ISRO PSLV-C60: भारत ने SpaDex लॉन्च से रचा इतिहास, ISRO अंतरिक्ष में जोड़ेगा सैटेलाइट

ISRO PSLV-C60 - भारत ने SpaDex लॉन्च से रचा इतिहास, ISRO अंतरिक्ष में जोड़ेगा सैटेलाइट
| Updated on: 30-Dec-2024 10:36 PM IST
ISRO PSLV-C60: भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने एक और ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल करते हुए स्पेस डॉकिंग और अनडॉकिंग तकनीक में सफलता प्राप्त की है। श्रीहरिकोटा से PSLV-C60 रॉकेट के जरिए 2 छोटे स्पेसक्राफ्ट लॉन्च कर इसरो ने ऐसा मिशन पूरा किया है, जो अब तक सिर्फ अमेरिका, रूस और चीन जैसे गिने-चुने देशों ने ही किया है। इस मिशन का नाम स्पेस डॉकिंग एक्सपेरिमेंट (SpaDex) रखा गया है।

PSLV-C60 से हुआ ऐतिहासिक लॉन्च

इसरो ने 470 किलोमीटर की ऊंचाई पर दो स्पेसक्राफ्ट, "टारगेट" और "चेजर," को लॉन्च किया। ये दोनों स्पेसक्राफ्ट 220 किलोग्राम वजन के हैं। इस मिशन में दोनों स्पेसक्राफ्ट अलग-अलग दिशाओं में लॉन्च किए गए, जो बाद में हजारों किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से उड़ते हुए एक-दूसरे से जुड़ेंगे और फिर अलग होंगे।

इस प्रक्रिया में PSLV-C60 रॉकेट का इस्तेमाल किया गया, जो इसरो की एक विश्वसनीय तकनीक है। डॉकिंग प्रक्रिया मिशन के लॉन्च के 10 दिन बाद शुरू होगी, जिसमें "चेजर" स्पेसक्राफ्ट "टारगेट" स्पेसक्राफ्ट की ओर धीरे-धीरे बढ़ेगा और अंततः जुड़ जाएगा।

डॉकिंग प्रक्रिया: कैसे काम करती है?

डॉकिंग प्रक्रिया स्पेसक्राफ्ट को आपस में जोड़ने और उन्हें बाद में अलग करने की तकनीक है। इसरो के इस मिशन में:

  1. पहला चरण: "चेजर" 20 किलोमीटर की दूरी से "टारगेट" की ओर बढ़ेगा।
  2. दूसरा चरण: यह दूरी धीरे-धीरे 5 किलोमीटर, फिर 1.5 किलोमीटर और 500 मीटर तक घटेगी।
  3. तीसरा चरण: जब दोनों स्पेसक्राफ्ट के बीच की दूरी 3 मीटर रह जाएगी, तो डॉकिंग प्रक्रिया शुरू होगी।
  4. अंतिम चरण: डॉकिंग के बाद इलेक्ट्रिकल पावर ट्रांसफर होगा, जिससे दोनों स्पेसक्राफ्ट का सिस्टम एकीकृत हो जाएगा।
इस पूरी प्रक्रिया को धरती से नियंत्रित किया जाएगा। इसरो के लिए यह तकनीकी रूप से बेहद जटिल और भविष्य के अंतरिक्ष मिशनों के लिए निर्णायक है।

स्पेडेक्स: भारत का गर्व

इसरो ने स्पेडेक्स मिशन पर अपनी तकनीक का पेटेंट हासिल कर लिया है। दुनिया के अधिकांश देश डॉकिंग और अनडॉकिंग की तकनीक साझा नहीं करते, जिसके चलते इसरो को अपना खुद का डॉकिंग मैकेनिज्म विकसित करना पड़ा। इस उपलब्धि के साथ, भारत अब अमेरिका, रूस और चीन के एलीट क्लब में शामिल हो गया है।

चंद्रयान-4 और भविष्य के मिशनों के लिए अहम

स्पेडेक्स मिशन भारत के चंद्रयान-4 मिशन के लिए महत्वपूर्ण साबित होगा। चंद्रयान-4 में भी इसी डॉकिंग-अनडॉकिंग तकनीक का इस्तेमाल किया जाएगा। इसके अलावा, यह मिशन इसरो के अन्य प्रमुख उद्देश्यों में मदद करेगा, जैसे:

  • भारत का खुद का स्पेस स्टेशन बनाना।
  • इंटरप्लेनेटरी मिशन।
  • सैटेलाइट सर्विसिंग।
  • मानव अंतरिक्ष यान मिशन।

नासा को टक्कर देने की दिशा में कदम

इसरो की इस उपलब्धि ने भारत को अंतरिक्ष तकनीक के क्षेत्र में नई ऊंचाइयों पर पहुंचा दिया है। यह मिशन नासा जैसी एजेंसियों को कड़ी टक्कर देने की क्षमता रखता है।

निष्कर्ष

स्पेडेक्स मिशन भारतीय अंतरिक्ष विज्ञान में मील का पत्थर साबित हुआ है। यह केवल तकनीकी विकास का प्रतीक नहीं है, बल्कि भारत के आत्मनिर्भर बनने की दिशा में एक बड़ा कदम है। इसरो की यह उपलब्धि न केवल अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत का कद बढ़ाएगी, बल्कि भविष्य के अंतरिक्ष मिशनों के लिए भी नए द्वार खोलेगी।

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