देश: दुनिया के सबसे बड़े परमाणु संयंत्र के लिए भारत ने बनाया 'सबसे बड़ा फ्रिज'

देश - दुनिया के सबसे बड़े परमाणु संयंत्र के लिए भारत ने बनाया 'सबसे बड़ा फ्रिज'
| Updated on: 30-Jun-2020 01:03 PM IST
Delhi: दुनिया का सबसे बड़ा परमाणु फ्यूजन प्रोजेक्ट फ्रांस में बन रहा है। इसे बनाने में करीब डेढ़ लाख रुपए लग रहे हैं। इस प्रोजेक्ट में भारत भी बड़ी भूमिका निभा रहा है। परमाणु संयंत्र का दिल कहा जाने वाला यंत्र भारत ने बनाया है। इस यंत्र को क्रायोस्टेट कहते हैं। या फिर इसे परमाणु संयंत्र का फ्रिज भी कह सकते हैं। क्योंकि यह एटॉमिक ऊर्जा से निकलने वाली गर्मी, कूलेंट आदि को ठंडा रखता है। तस्वीर में दिख रहा स्टील का गोल ढांचा फ्रिज का कवर है।

गुजरात के सूरत में इस क्रायोस्टेट को बनाया गया है। इसे एलएंडटी ने बनाया है। क्रायोस्टेट स्टील का हाई वैक्यूम प्रेशर चैंबर होता है। जब एटॉमिक रिएक्टर बेहद गर्मी पैदा करता है तब उसे ठंडा करने के लिए एक बड़ा रेफ्रिजरेटर चाहिए होता है। इसे ही क्रायोस्टेट कहते हैं। 

इंटरनेशनल थर्मोन्यूक्लियर एक्सपेरिमेंटल रिएक्टर (ITER) का सदस्य देश होने के नाते भारत ने इस क्रायोस्टेट को बनाने की जिम्मेदारी ली। पहले यह प्रोजेक्ट चीन को मिलने वाला था। लेकिन इसे भारत ने छीन लिया। 

फ्रांस में बन रहे दुनिया के सबसे बड़े परमाणु संयंत्र में जब काम शुरू होगा, तब वहां तापमान 15 करोड़ डिग्री सेल्सियस चला जाएगा। यह सूर्य के केंद्र से 10 गुना ज्यादा होगा। इसी गर्मी को शांत करने के लिए क्रायोस्टेट लगाया जाएगा।

क्रायोस्टेट यानी परमाणु संयंत्र के फ्रिज का कुल वजन 3850 टन है। इसका 50वां और अंतिम हिस्सा करीब 650 टन का है। यह हिस्सा 29।4 मीटर चौड़ा और 29 मीटर ऊंचा है। 

एटॉमिक रिएक्टर फ्रांस के कादार्शे में बन रहा है। दुनियाभर में लॉकडाउन होने के बावजूद भारत ने इस प्रोजेक्ट के लिए काम किया। इसके हिस्से फ्रांस भेजता रहा। इन सभी हिस्सों को जोड़कर चेंबर का आकार दिया जाएगा।

फ्रांस के कादार्शे में पूरे क्रायोस्टेट को जोड़ने के लिए भारतीय इंजीनियरों के लिए एक अलग वर्कशॉप भी बनाया गया है। जहां पर क्रायोस्टेट के हर हिस्से को सही तरीके से जोड़कर सुरक्षा के स्तरों की जांच की जाएगी। 

भारत, अमेरिका, जापान, रूस समेत 7 देश में मिलकर यह नया एटॉमिक प्लांट बना रहे है। इसे छोटा सूरज कहा जा रहा है। भारत को क्रायोस्टेट बनाने का जिम्मा मिला था।

क्रायोस्टेट का निचला हिस्सा पिछले साल जुलाई में भेजा गया था। जबकि, इस साल मार्च में इसके ऊपर सिलेंडर को रवाना कर दिया गया था। अब इसका ढक्कन भेजा जा रहा है।

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