Khaleda Zia Death: बांग्लादेश की राजनीति में खालिदा जिया का चार दशकों का प्रभाव: एक विस्तृत विश्लेषण

Khaleda Zia Death - बांग्लादेश की राजनीति में खालिदा जिया का चार दशकों का प्रभाव: एक विस्तृत विश्लेषण
| Updated on: 30-Dec-2025 12:08 PM IST
बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री और बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) की प्रमुख खालिदा जिया का मंगलवार सुबह ढाका में लंबी बीमारी के बाद 80 साल की उम्र में निधन हो गया और उन्होंने चार दशकों से अधिक समय तक बांग्लादेश की राजनीति को गहराई से प्रभावित किया, तीन बार देश की प्रधानमंत्री के रूप में कार्य किया और अवामी लीग की प्रमुख शेख हसीना की मुख्य राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी रहीं। खालिदा जिया को उनके समर्थक 1975 से चले सैन्य या अर्ध-सैन्य शासन के बाद देश में लोकतंत्र बहाल करने के लिए याद करते हैं, और 1990 के दशक और 2000 की शुरुआत में बांग्लादेश की राजनीति पर उनका खासा प्रभाव रहा।

परिचय और प्रारंभिक जीवन

खालिदा जिया का जन्म 15 अगस्त 1946 को अविभाजित भारत के। दीनाजपुर जिले में तैया और इस्कंदर मजूमदार के घर हुआ था। उनके पिता जलपाईगुड़ी से चाय का कारोबार चलाते थे और भारत के विभाजन के बाद पूर्वी पाकिस्तान, जो अब बांग्लादेश है, चले गए थे। 1960 में, उन्होंने कैप्टन जियाउर रहमान से शादी की, जो बाद में बांग्लादेश के राष्ट्रपति बने। खालिदा जिया बांग्लादेश की पहली महिला प्रधानमंत्री बनीं और मुस्लिम दुनिया में पाकिस्तान की बेनजीर भुट्टो के। बाद दूसरी महिला प्रधानमंत्री थीं, जिन्होंने दशकों तक अपने देश की राजनीति पर अपना दबदबा कायम रखा।

राजनीति में आकस्मिक प्रवेश

खालिदा जिया का सार्वजनिक जीवन में आना एक संयोग माना जाता है। 35 साल की उम्र में विधवा होने के एक दशक बाद वह प्रधानमंत्री। बनीं, लेकिन राजनीति में उनका प्रवेश किसी योजना के तहत नहीं हुआ था। सियासत से खालिदा का परिचय उनके पति राष्ट्रपति जियाउर रहमान की 30। मई 1981 को हुए एक असफल सैन्य विद्रोह में हत्या के बाद हुआ। इससे पहले, खालिदा सिर्फ एक जनरल की पत्नी और फिर फर्स्ट लेडी के रूप में। जानी जाती थीं, लेकिन पति की मृत्यु ने उन्हें एक अप्रत्याशित राजनीतिक यात्रा पर धकेल दिया।

बीएनपी का नेतृत्व और शेख हसीना से प्रतिद्वंद्विता

जियाउर रहमान एक सैन्य तानाशाह से राजनेता बने थे, जिन्होंने 1978 में बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) की स्थापना की थी। अपने पति की मृत्यु के बाद, खालिदा तेजी से बीएनपी के शीर्ष पर पहुंच गईं। 3 जनवरी 1982 को वह पार्टी की प्राथमिक सदस्य बनीं, इसके बाद मार्च 1983 में उपाध्यक्ष और मई 1984 में चेयरपर्सन बनीं और चेयरपर्सन का पद उन्होंने अपनी मृत्यु तक संभाला। सियासत की दुनिया में उनकी मुख्य प्रतिद्वंद्वी शेख हसीना रहीं, जो अवामी लीग की प्रमुख। हैं, और इन दोनों महिला नेताओं के बीच की सियासी लड़ाई हमेशा चर्चा में रही।

लोकतंत्र बहाली के लिए संघर्ष

1982 में तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल एचएम इरशाद के सैन्य तख्तापलट के। बाद, खालिदा ने लोकतंत्र बहाल करने के लिए एक मजबूत आंदोलन शुरू किया। यह आंदोलन उनके राजनीतिक करियर का एक महत्वपूर्ण मोड़ था, जिसने उन्हें जनता के बीच एक लोकप्रिय नेता के रूप में स्थापित किया और 1986 में इरशाद ने राष्ट्रपति चुनाव की घोषणा की, जिसके खिलाफ खालिदा की बीएनपी गठबंधन और हसीना की अवामी लीग के 15-पार्टी गठबंधन ने विरोध किया। दोनों गठबंधनों ने शुरू में चुनाव का बहिष्कार किया, लेकिन अवामी लीग, कम्युनिस्ट पार्टी और अन्य दलों ने बाद में इसमें हिस्सा ले लिया। खालिदा के गठबंधन ने बहिष्कार जारी रखा, जिससे उनकी लोकप्रियता बहुत बढ़ गई।

प्रधानमंत्री के रूप में पहला कार्यकाल

दिसंबर 1990 में इरशाद शासन के जाने के बाद, मुख्य न्यायाधीश शहाबुद्दीन अहमद की अगुवाई वाली कार्यवाहक सरकार ने फरवरी 1991 में चुनाव कराए और इन चुनावों में बहुमत के साथ बीएनपी की जीत ने तमाम सियासी पंडितों को हैरान कर दिया क्योंकि उनकी नजर में अवामी लीग जीत की सबसे प्रबल दावेदार थी। नई संसद ने संविधान में बदलाव किया, राष्ट्रपति प्रणाली से संसदीय प्रणाली में बदलाव हुआ, और खालिदा बांग्लादेश की पहली महिला प्रधानमंत्री बनीं। यह उनके राजनीतिक करियर की सबसे बड़ी उपलब्धि थी, जिसने उन्हें राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई।

सत्ता में उतार-चढ़ाव और विपक्षी नेता की भूमिका

1996 में बीएनपी फिर सत्ता में आई, लेकिन सरकार सिर्फ 12 दिन चली क्योंकि अवामी लीग ने सड़क पर जोरदार विरोध किया। खालिदा की सरकार ने कार्यवाहक सरकार का सिस्टम शुरू करके इस्तीफा दे दिया। जून 1996 के नए चुनाव में बीएनपी हार गई, लेकिन 116 सीटें जीतकर देश के सियासी इतिहास की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी बनी। 1999 में खालिदा ने 4-पार्टी गठबंधन बनाया और तत्कालीन सत्ताधारी अवामी लीग सरकार के खिलाफ आंदोलन चलाया। 2001 में वह फिर प्रधानमंत्री चुनी गईं, जो उनकी राजनीतिक दृढ़ता और जनता के बीच उनकी पकड़ को दर्शाता है।

भ्रष्टाचार के आरोप और कानूनी लड़ाई

2006 में खालिदा ने पद छोड़ दिया और कार्यवाहक प्रशासन को सत्ता सौंप दी और सितंबर 2007 में खालिदा को भ्रष्टाचार के आरोपों में गिरफ्तार किया गया, जिसे उनकी पार्टी ने निराधार करार दिया। उनके आखिरी 15 सालों में खालिदा मुख्य विपक्षी नेता के तौर पर शेख हसीना के शासन को 'तानाशाही' करार देती रहीं और भ्रष्टाचार के आरोपों से भी लड़ती रहीं। 8 फरवरी 2018 को उन्हें जिया ऑर्फनेज ट्रस्ट मामले में 5 साल की सजा सुनाई गई और बाद में। जिया चैरिटेबल ट्रस्ट मामले में 7 साल की सजा मिली, जिससे उनका राजनीतिक करियर और भी चुनौतीपूर्ण हो गया।

अंतिम वर्ष और राजनीतिक वापसी

2024 में, हसीना के सत्ता से हटने के एक दिन बाद, खालिदा को राष्ट्रपति से माफी मिल गई और वह रिहा हो गईं और अगले दिन खराब सेहत के बावजूद उन्होंने एक बड़ी रैली के साथ राजनीति में वापसी की, जिससे बीएनपी में नई जान आ गई। उनके बेटे और उत्तराधिकारी तारिक रहमान, जो फिलहाल बीएनपी के कार्यकारी अध्यक्ष हैं, हाल ही में 2008 से लंदन में स्व-निर्वासन के बाद घर लौटे हैं। उनके दूसरे बेटे आराफात रहमान की 2015 में दिल का दौरा पड़ने से मौत हो गई थी, जिससे परिवार को गहरा सदमा पहुंचा था।

अद्वितीय चुनावी रिकॉर्ड

खालिदा जिया की चुनावी लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से लगता है कि वह कभी किसी चुनाव में अपनी सीट नहीं हारीं। वह 1991, 1996 और 2001 के चुनावों में 5 अलग-अलग संसदीय क्षेत्रों से चुनी गईं, जबकि 2008 में वह उन तीनों क्षेत्रों से जीतीं जहां से उन्होंने चुनाव लड़ा। 2008 के चुनाव से पहले, नामांकन पत्र के साथ दिए गए हलफनामे में खालिदा ने खुद को स्व-शिक्षित बताया। हालांकि, बीएनपी की वेबसाइट पर लिखा गया है कि उन्होंने दीनाजपुर गवर्नमेंट गर्ल्स स्कूल और सुरेंद्र नाथ कॉलेज में पढ़ाई की थी, जो उनकी शैक्षणिक पृष्ठभूमि के बारे में कुछ भ्रम पैदा करता है।

भारत के साथ संबंध

खालिदा के 1991-1996 के पहले कार्यकाल में भारत से संबंधों में कभी कूटनीति तो कभी तनाव नजर आया। उनकी सरकार ने 'लुक ईस्ट' पॉलिसी अपनाई, जो चीन और इस्लामी देशों से रणनीतिक जुड़ाव की ओर इशारा करती थी, न कि भारत से। उनके दूसरे कार्यकाल में द्विपक्षीय संबंध बहुत बुरी हालत में पहुंच गए और एक तरह से दोनों देशों के रिश्ते लगभग टूटे ही रहे। भारत ने कई मौकों पर बांग्लादेश से चल रहे उग्रवादी समूहों और सीमा पार घुसपैठ पर गहरी चिंता जताई थी, जिससे संबंधों में और खटास आई। खालिदा ने प्रधानमंत्री के रूप में 1992 और 2006 में 2 बार भारत का दौरा किया और 2012 में विपक्षी नेता के रूप में भारतीय सरकार के निमंत्रण पर एक बार आईं। 2006 की उनकी राजकीय यात्रा में व्यापार और सुरक्षा पर समझौते हुए थे जबकि 2012 की यात्रा का उद्देश्य बीएनपी और नई दिल्ली के बीच संबंध सुधारना था, जो दोनों देशों के बीच बेहतर समझ बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था।

विरासत और प्रभाव

खालिदा जिया ने बांग्लादेश की राजनीति में एक अमिट छाप छोड़ी। उनकी राजनीतिक यात्रा, जो 4 दशकों से अधिक लंबी रही, में कभी वह ऊंचाइयों पर पहुंची तो कभी उन्हें गिरावट का भी सामना करना पड़ा। उन्होंने एक बड़ी पार्टी का नेतृत्व किया, देश की सत्ता संभाली, लेकिन उनकी पहचान भ्रष्टाचार से भी हुई। उनके समर्थक उन्हें देश में लोकतंत्र बहाल करने के लिए याद करते हैं, जबकि आलोचक उन पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाते हैं और उनकी मृत्यु के साथ, बांग्लादेश की राजनीति में एक युग का अंत हो गया है, लेकिन उनकी विरासत और प्रभाव आने वाले कई वर्षों तक महसूस किए जाते रहेंगे।

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