Ganesh Chaturthi 2021: गणेश चतुर्थी की पूजा विधि, मुहूर्त, महत्व और सभी जरूरी जानकारी यहां

Ganesh Chaturthi 2021 - गणेश चतुर्थी की पूजा विधि, मुहूर्त, महत्व और सभी जरूरी जानकारी यहां
| Updated on: 10-Sep-2021 05:57 AM IST
गणेश चतुर्थी उत्सव की शुरुआत 10 सितंबर से होने जा रही है और इसका समापन 19 सितंबर को अनंत चतुर्दशी (Anant Chaturdashi) के दिन होगा। जिसे गणेश विसर्जन (Ganesh Visarjan) के नाम से भी जाना जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को भगवान गणेश का जन्म हुआ था। जानिए गणेश चतुर्थी की पूजा विधि विस्तार से यहां।


गणेश चतुर्थी व्रत पूजन विधि:

-इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान कर लें।

-इसके बाद तांबे या फिर मिट्टी की गणेश जी की प्रतिमा लें।

-फिर एक कलश में जल भरें और उसके मुख को नए वस्त्र से बांध दें। फिर इस पर गणेश जी की स्थापना करें।

-गणेश भगवान को सिंदूर, दूर्वा, घी और 21 मोदक चढ़ाएं और उनकी विधि विधान पूजा करें।

-गणेश जी की आरती उतारें और प्रसाद सभी में बांट दें।

-10 दिन तक चलने वाले इस त्योहार में गणेश जी की मूर्ति को एक, तीन, सात और नौ दिनों के लिए घर पर रख सकते हैं।

-ध्यान रहे कि गणेश जी की पूजा में तुलसी के पत्तों का इस्तेमाल नहीं किया जाता है।

-गणेश पूजन में गणेश जी की एक परिक्रमा करने का विधान है।


गणेश चतुर्थी मुहूर्त:

गणेश चतुर्थी पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 11.03 AM से दोपहर 01.33 PM तक रहेगा। चतुर्थी तिथि की शुरुआत 10 सितंबर को 12.18 AM से हो जाएगी और इसकी समाप्ति रात 09.57 बजे होगी। इस दिन वर्जित चन्द्रदर्शन का समय 09:12 AM से 08:53 PM तक रहेगा।


गणेश चतुर्थी पर नहीं देखा जाता चांद:

मान्यता है गणेश चतुर्थी पर चंद्रमा के दर्शन नहीं करने चाहिए क्योंकि इससे कलंक लगने का खतरा रहता है। अगर भूल से चंद्रमा के दर्शन हो जाएं तब इस मंत्र का 28, 54 या 108 बार जाप करने लेना चाहिए।


चन्द्र दर्शन दोष निवारण मन्त्र:

सिंहःप्रसेनमवधीत् , सिंहो जाम्बवता हतः।

सुकुमारक मा रोदीस्तव, ह्येष स्यमन्तकः।।


गणेश जी के जन्म से जुड़ी कथा: पौराणिक मान्यताओं अनुसार एक बार पार्वती माता स्नान करने के लिए जा रही थीं। उन्होंने अपने शरीर की मैल से एक पुतले का निर्माण किया और उसमें प्राण फूंक दिए। माता पार्वती ने गृहरक्षा के लिए उसे द्वार पाल के रूप में नियुक्त किया। क्योंकि गणेश जी इस समय तक कुछ नहीं जानते थे उन्होंने माता पार्वती की आज्ञा का पालन करते हुए भगवान शिव को भी घर में आने से रोक दिया। शंकरजी ने क्रोध में आकर उनका मस्तक काट दिया। माता पार्वती ने जब अपने पुत्र की ये दशा देखी तो वो बहुत दुखी हो गईं और क्रोध में आ गईं। शिवजी ने उपाय के लिए गणेश जी के धड़ पर हाथी यानी गज का सिर जोड़ दिया। जिससे उनका एक नाम गजानन पड़ा।


इन मंत्रों से करें गणेश जी की स्‍थापना


ओम वक्रतुण्डैक दंष्ट्राय क्लीं ह्रीं श्रीं गं गणपते वर वरद सर्वजनं मे वशमानय स्वाहा


ओम हस्ति पिशाचि लिखे स्वाहा


ओम एकदन्ताय विहे वक्रतुण्डाय धीमहि तन्नो दन्तिः प्रचोदयात्।


गणपतिर्विघ्नराजो लम्बतुण्डो गजाननः।


'त्रयीमयायाखिलबुद्धिदात्रे बुद्धिप्रदीपाय सुराधिपाय।


नित्याय सत्याय च नित्यबुद्धि नित्यं निरीहाय नमोस्तु नित्यम्।।'


गणेश की पूजा के दौरान इन मंत्रों का करें जाप


ओम गंगणपतये नमः


ओम श्रीं गं सौभ्याय गणपतये वर वरद सर्वजनं मे वशमानय स्वाहा।



भगवान गणेश को उनके प्रिय मोदक का लगाएं भोग


पूजा होने के बाद भगवान गणेश को उनके प्रिय मोदक का भोग लगाना चाहिए।


इसके बाद धूप, दीप और अगरबत्ती जलाकर गणेश जी की आरती करना चाहिए।


आरती के बाद गणेश को प्रसन्न करने वाले मंत्रों का जाप करना चाहिए।


क्यों मनाई जाती है गणेश चतुर्थी?

पौराणिक मान्यता है कि भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी की तिथि पर कैलाश पर्वत से माता पार्वती के साथ गणेश जी का आगमन हुआ था। इसी कारण इस दिन गणेश चतुर्थी के रूप में मनाया जाता है।


इन नियमों के साथ करें गणेश जी की प्रतिमा की स्थापना

श्री गणेश की मूर्ति मिट्टी या पीतल की होनी चाहिए। मूर्ति पर चन्दन या पीली मिट्टी का लेप लगाएं। यदि आप पीतल की मूर्ति स्थापित कर रहे हैं तो विसर्जन के समय चंदन या पीली मिट्टी का लेप जल में बह जाएगा और आप उस पीतल की मूर्ति को वापस घर लाकर मंदिर में रख सकते हैं। साबुत चावल की ढेरी पर पूजा की सुपारी पर चार बार कलावा लपेट कर बैठा दें। फिर सुपारी ओर चावल को गंगा में विसर्जन कर दें यह बहुत शुभ होता है।


गणेश जी की ऐसी प्रतिमा की करें सथापित, होती हैं शुभ

मिट्टी की बनी हुई गणेश प्रतिमा को सबसे शुभ माना जाता है, इसकी ही स्थापना करनी चाहिए। सोने, चांदी या अन्य किसी धातु की बनी मूर्ति की भी पूजा की जा सकती है। लेकिन पीओपी या प्लास्टिक जैसे पदार्थों से बनी मूर्ति का पूजन न करें।



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