EVM Voting Data: EVM में इंटरनेट नहीं, फिर भी चुनाव आयोग तक कैसे पहुंचता है मतदान का रियल टाइम डेटा? जानिए पूरी प्रक्रिया

EVM Voting Data - EVM में इंटरनेट नहीं, फिर भी चुनाव आयोग तक कैसे पहुंचता है मतदान का रियल टाइम डेटा? जानिए पूरी प्रक्रिया
| Updated on: 09-Nov-2025 08:58 AM IST
बिहार में विधानसभा चुनाव का माहौल गरमाया हुआ है, जहां पहले चरण का मतदान संपन्न हो चुका है और दूसरे चरण की तैयारियां जोरों पर हैं। कुल 90 हजार 712 पोलिंग बूथों पर 7 करोड़ 42 लाख से अधिक मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग कर रहे हैं। इस चुनावी प्रक्रिया के दौरान एक दिलचस्प सवाल अक्सर उठता है: जब हजारों बूथों पर एक साथ वोटिंग चल रही होती है और EVM मशीनें इंटरनेट से जुड़ी नहीं होतीं, तो फिर चुनाव आयोग को हर एक-दो घंटे में यह अपडेट कैसे मिलता है कि 'फलां विधानसभा में सुबह 11 बजे तक इतने प्रतिशत मतदान हो चुका है'? आखिर ये आंकड़े इतनी तेजी से चुनाव आयोग तक कैसे पहुंचते हैं, जो कुछ ही पलों में Voter Turnout App पर दिखने लगते हैं? इसी सवाल का जवाब जानने के लिए इंडिया टीवी की टीम ने पीठासीन अधिकारी के रूप में चुनाव करा चुके हिमांशु शुक्ला से बात की, जिन्होंने इस पूरी प्रक्रिया को विस्तार से समझाया।

EVM और इंटरनेट कनेक्शन का सच

हिमांशु शुक्ला ने इस बात की पुष्टि की कि यह बिल्कुल सच है कि EVM में कोई इंटरनेट कनेक्शन नहीं होता है। न ही ये मशीनें स्वचालित तरीके से चुनाव आयोग को वास्तविक समय का डेटा भेजती हैं। यह एक महत्वपूर्ण तथ्य है जो EVM की सुरक्षा और निष्पक्षता को सुनिश्चित करता है। डेटा के त्वरित संचरण के पीछे एक सुव्यवस्थित मानवीय और तकनीकी प्रक्रिया काम करती है, जिसे चुनाव आयोग द्वारा सावधानीपूर्वक डिजाइन किया गया है। यह प्रक्रिया सुनिश्चित करती है कि मतदान की जानकारी बिना किसी बाहरी हस्तक्षेप के, सुरक्षित और सटीक रूप से आयोग तक पहुंचे।

MPS ऐप की भूमिका

मतदान से पहले, चुनाव आयोग सभी चुनाव कर्मचारियों, विशेषकर पीठासीन अधिकारियों को गहन प्रशिक्षण प्रदान करता है। इस प्रशिक्षण के दौरान, उन्हें चुनाव आयोग की तरफ से एक APK फाइल उपलब्ध कराई जाती है। इस फाइल पर क्लिक करने पर, कर्मचारी सीधे MPS (मतदान प्रतिशत सूचना प्रणाली) ऐप पर रीडायरेक्ट हो जाते हैं और इस ऐप में लॉगिन करने के लिए, उन्हें अपने उस मोबाइल नंबर का उपयोग करना होता है जो उन्होंने चुनाव आयोग को पहले ही उपलब्ध कराया होता है और जो उनके साथ पंजीकृत होता है। इस ऐप के माध्यम से, पीठासीन अधिकारी को सुबह 7 बजे पोलिंग बूथ पर वोटिंग शुरू होने की सूचना देनी होती है। इसके बाद, हर 2 घंटे पर उन्हें अपडेट करना होता है कि। पोलिंग बूथ पर कितनी महिलाओं और कितने पुरुषों ने वोट डाल दिया है। इस प्रकार, हर पोलिंग बूथ से वोटिंग टर्नआउट का डेटा मतदान के साथ-साथ ही चुनाव आयोग तक तेजी। से पहुंच जाता है और यही डेटा आगे जाकर ECI के वोटर टर्नआउट ऐप पर प्रदर्शित होता है। यह ऐप एक डिजिटल पुल का काम करता है, जो। जमीनी स्तर से सीधे चुनाव आयोग तक जानकारी पहुंचाता है।

सेक्टर मजिस्ट्रेट का महत्व

MPS ऐप के अलावा, डेटा संचरण का एक वैकल्पिक और पूरक माध्यम भी मौजूद है और हिमांशु शुक्ला बताते हैं कि हर पीठासीन अधिकारी को अपने संबंधित सेक्टर मजिस्ट्रेट को रिपोर्ट करना होता है। ऐप के माध्यम से डेटा भेजने के साथ-साथ, पीठासीन अधिकारी फोन के माध्यम से। भी सेक्टर मजिस्ट्रेट को हर 2 घंटे में वोटिंग टर्नआउट का डेटा उपलब्ध कराते हैं। यह दोहरी रिपोर्टिंग प्रणाली यह सुनिश्चित करती है कि किसी भी तकनीकी खराबी या नेटवर्क समस्या की स्थिति में भी डेटा चुनाव आयोग तक पहुंच सके और सुबह 7 बजे वोटिंग शुरू होने से लेकर दिनभर हुए मतदान और शाम को जब वोटिंग समाप्त होती है, ये सारी जानकारी पीठासीन अधिकारी को सेक्टर मजिस्ट्रेट को देनी होती है। सेक्टर मजिस्ट्रेट फिर इस जानकारी को आगे के स्तर तक पहुंचाते हैं, जिससे डेटा की सटीकता और समयबद्धता बनी रहती है।

अंतिम आंकड़ों में अंतर का कारण

कभी-कभी ऐसा होता है कि मतदान वाले दिन की शाम को न्यूज़ चैनलों पर बताए गए आंकड़ों। और चुनाव आयोग द्वारा एक-दो दिन बाद जारी किए गए अंतिम वोटिंग टर्नआउट में थोड़ा अंतर होता है। हिमांशु शुक्ला के अनुसार, इसका एक मुख्य कारण यह है कि पोलिंग बूथ पर वोटिंग का समय खत्म होने से पहले जो भी मतदाता आ जाते हैं, उनके वोट डलवाने ही होते हैं, भले ही इसमें कितनी भी देर क्यों न हो जाए और ऐसे में कई बार बूथ पर 1-2 घंटे या उससे भी अधिक देर तक वोटिंग चलती रहती है। जब मतदान देर तक चलता है, तो यह डेटा भी ऐप पर देरी से अपलोड हो पाता है। हो सकता है कि इसी वजह से चुनाव आयोग जब वोटिंग टर्नआउट के अंतिम आंकड़े जारी करता है, तो उसमें यह देरी से प्राप्त डेटा भी शामिल होता है, जिससे प्रारंभिक अनुमानों और अंतिम आंकड़ों में थोड़ा फर्क आ जाता है। यह अंतर प्रक्रियात्मक देरी के कारण होता है, न कि डेटा की सटीकता में किसी कमी के कारण। यह प्रणाली सुनिश्चित करती है कि प्रत्येक वैध वोट को। गिना जाए और अंतिम आंकड़े पूरी तरह से सटीक हों।

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