Fact Check: क्‍या सच में सुधा मूर्ति साल में एक बार मंदिर के बाहर बेचती हैं सब्‍जी? जानें हकीकत

Fact Check - क्‍या सच में सुधा मूर्ति साल में एक बार मंदिर के बाहर बेचती हैं सब्‍जी? जानें हकीकत
| Updated on: 16-Sep-2020 08:50 AM IST
नई दिल्‍ली। पिछले दिनों ऐसे आर्टिकल और फोटो सामने आ रहे थे, जिनमें दिखाया गया था कि इंफोसिस फाउंडेशन की चेयरपर्सन सुधा मूर्ति (Sudha Murthy) सब्‍जी की दुकान जैसी जगह पर बैठी हैं। दावा किया गया था कि सुधा मूर्ति साल में एक बार मंदिर के बाहर बैठकर सब्‍जियां बेचती हैं ताकि उनमें अहंकार ना आ पाए। इन फोटो को बड़ी संख्‍या में लोगों ने पसंद किया था।

सुधा मूर्ति इंफोसिस के संस्‍थापक नारायण मूर्ति की पत्‍नी हैं। सब्‍जी बेचने वाला दावा करने वाली उनकी फोटो को पहली बार आईआरएस अफसर सुरभि ने अपने ट्विटर पर शेयर किया था। इसके साथ उन्‍होंने लिखा था, 'हर साल इंफोसिस के संस्‍थापक की पत्‍नी सुधा मर्ति एक दिन सब्‍जी बेचती हैं ताकि अहंकार उनसे दूर रहे। कैसे किसी के लिए पैसा उनके सिद्धांत नहीं बदल सकता।'

उनके इस ट्वीट को अब तक 25 हजार से अधिक लोग लाइक कर चुके हैं। साथ ही 5100 से अधिक लोगों ने इसे रिट्वीट किया है। सोशल मीडिया पर उनकी यह तस्‍वीर वायरल होने के बाद सभी लोग उन्‍हें काफी पसंद कर रहे हैं। सोशल मीडिया पर उनकी तारीफें हो रही हैं। लेकिन बाद में यह एक फेक न्‍यूज साबित हुई।

सुधा मूर्ति ने समाचार एजेंसी आईएएनएस को हाल ही में दिए एक इंटरव्‍यू में इस संबंध में पूरी जानकारी दी है। उन्‍होंने इस फोटोग्राफ और दुष्‍प्रचार को गंभीरता से लिया है। उन्‍होंने इस पर नाराजगी जताई कि सोशल मीडिया में इस फोटो को पब्लिसिटी के रूप में प्रदर्शित किया जा रहा है। उन्‍होंने इसे फेक न्‍यूज करार दिया है। उन्‍होंने कहा, 'मैं वहां सब्जियां बेचने के लिए नहीं बैठी हूं। इस तरह की कहानियां सुनकर मुझे दर्द होता है। मैं वहां एक भक्‍त के रूप में बैठी हूं, न कि दुकानदार के रूप में। यह अनुष्ठान मेरे दिल के बहुत करीब है। मैं वहां सब्जियों के ढेर के बीच वहां से अच्‍छी सब्जियों छांटने के लिए बैठी हूं ताकि तीन दिन के धार्मिक समारोह के दौरान भोजन बनाया जाए। यह तीन दिनी अनुष्‍ठान 'राघवेंद्र रायरा समराधने' मेरे घर के पास बेंगलुरु के जयनगर 5वें ब्लॉक में राघवेंद्र मठ में होता है।'

सुधा मूर्ति ने बताया कि वह यह काफी युवा उम्र से करती आ रही हैं। वह वहां अपनी दादी के साथ जाती थीं। उन्‍होंने कहा कि उनकी दादी ऐसा करती थीं और वह उनका साथ देती थी। इसके बाद से अभी तक वह ऐसा हर साल करती हैं। वह हर साल 3 दिन मठ की रसोई में जाती हैं और वहां अच्‍छी सब्जियां छांटती व उन्‍हें धोती हैं। बेंगलुरु मिरर में 2013 में प्रकाशित ए‍क रिपोर्ट में भी दावा किया गया था कि वह रसोई और उसके आसपास के कमरों की सफाई करती हैं।

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