H-1B Visa: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने शुक्रवार को एक महत्वपूर्ण कार्यकारी आदेश पर हस्ताक्षर किए, जिसके तहत H-1B वीजा प्रोग्राम में क्रांतिकारी बदलाव किया गया है। अब कंपनियों को विदेशी कुशल कर्मचारियों को स्पॉन्सर करने के लिए हर साल 100,000 डॉलर (लगभग 84 लाख रुपये) का अतिरिक्त शुल्क देना होगा। व्हाइट हाउस के अनुसार, यह कदम H-1B प्रोग्राम को उसके मूल उद्देश्य—STEM (साइंस, टेक्नोलॉजी, इंजीनियरिंग, मैथमेटिक्स) क्षेत्रों में विश्वस्तरीय प्रतिभाओं को आकर्षित करने—की ओर मोड़ने का प्रयास है। लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि यह बदलाव भारतीय आईटी पेशेवरों और टेक जायंट्स के लिए नई चुनौतियां पैदा कर सकता है, क्योंकि भारत H-1B वीजा के 71% लाभार्थियों का स्रोत है।
इसके साथ ही, ट्रंप ने 'ट्रंप गोल्ड कार्ड' नामक एक नया निवेश-आधारित वीजा प्रोग्राम लॉन्च किया, जो धनी विदेशियों को 1 मिलियन डॉलर (लगभग 8.4 करोड़ रुपये) के निवेश पर अमेरिकी रेजिडेंसी और सिटिजनशिप का तेज रास्ता प्रदान करेगा। ट्रंप ने इसे "अमेरिका को सैकड़ों अरब डॉलर कमाने वाला शानदार प्लान" बताया, जो राष्ट्रीय कर्ज कम करने और टैक्स घटाने में मदद करेगा।
H-1B वीजा प्रोग्राम 1990 के दशक से अमेरिकी अर्थव्यवस्था का महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है, जो कंपनियों को विशेषज्ञता वाले विदेशी कार्यबल को लाने की अनुमति देता है। हर साल 85,000 वीजा लॉटरी के जरिए वितरित होते हैं, जिनमें अमेजन (12,000+), माइक्रोसॉफ्ट और मेटा जैसी कंपनियां शीर्ष प्राप्तकर्ता हैं। लेकिन वर्षों से इसकी आलोचना होती रही है। आलोचक कहते हैं कि बड़ी कंपनियां कम वेतन पर विदेशी कर्मचारियों को हायर करती हैं, जिससे अमेरिकी नागरिकों की नौकरियां प्रभावित होती हैं। उदाहरणस्वरूप, अमेरिकी टेक वर्कर्स को औसतन 1 लाख डॉलर सालाना मिलता है, जबकि कई H-1B वर्कर्स को 60,000 डॉलर से कम।
नया आदेश इस दुरुपयोग को रोकने का दावा करता है। व्हाइट हाउस फैक्ट शीट के मुताबिक, 100,000 डॉलर का शुल्क मौजूदा फीस (जैसे 215 डॉलर रजिस्ट्रेशन और 780 डॉलर पेटिशन) के अतिरिक्त होगा। कॉमर्स सेक्रेटरी हॉवर्ड लुटनिक ने ओवल ऑफिस में ट्रंप के साथ कहा, "अब बड़ी कंपनियां विदेशी वर्कर्स को ट्रेनिंग नहीं दे सकेंगी। पहले 100,000 डॉलर सरकार को, फिर कर्मचारी की सैलरी—यह आर्थिक रूप से फायदेमंद नहीं रहेगा। ट्रेनिंग अमेरिकी ग्रेजुएट्स को दें, नौकरियां अमेरिकियों को।" लुटनिक ने जोड़ा कि "बड़ी कंपनियां इससे सहमत हैं।"
व्हाइट हाउस स्टाफ सेक्रेटरी विल शार्फ ने भी कहा, "यह प्रोग्राम अति-कुशल लोगों के लिए है, जहां अमेरिकी उपलब्ध न हों। नया शुल्क सुनिश्चित करेगा कि केवल वास्तविक प्रतिभाएं आएं।" हालांकि, यह बदलाव कानूनी चुनौतियों का सामना कर सकता है, क्योंकि यह H-1B को और प्रतिबंधित करता है।
भारत H-1B का सबसे बड़ा लाभार्थी है—2024 में 71% वीजा भारतीयों को मिले, उसके बाद चीन (11.7%)। कैलिफोर्निया जैसे राज्यों में हजारों भारतीय टेक वर्कर्स कार्यरत हैं। नया शुल्क छोटी-मध्यम कंपनियों को प्रभावित करेगा, जो बड़े जायंट्स की तुलना में कम संसाधन रखती हैं। ट्रंप ने दावा किया कि टेक इंडस्ट्री इसका स्वागत करेगी, क्योंकि यह "कम वेतन वाले एंट्री-लेवल जॉब्स" को रोकेगा। लेकिन भारतीय आईटी सेक्टर, जो अमेरिका पर निर्भर है, के लिए यह महंगा साबित हो सकता है। वीजा 3-6 साल के लिए होता है, और इस बदलाव से स्पॉन्सरशिप कम हो सकती है।
H-1B के साथ ही ट्रंप ने 'गोल्ड कार्ड' प्रोग्राम पर हस्ताक्षर किए, जो EB-5 निवेशक वीजा को रिप्लेस करता है। व्यक्तिगत आवेदक 1 मिलियन डॉलर दान देकर रेजिडेंसी प्राप्त कर सकते हैं, जबकि कंपनियां कर्मचारी के लिए 2 मिलियन डॉलर देंगी। इसके अलावा, 15,000 डॉलर की वेटिंग फीस भी। ट्रंप ने कहा, "यह सैकड़ों अरब डॉलर इकट्ठा करेगा। पैसे से टैक्स कम करेंगे, कर्ज घटाएंगे। कंपनियां जरूरी लोगों को रख सकेंगी—ये शानदार होगा!"
लुटनिक के अनुसार, यह प्रोग्राम जून से वेटिंग लिस्ट पर 70,000+ लोगों का इंतजार कर रहा था। यह ग्रीन कार्ड जैसा ही है, लेकिन तेज—कार्ड होल्डर्स अमेरिकी टैक्स देंगे और नौकरियां पैदा करेंगे। हालांकि, विशेषज्ञों का कहना है कि 5 मिलियन डॉलर वाले 'प्लेटिनम कार्ड' वर्शन (जो 270 दिनों तक टैक्स-फ्री स्टे देता है) की बिक्री सीमित रहेगी।
पिछले महीने (अगस्त 2025) शुरू हुए वीजा बॉन्ड पायलट प्रोग्राम का विस्तार भी हो रहा है। B-1/B-2 (टूरिस्ट/बिजनेस) वीजा के लिए हाई ओवरस्टे रेट वाले देशों (जैसे मलावी, जाम्बिया) के आवेदकों को 5,000 से 15,000 डॉलर का बॉन्ड जमा करना पड़ सकता है। यह 20 अगस्त 2025 से 5 अगस्त 2026 तक चलेगा। बॉन्ड नियमों का पालन करने पर लौटेगा, अन्यथा जब्त। स्टेट डिपार्टमेंट का कहना है कि यह स्क्रीनिंग कमजोर देशों के लिए है, जहां सिटिजनशिप बाय इन्वेस्टमेंट प्रोग्राम चलते हैं।
ट्रंप प्रशासन का यह बड़ा प्लान कानूनी इमिग्रेशन को सीमित करने और राजस्व बढ़ाने का है। H-1B शुल्क से सालाना अरबों डॉलर की कमाई, गोल्ड कार्ड से निवेश, और बॉन्ड से ओवरस्टे रोकथाम। लेकिन आलोचक इसे "वीजा बेचना" कहते हैं, जो छोटे देशों और मध्यम वर्ग को नुकसान पहुंचाएगा। भारतीय टेक एसोसिएशंस ने चिंता जताई है कि इससे US में टैलेंट पूल सिकुड़ सकता है।
ट्रंप ने कहा, "अमेरिका पहले—कुशल लोग आएं, लेकिन अमेरिकियों की नौकरियां सुरक्षित रहें।" यह नीति 2025 के चुनावी माहौल में ट्रंप की 'अमेरिका फर्स्ट' एजेंडे को मजबूत करती है, लेकिन वैश्विक टैलेंट फ्लो पर सवाल उठाती है। क्या यह अमेरिकी अर्थव्यवस्था को बूस्ट देगी या वैश्विक सहयोग को कमजोर करेगी? समय बताएगा।
#WATCH | President Donald J Trump signs an Executive Order to raise the fee that companies pay to sponsor H-1B applicants to $100,000.
— ANI (@ANI) September 19, 2025
White House staff secretary Will Scharf says, "One of the most abused visa systems is the H1-B non-immigrant visa programme. This is supposed to… pic.twitter.com/25LrI4KATn