Sengol History: चोल वंश से जुड़ा सेंगोल कैसे बना सत्ता का प्रतीक, क्या है इसकी अनकही-अनसुनी कहानी, जानिए

Sengol History - चोल वंश से जुड़ा सेंगोल कैसे बना सत्ता का प्रतीक, क्या है इसकी अनकही-अनसुनी कहानी, जानिए
| Updated on: 24-May-2023 01:18 PM IST
Sengol History: नए संसद भवन में स्पीकर की सीट के पास सेंगोल की स्थापना की जाएगी, गृह मंत्री अमित शाह ने बुधवार को प्रेस कांफ्रेंस कर इसकी जानकारी दी. ये सेंगेाल चोल वंश से जुड़ा है, इतिहासकारों के मुताबिक चोल वंश में जब सत्ता हस्तांतरित होती थी जो एक निवर्तमान राजा दूसरे राजा को सेंगोल सौंपता था. इसे सत्ता की पावर का केंद्र माना जाता है. खास बात ये है कि 14 अगस्त 1947 की आधी रात को जब भारत आजाद हुआ तो भारत की स्वतंत्रता और सत्ता हस्तांतरित के तौर प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को यही सेंगोल सौंपा गया था. नए संसद भवन के उद्घाटन समारोह में एक बार फिर इस प्रक्रिया को दोहराया जाएगा. आइए जानते हैं कि आखिर सेंगोल क्या है और कैसे ये आजादी का प्रतीक बन गया ?

क्या है सेंगोल

सेंगोल को हिंदी में राजदंड कहते हैं, इसका इस्तेमाल चोल साम्राज्य में होता था, जब चोल साम्राज्य का कोई राजा अपना उत्तराधिकारी घोषित करता था तो सत्ता हस्तांतरण के तौर पर सेंगोल दिया जाता था. यह चोल साम्राज्य के समय से चली आ रही परंपरा है. खास तौर से तमिलनाडु और दक्षिण के अन्य राज्यों में सेंगोल को न्यायप्रिय और निष्पक्ष शासन का प्रतीक माना जाता है. कुछ इतिहासकार मौर्य और गुप्त वंश में भी भी सेंगोल को प्रयोग किए जाने की बात कहते हैं.

कैसे चुना गया सेंगोल

देश को आजादी मिलने जा रही थी, भारत के आखिरी वायसराय लार्ड माउंटबेटन अपने आखिरी टास्क की तैयारी कर रहे थे, ये टास्क था भारत को सत्ता हस्तांतरित करने का. कागजी काम पूरा हो चुका था, लेकिन ये सवाल था कि आखिर भारत की आजादी और सत्ता हस्तांतरित करने का सिंबल क्या होगा?

लार्ड माउंटबेटन के इस सवाल का जवाब किसी के पास नहीं था. ऐसे में जवाहर लाल नेहरू गए पूर्व गर्वनर जनरल सी राज गोपालाचारी के पास. तमिलनाडु से संबंध रखने वाले सी गोपालचारी भारत के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व को समझते थे. उन्होंने बहुत विचार करके नेहरू जी को सेंगोल का नाम सुझाया.

जौहरी से कराया गया तैयार

जवाहर लाल नेहरू को सुझाव पसंद आया. उन्होंने सी राजगोपालाचारी को ही इसकी जिम्मेदारी सौंपी. इसके बाद तमिलनाडु के सबसे पुराने मठ थिरुवदुथुराई से संपर्क किया. 20वें गुरुमहा सन्निथानम ने इसकी जिम्मेदारी स्वीकार की. उन्होंने एक जौहरी से सेंगोल बनाने के लिए कहा. आखिरकार सोने का सेंगेाल तैयार कराया गया, जिसके शीर्ष पर नंदी को विराजमान किया गया. मठ की ओर से ही एक दल को विशेष विमान से नई दिल्ली भेजा गया, ताकि सेंगोल को लार्ड माउंटबेटन तक पहुंचाया जा सके.

कैसे हुई थी वो सेरेमनी

14 अगस्त की रात तकरीबन 11 बजकर 45 मिनट पर सेंगोल को लार्ड माउंटबेटन को सौंपा गया. इसके बाद माउंटबेटन ने इसे तमिलनाडु से आए संत श्रीकुमारस्वामी थम्बिरन को सौंप दिया. उन्होंने पवित्र जल से इसे शुद्ध किया. तमिल परंपरा के अनुसार थेवरम के भजन गाए गए. उस वक्त उस्ताद टीएन राजरथिनम ने नादस्वरम बजाया था. श्री कुमारस्वामी थम्बिरन ने अर्ध रात्रि में ही जवाहर लाल नेहरू के माथे पर तिलक करके उन्हें सेंगोल सौंप दिया था जो सत्ता हस्तांतरण का प्रतीक बना.

अभी तक कहां था सेंगोल

गृह मंत्री अमित शाह के मुताबिक अभी तक सेंगोल इलाहाबाद संग्रहालय में था. अब संसद भवन में इसे रखने से उचित कोई जगह नहीं हो सकती. एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि नए संसद भवन के निर्माण के दौरान एक टीम ने रिसर्च की. पीएम मोदी के निर्देश पर हुई इस रिसर्च के दौरान ही सेंगोल का पता चला जिसके बारे में लोगों को जानकारी नहीं थी. यह हमारे देश की परंपरा का अहम अंग है. शासन न्याय और नीति के अनुरूप चले ये इसका भाव है.

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