China Fujian Aircraft: चीन का तीसरा एयरक्राफ्ट कैरियर 'फुजियान' नौसेना में शामिल: भारत के लिए 5 बड़ी चुनौतियां
China Fujian Aircraft - चीन का तीसरा एयरक्राफ्ट कैरियर 'फुजियान' नौसेना में शामिल: भारत के लिए 5 बड़ी चुनौतियां
चीन ने आधिकारिक तौर पर अपना नया और अब तक का सबसे आधुनिक एयरक्राफ्ट कैरियर ‘फुजियान’ अपनी नौसेना में शामिल कर लिया है। यह घोषणा चीन की सरकारी समाचार एजेंसी शिन्हुआ ने की, जो देश की बढ़ती समुद्री शक्ति का प्रतीक है। राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने 5 नवंबर को हाइनान प्रांत में आयोजित एक भव्य समारोह में फुजियान को नौसेना को सौंपा। इस अवसर पर उन्होंने स्वयं जहाज पर जाकर उसका गहन निरीक्षण भी किया, जो इस परियोजना के प्रति चीन के नेतृत्व की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
चीन का तीसरा और सबसे उन्नत कैरियर
फुजियान चीन का तीसरा एयरक्राफ्ट कैरियर है और यह एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है क्योंकि इसे पूरी तरह से चीन में ही डिजाइन और बनाया गया है। इससे पहले चीन के दो एयरक्राफ्ट कैरियर, लियाओनिंग और शानडोंग, रूस की डिजाइन पर आधारित थे। फुजियान एक सुपरमॉडर्न कैरियर है, जिसमें इलेक्ट्रिक सिस्टम का बेहतर तरीके से इस्तेमाल किया गया है। इस पर J-35 स्टेल्थ फाइटर भी तैनात किए जाएंगे, जिससे ताइवान से लेकर हिंद महासागर तक चीन का दबदबा काफी बढ़ जाएगा। यह जहाज चीन की नौसेना की क्षमताओं में एक गुणात्मक छलांग का प्रतिनिधित्व करता है।
फुजियान की सबसे बड़ी खासियत इसका फ्लैट फ्लाइट डेक और इलेक्ट्रोमैग्नेटिक कैटापल्ट सिस्टम (EMALS) है। यह उन्नत प्रणाली लड़ाकू विमानों को आसानी से और तेजी से उड़ान भरने में सक्षम बनाती है। अमेरिका के अलावा, चीन एकमात्र ऐसा देश है जिसके पास यह अत्याधुनिक तकनीक है। पहले के चीनी जहाजों में स्की-जंप रैंप था, जिससे भारी विमानों को उड़ाना मुश्किल होता था, लेकिन फुजियान पर हैवी फाइटर जेट, स्टेल्थ फाइटर और रडार वाले विमान भी आसानी से टेकऑफ और लैंडिंग कर सकते हैं। यह EMALS प्रणाली विमानों को अधिक गति और दक्षता के साथ लॉन्च करने। की अनुमति देती है, जिससे कैरियर की परिचालन क्षमता में उल्लेखनीय वृद्धि होती है।EMALS तकनीक के साथ तकनीकी छलांग
बढ़ती नौसैनिक शक्ति और प्रभुत्व
फुजियान की वजह से चीन अब दूर समुद्र तक, जैसे ताइवान, दक्षिण चीन सागर और हिंद महासागर में अपनी ताकत दिखा सकता है। यह नया कैरियर चीन की नौसेना को अमेरिका के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा कैरियर फ्लीट बनाता है। परीक्षण के दौरान, इस कैरियर से चीन ने अपने नए लड़ाकू विमान J-35 स्टेल्थ फाइटर, KJ-600 चेतावनी विमान और J-15 फाइटर को सफलतापूर्वक उड़ाया। विशेषज्ञों का मानना है कि आने वाले महीनों में यह देखा जाएगा कि फुजियान कितनी जल्दी युद्ध के लिए पूरी तरह से तैयार हो पाता है, लेकिन इसका शामिल होना चीन की वैश्विक समुद्री महत्वाकांक्षाओं का स्पष्ट संकेत है।भारत के लिए पांच प्रमुख चुनौतियां
चीन के फुजियान एयरक्राफ्ट कैरियर से भारत के लिए सीधी सैन्य और रणनीतिक चुनौती दोनों बढ़ सकती हैं। यह नया जहाज हिंद महासागर क्षेत्र में शक्ति संतुलन को प्रभावित करने की क्षमता रखता है, जो भारत के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।बेहतर लॉन्च क्षमताएं
फुजियान में इलेक्ट्रोमैग्नेटिक कैटापल्ट सिस्टम (EMALS) है, जो पहले सिर्फ अमेरिका के पास था। यह सिस्टम चीन को ज्यादा विमान, तेज और भारी विमान लॉन्च करने की क्षमता देता है। इससे उसकी नौसेना की लॉन्ग-रेंज स्ट्राइक क्षमता बढ़ेगी, जिससे भारतीय नौसेना को अपनी रक्षा रणनीतियों पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर होना पड़ेगा और eMALS की दक्षता और बहुमुखी प्रतिभा चीन को विभिन्न प्रकार के हवाई अभियानों को अधिक प्रभावी ढंग से संचालित करने की अनुमति देती है।हिंद महासागर में बढ़ती उपस्थिति
चीन पहले ही ग्वादर (पाकिस्तान) और जिबूती (अफ्रीका) जैसे बंदरगाहों पर अपनी मौजूदगी बढ़ा चुका है। अब फुजियान जैसे बड़े जहाज के आने से चीन हिंद महासागर में लंबे समय तक ऑपरेशन कर सकेगा। यह क्षेत्र भारत के लिए बहुत अहम है, क्योंकि भारत की तेल सप्लाई और व्यापार मार्ग यहीं से गुजरते हैं और चीन की विस्तारित उपस्थिति इन महत्वपूर्ण समुद्री मार्गों पर संभावित रूप से दबाव डाल सकती है और भारत की सुरक्षा चिंताओं को बढ़ा सकती है।आधुनिक एयर विंग
फुजियान में J-35 स्टेल्थ फाइटर, KJ-600 चेतावनी विमान और J-15 जैसे आधुनिक विमान तैनात हो सकते हैं। इससे चीन एक साथ एयर डिफेंस, स्ट्राइक और सर्विलांस मिशन चला सकता है। इन उन्नत विमानों का संयोजन चीन को एक व्यापक हवाई श्रेष्ठता प्रदान करेगा, जिससे भारतीय नौसेना के लिए हवाई खतरों का मुकाबला करना अधिक चुनौतीपूर्ण हो जाएगा।भारतीय कैरियर्स के साथ तकनीकी असमानता
भारत के पास फिलहाल दो एयरक्राफ्ट कैरियर हैं – INS विक्रमादित्य और INS विक्रांत। ये दोनों ही स्की-जंप रैंप (STOBAR) तकनीक वाले हैं, जबकि फुजियान कैटापल्ट (CATOBAR) तकनीक का इस्तेमाल करता है, जो अधिक आधुनिक है और यह तकनीकी अंतर भारतीय नौसेना के लिए एक चुनौती प्रस्तुत करता है, क्योंकि CATOBAR प्रणाली STOBAR की तुलना में अधिक विमानों को अधिक तेजी से और अधिक भार के साथ लॉन्च करने की अनुमति देती है।कैरियर स्ट्राइक ग्रुप का गठन
चीन अब अपने तीनों कैरियर्स (लियाओनिंग, शानडोंग, फुजियान) के साथ एक कैरियर स्ट्राइक ग्रुप बना सकता है। इससे भारतीय नौसेना पर दबाव बढ़ेगा कि वह अपने जहाजों, विमानों और रडार सिस्टम को और आधुनिक बनाए। एक पूर्ण कैरियर स्ट्राइक ग्रुप की उपस्थिति हिंद महासागर में चीन की शक्ति प्रक्षेपण क्षमताओं को काफी बढ़ा देगी, जिससे क्षेत्रीय सुरक्षा गतिशीलता पर गहरा प्रभाव पड़ेगा।एकीकृत विद्युत प्रणालियों की शक्ति
फुजियान एयरक्राफ्ट कैरियर में इलेक्ट्रिसिटी का बहुत स्मार्ट तरीके से इस्तेमाल किया गया है। जहाज के अंदर इलेक्ट्रिसिटी जनरेट करने के लिए MVDC (मीडियम वोल्टेज डायरेक्ट करंट) सिस्टम है और यह इलेक्ट्रिसिटी विमान उड़ाने वाली इलेक्ट्रोमैग्नेटिक कैटापल्ट (EMALS) को चलाती है। कैरियर के लाइट, रडार, हथियार, कंट्रोल सिस्टम सब इलेक्ट्रिसिटी से चलते हैं, जो इसकी उच्च दक्षता और परिचालन लचीलेपन को दर्शाता है। यह एकीकृत विद्युत प्रणाली जहाज को विभिन्न प्रकार के मिशनों के लिए अनुकूल बनाती है।चीन के कैरियर बेड़े का विकास
चीन का पहला एयरक्राफ्ट कैरियर लियाओनिंग असल में सोवियत यूनियन का अधूरा जहाज था, जिसे 1985 में 'रिगा' नाम से बनाना शुरू किया गया था। 1991 में सोवियत यूनियन के टूटने के बाद इसका काम रुक गया और 1998 में चीन ने इसे यूक्रेन से खरीदा और 2002 में डालियन शिपयार्ड लाकर पूरा किया। लगभग 10 साल में इसे तैयार किया गया और 25 सितंबर 2012 को यह चीनी नौसेना में शामिल हुआ। इसका नाम लियाओनिंग प्रांत के नाम पर रखा गया और इसके बाद चीन ने शानडोंग एयरक्राफ्ट कैरियर बनाया, जिसका निर्माण 2013 में शुरू हुआ था, यह 2017 में लॉन्च हुआ और 2019 में नौसेना में शामिल किया गया। शानडोंग एयरक्राफ्ट कैरियर लियाओनिंग का अपग्रेड वर्जन है और इसमें STOBAR सिस्टम यानी स्की-जंप रैंप से विमान उड़ाए जाते हैं। शानडोंग लियाओनिंग से बड़ा और ज्यादा आधुनिक है, लेकिन दोनों ही जहाज कैटापल्ट सिस्टम का इस्तेमाल नहीं करते।भारत की नौसैनिक वायु शक्ति
भारत के पास इस समय दो एयरक्राफ्ट कैरियर हैं – INS विक्रमादित्य और INS विक्रांत। ये दोनों समुद्र में तैरते फ्लोटिंग एयरपोर्ट हैं, जहां से लड़ाकू विमान उड़ान भरते और उतरते हैं। INS विक्रमादित्य रूस का पुराना जहाज है, जिसे 2004 में भारत ने खरीदा था। इसे नया बनवाने के बाद 2013 में नौसेना में शामिल किया गया। इसकी लंबाई करीब 284 मीटर और वजन 45 हजार टन है। यह MiG-29K लड़ाकू विमान और Ka-31 हेलिकॉप्टर लेकर चलता है। वहीं, INS विक्रांत भारत का पहला स्वदेशी एयरक्राफ्ट कैरियर है, जिसे कोचिन शिपयार्ड में बनाया गया और 2 सितंबर 2022 को शामिल किया गया और इसकी लंबाई 262 मीटर और वजन 43 हजार टन है। यह भी STOBAR सिस्टम वाला जहाज है। विक्रांत बंगाल की खाड़ी में तैनात है। भारत का तीसरा एयरक्राफ्ट कैरियर INS विशाल है, जो अभी प्लानिंग और डिजाइन स्टेज में है। फुजियान का आगमन भारत के लिए अपनी नौसैनिक क्षमताओं को और मजबूत करने की आवश्यकता को रेखांकित करता है।