे।आम आदमी पार्टी और अकाली दल का कड़ा रुख
आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने भी इस मुद्दे पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की। उन्होंने एक्स पर पोस्ट किया कि भाजपा की केंद्र सरकार द्वारा संविधान संशोधन के माध्यम से चंडीगढ़ पर पंजाब के अधिकार को खत्म करने की कोशिश पंजाब की पहचान और संवैधानिक अधिकारों पर सीधा हमला है। केजरीवाल ने इसे फेडरल स्ट्रक्चर की धज्जियां उड़ाने और पंजाबियों के हक छीनने की खतरनाक मानसिकता बताया। उन्होंने कहा कि जिस पंजाब ने देश की सुरक्षा, अनाज, पानी और इंसानियत के लिए हमेशा बलिदान दिया, आज उसी पंजाब को उसके अपने हिस्से से वंचित किया जा रहा है और उन्होंने इसे केवल एक प्रशासनिक फैसला नहीं, बल्कि पंजाब की आत्मा को चोट पहुंचाने जैसा बताया और कहा कि पंजाबी कभी किसी तानाशाही के सामने सिर नहीं झुकाएंगे।
शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने भी इस मामले पर गंभीर चिंता व्यक्त की। उन्होंने पंजाब-विरोधी संविधान (131वां संशोधन) बिल के खिलाफ एक मजबूत और निर्णायक जवाब तैयार करने के लिए पार्टी की कोर कमेटी की आपातकालीन बैठक बुलाई। बादल ने पंजाब के लोगों को विश्वास दिलाया कि अकाली दल इस पंजाब-विरोधी बिल और संघीय ढांचे पर। खुले हमले के खिलाफ हर मोर्चे पर लड़ेगा और केंद्र के इस कदम को कामयाब नहीं होने दिया जाएगा। उन्होंने दोहराया कि चंडीगढ़ पर पंजाब का हक नॉन-नेगोशिएबल है।पंजाब कांग्रेस की केंद्र सरकार से अपील
पंजाब कांग्रेस के चीफ और लुधियाना से सांसद अमरिंदर सिंह राजा वारिंग ने भी इस प्रस्तावित संशोधन को अत्यंत चिंताजनक बताया। उन्होंने कहा कि अगर यह कानून बन गया तो पंजाब में इसके गंभीर परिणाम होंगे और वारिंग ने भारत सरकार से इस मामले को स्पष्ट करने की अपील की, क्योंकि पूरे पंजाब में इससे भारी बेचैनी फैल गई थी। उन्होंने इसे एक गलत सलाह पर आधारित खतरनाक कदम बताया, जिसके गंभीर दुष्परिणाम होंगे। वारिंग ने जोर देकर कहा कि चंडीगढ़ पंजाब का है और इसके दर्जे में बदलाव करने की कोई भी कोशिश अभूतपूर्व प्रतिरोध का सामना करेगी। उन्होंने तर्क दिया कि सिर्फ इसलिए कि इसे उसके मूल राज्य पंजाब को वापस सौंपने में देरी हुई है, पंजाब का दावा और हक कमजोर नहीं हो जाता।आगे की राह और चंडीगढ़ का भविष्य
गृह मंत्रालय के स्पष्टीकरण के बाद, 131वें संविधान संशोधन विधेयक को लेकर बनी अनिश्चितता समाप्त हो गई है। हालांकि, चंडीगढ़ के दर्जे और पंजाब के इस पर अधिकार को लेकर राजनीतिक बहस अभी भी जारी है। पंजाब सरकार लगातार चंडीगढ़ को पंजाब को लौटाने की अपनी पुरानी मांग को दोहरा रही है। यह मुद्दा लंबे समय से पंजाब की राजनीति का एक संवेदनशील विषय रहा है। अब सबकी नजरें संसद के आगामी शीतकालीन सत्र पर टिकी हैं, यह देखने के लिए कि। क्या चंडीगढ़ के प्रशासनिक ढांचे या उसके दर्जे से संबंधित कोई अन्य प्रस्ताव सामने आता है। गृह मंत्रालय के बयान ने तात्कालिक संकट को टाल दिया है, लेकिन चंडीगढ़। पर सालों पुरानी सियासी बहस को अभी भी एक स्थायी समाधान की तलाश है।